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भादो का कुल्हड़ फूटा-रूई भी डूबी, अच्छी बारिश का अनुमान:राजस्थान में देसी तरीकों से जाना कैसा रहेगा मानसून; राजनीतिक उथल-पुथल के भी संकेत


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भादो का कुल्हड़ फूटा-रूई भी डूबी, अच्छी बारिश का अनुमान:राजस्थान में देसी तरीकों से जाना कैसा रहेगा मानसून; राजनीतिक उथल-पुथल के भी संकेत

भादो का कुल्हड़ फूटा-रूई भी डूबी, अच्छी बारिश का अनुमान:राजस्थान में देसी तरीकों से जाना कैसा रहेगा मानसून; राजनीतिक उथल-पुथल के भी संकेत

बाड़मेर/जोधपुर : अब तो मौसम विभाग बारिश का सटीक पूर्वानुमान जारी कर देता है, लेकिन सैकड़ों साल पहले यह तकनीक नहीं थी। उस वक्त देसी तरीकों से मानसून का पूर्वानुमान लिया जाता था। राजस्थान के कई हिस्सों में आज भी इन तरीकों से पूर्वानुमान लिए जाते हैं। अक्षय तृतीया पर कई जिलों में ऐसे ही तरीकों से अच्छे मानसून को लेकर भविष्यवाणी की गई। वहीं, राजनीतिक उठापटक की भी संभावना व्यक्त की गई है।

बाड़मेर, जालोर समेत कई इलाकों में मिट्‌टी के कुल्हड़ में पानी भरकर बारिश का पूर्वानुमान लगाया जाता है। - Dainik Bhaskar
बाड़मेर, जालोर समेत कई इलाकों में मिट्‌टी के कुल्हड़ में पानी भरकर बारिश का पूर्वानुमान लगाया जाता है।

बाड़मेर: इस बार भादो में सबसे ज्यादा बारिश और सुकाल का संकेत

अक्षय तृतीया पर बाड़मेर कृषि मंडी के अनाज व्यापारियों ने बारिश के शकुन देखे। यहां मानसून का शकुन देखने के दो तरीके हैं। पहला-कच्ची मिट्‌टी के कुल्हड़ बनाकर और दूसरा पानी में सफेद और काली रंग की रूई डालकर। दोनों तरीकों से भादो में अच्छी बारिश और सुकाल के संकेत मिले हैं।

बाड़मेर में पानी में काली-सफेद रूई और मिट्‌टी के कुल्हड़ से बारिश का अनुमान लगाया गया।
बाड़मेर में पानी में काली-सफेद रूई और मिट्‌टी के कुल्हड़ से बारिश का अनुमान लगाया गया।

कच्ची मिट्‌टी के कुल्हड़ का तरीका- व्यापार संघ के अध्यक्ष बोले- परात में कच्ची मिट्‌टी के पांच कुल्हड़ रखते हैं। इन्हें हिंदी महीनों के नाम जेठ, आषाढ़, सावन, भादो, आसोज दिए जाते हैं। इनमें बराबर पानी भरा जाता है। जो कुल्हड़ सबसे पहले फूटता है, उसमें सबसे ज्यादा बारिश का अनुमान मिलता है। इस बार भादो का कुल्हड़ सबसे पहले फूटा। यानी इस बार का शकुन ये है कि भादो में अच्छी बारिश होगी।

पानी में रूई डालने का तरीका- दो कुल्हड़ों में पानी भरा जाता है। इनमें काली और सफेद रूई डाली जाती है। काली रूई अगर पहले पानी में डूबे तो बारिश अच्छी होती है, सुकाल आता है। सफेद रूई पहले पानी में पूरी तरह से डूब जाए तो बारिश कम होने के आसार होते हैं और अकाल पड़ने की संभावना है।

बाड़मेर में अनाज व्यापारी पर्ची लिखकर अकाल-सुकाल का आकलन करते हुए।
बाड़मेर में अनाज व्यापारी पर्ची लिखकर अकाल-सुकाल का आकलन करते हुए।

इस बार काली रूई पहले डूबने का संकेत भी शुभ रहा है। यानी बारिश अच्छी होगी और सुकाल रहेगा।

मंडी के व्यापारियों ने दावा किया कि वे 40 साल से शकुन देख रहे हैं और 80 फीसदी तक शकुन सही जाता है।

जालोर : सावन महीने में अच्छी बारिश के आसार, नदियों में पानी आएगा कम

जालोर में दो दिन पहले हरियाली अमावस्या पर मल्केश्वर मठ और भैरूनाथ अखाड़े में बारिश का पूर्वानुमान देखा गया। इसमें भी बारिश के शकुन अच्छे आए हैं। मठ के महंत ने जुलाई-अगस्त यानी श्रावण माह में सबसे ज्यादा बारिश होने की संभावना जताई। हालांकि नदियों में पानी आने के शकुन अच्छे नहीं रहे।

पंडित नारायण दवे ने बताया- शकुन के अनुसार जून-जुलाई (आषाढ़) माह में भी अच्छी बारिश हो सकती है। लेकिन इस बार नदी-नालों में पानी आने की संभावना कम है।

जालोर में मिट्‌टी के कुल्हड़ बनाते हुए। इनमें पानी भरकर बारिश का अनुमान लगाया जाता है।
जालोर में मिट्‌टी के कुल्हड़ बनाते हुए। इनमें पानी भरकर बारिश का अनुमान लगाया जाता है।

जोधपुर : काल-सुकाल का पलड़ा बराबर

जोधपुर में घांची समाज ने अक्षय तृतीया पर बाईजी का तालाब स्थित बगीची में धणी का आयोजन किया। इसमें अकाल-सुकाल और राजनीतिक उठापटक का पूर्वानुमान लगाया जाता है। 3 से 4 घंटे अनुष्ठान में धणी के माध्यम से भविष्य के संकेत दिए गए। इसके लिए दो बच्चों को स्नान कराया गया। उन्हें लंगोट पहनाकर आमने-सामने खड़ा किया गया।

उनके हाथों में बांस की दो खपच्चियां दी गईं। एक बांस पर कुमकुम लगा था और दूसरी पर काजल। कुमकुम लगी खपच्ची को सुकाल (अच्छा जमाना) माना जाता है और काजल लगी खपच्ची को काल (अकाल) के रूप में देखा जाता है। इनके नीचे बनी मिट्टी की वेदी पर 7 तरह के अनाज, गुड़ व बताशे रखे जाते हैं।

जोधपुर में कांटे पर काल और सुकाल की खपच्चियों के झुकाव को लेकर पूर्वानुमान लगाया गया।
जोधपुर में कांटे पर काल और सुकाल की खपच्चियों के झुकाव को लेकर पूर्वानुमान लगाया गया।

यूं लगाते हैं पूर्वानुमान- चौक के बीचों बीच अनाज की ढेरी बनाकर उसमें एक लकड़ी का डंडा खड़ा किया जाता है। इसके ऊपरी हिस्से में वी-आकार का कांटा लगाया जाता है। कुमकुम और काजल लगी जो खपच्ची कांटे की ओर झुक जाती है, उस हिसाब से अकाल या सुकाल का अंदाजा लगाया जाता है। धणी की इस परंपरा में कई बार आपदाओं के संकेत भी मिलते हैं। इस बार काल-सुकाल का कांटा बराबर रहा है। ऐसे में कहा गया है कि इस बार बारिश अच्छी होगी, लेकिन राजनीति में उथल-पुथल होगी।

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