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अब ग्रेनाइट स्लरी के ब्लॉक से बनेंगी सड़कें:रेत-गिट्‌टी के मुकाबले 18% तक ज्यादा मजबूत, लागत 16 फीसदी कम


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अब ग्रेनाइट स्लरी के ब्लॉक से बनेंगी सड़कें:रेत-गिट्‌टी के मुकाबले 18% तक ज्यादा मजबूत, लागत 16 फीसदी कम

उदयपुर : उदयपुर-राजसमंद की ग्रेनाइट फैक्ट्रियाें से निकलने वाले वेस्ट से पेवर ब्लाॅक बनाकर शहराें, गांवों में सड़कें तैयार की जाएंगी। एमपीयूएटी के सीटीएई काॅलेज में ग्रेनाइट वेस्ट से पेवर ब्लाॅक बनाने के डिजाइन का भारत सरकार से पेटेंट मिल गया है। इससे दो बड़े फायदे होंगे। इसमें सामान्य पेवर की तुलना में 15 प्रतिशत तक कम खर्च आएगा और मजबूती 18 प्रतिशत ज्यादा मिलेगी।

अभी स्लरी के कारण जलाशयाें का पानी प्रदूषित हाेने के साथ ही कई जगह जमीन भी बंजर हाे रही है। साल 2014 में बीएसटी के साइंस एंड टेक्नाेलाॅजी, नई दिल्ली की ओर से विवि काे यह प्राेजेक्ट मिला था। साल 2018 में रिसर्च पूरी हाेने के बाद पेटेंट के लिए फाइल सब्मिट कर दी गई थी। अब 6 साल बाद इस पेटेंट काे मंजूरी मिल गई है।

ग्रेनाइट में 70 प्रतिशत तक सिलिका, इसी से मिलती है मजबूती

देश में लाइट, मीडियम और हैवी ड्यूटी के पेवर ब्लाॅक बनाए जाते हैं। विवि ने स्लरी से हैवी ड्यूटी पेवर ब्लाॅक तैयार किए गए हैं। इसे 30 एमपी (मेगा पास्कल, प्रेशर मापने की इकाई) का बनाया है।

सामान्य पेवर ब्लाॅक में सीमेंट, रेत, गिट्टी का मिश्रण किया जाता है। इसमें एक क्यूबिक मीटर में 380 किलाे सीमेंट की जरूरत पड़ती है। वहीं स्लरी से बने इन पेवर ब्लाॅक में एक क्यूबिक मीटर में 323 किलाे सीमेंट का उपयाेग किया जाता है। ग्रेनाइट का वेस्ट मिक्स करने से सीमेंट की मात्रा 15 प्रतिशत तक कम हाे जाती है। वहीं ग्रेनाइट में सिलिका की मात्रा ज्यादा हाेने से इसकी मजबूती 18 प्रतिशत बढ़ जाती है। ग्रेनाइट में सिलिका की मात्रा 70 प्रतिशत और मार्बल में 55 प्रतिशत पाई जाती है।

मार्केट में उतारने के लिए ली जा रही इंडस्ट्री की मदद
सीटीएई काॅलेज के सिविल अभियांत्रिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. त्रिलाेक गुप्ता ने बताया कि ग्रेनाइट वेस्ट से पेवर ब्लाॅक बनने से लाेगाें काे राेजगार के नए अवसर मिलेंगे। इन पेवर ब्लाॅक की लागत कम हाेने से निर्माण खर्च भी कम होगा।

सीमेंट-रेती-कंक्रीट से 1 पेवर ब्लाॅक बनाने की लागत 7 रुपए तक आती है। जबकि ग्रेनाइट स्लरी से बने एक ब्लॉक की लागत 6 रुपए आती है। विवि की ओर से मादड़ी, कलड़वास की कंपनियाें की मदद से प्राेडक्ट काे मार्केट में उतारने की याेजना बनाई जा रही है। इस तकनीक के जरिए विवि काे भी आय हाेगी।

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