मां ने लिखे नोट्स, IAS पिता ने बताया-क्या नहीं करना:पहली ही कोशिश में UPSC का एग्जाम पास किया, बोले- यूट्यूब से भी काफी समझा और जाना
मां ने लिखे नोट्स, IAS पिता ने बताया-क्या नहीं करना:पहली ही कोशिश में UPSC का एग्जाम पास किया, बोले- यूट्यूब से भी काफी समझा और जाना

जयपुर : संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सर्विस परीक्षा में जयपुर के विनायक कुमार ने 180वीं रैंक हासिल की है। विनायक राजस्थान के सीनियर आईएएस और गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव आनंद कुमार के बेटे हैं। विनायक कुमार ने इसी साल जयपुर के सवाई मानसिंह (SMS) मेडिकल कॉलेज से MBBS किया है।
विनायक ने बताया- यूपीएससी के नोट्स मेरी मम्मी ने लिखे। वे जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल में डॉक्टर हैं। उन्होंने मेरी काफी मदद की है। पिता ने हमेशा सही और गलत का फर्क समझाया है। क्या करना है और क्या नहीं, यह बताया।
पढ़िए विनायक का पूरा इंटरव्यू…

सवाल: किस तरह तैयारी की, इसके बारे में बताएं?
विनायक: मुख्य रूप से तो एकाग्रता के साथ लगा रहा। छह से आठ घंटे जो पढ़ाई होनी चाहिए, वही मैंने की। बाकी लक का रोल था, जिसे मैं कभी नहीं नकार सकता। लक अनकंट्रोलेबल फैक्टर है, जो मेरे फेवर में रहा।
सवाल: यह आपका कौनसा अटैम्प्ट था?
विनायक: मेरा पहला अटैम्प्ट था। तैयारी की बात की जाए तो मैं एग्जाम के आस-पास बैकलॉग (कार्य जिसे समय पर कर लिया जाना चाहिए) का ध्यान रखता था। एग्जाम के समय मैं सिर्फ शाम और डिनर के वक्त ब्रेक लेता था। बाकी जो पढ़ाई के बीच में ब्रेक लेता था, वहीं मेरे ब्रेक पूरे दिन के लिए काफी होते थे।

सवाल: पेरेंट्स से कितनी गाइडेंस मिलती थी?
विनायक: पापा से बहुत गाइडेंस मिली। वे हमेशा बताते रहते थे कि क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए। मम्मी ने बहुत मदद की है। मैंने अपने सारे नोट्स मम्मी से ही लिखवाकर तैयार किए हैं। ज्यादातर ये मैं खुद नहीं करता था। आईएएस की तरफ हमेशा से झुकाव था। पहले थोड़ा था। जब मैं एमबीबीएस पढ़ने लगा तो थोड़ा और ज्यादा हो गया, इसलिए यूपीएससी की तरफ आ गया।
सवाल: आईएएस की तरफ कैसे रुख किया?
विनायक: टेक्निकल बात करूं तो डॉक्टर्स में लंबी पढ़ाई है। मैं छोटी रेस का घोड़ा हूं। एक बार दौड़ लो, जितना दौड़ना हो। सोचा एक बार यूपीएससी में एफर्ट लगा लूं। मेरे लिए यह ठीक रहा। क्योंकि अगर में डॉक्टर की तरफ जाता तो छह साल की पढ़ाई अभी और रहती। इस कारण भी मैंने स्विच किया।
सवाल: मोटिवेशन कहां से मिलता था?
विनायक: पापा को छोड़ दें, क्योंकि वे सर्विस में हैं। हर साल कई कैंडिडेट इसमें सिलेक्ट होते हैं। उनको देखकर मेरा झुकाव हुआ और उनसे प्रेरणा भी मिली। उनसे गाइडेंस ले लेता था, लेकिन मोटिवेट नहीं हो पाता था। सच बताऊं तो मेरे लिए फीयर ज्यादा काम करता था। मैं मोटिवेट से उतना पढ़ नहीं पाया, जितना मैं फीयर (डर) से पढ़ पाया। अभी नहीं किया तो कब करेंगे, इस फैक्टर ने ज्यादा काम किया।

सवाल: उस डर के बारे में बताएं, जिस पर जीत कर आगे बढ़े?
विनायक: पहले तो जब टाइम कम था, उस वक्त फाइनल ईयर के एग्जाम आ गए थे। मैंने उस वक्त मेडिकल की पढ़ाई को छोड़ दिया। उसको पास करना भी बहुत बड़ा चैलेंज हो गया था। सिविल सर्विसेज की तरफ आने पर सोचा कि क्या मैं जल्दबाजी कर रहा हूं। मुझे एक साल रुक कर यहां आना चाहिए। फिर प्रीलिम्स के टाइम पर सीसेट को काफी टफ कर दिया था, लेकिन वह हो गया। उसे मैं लक मानता हूं। मेन्स में सेल्फ डाउट को मैंने आस-पास के लोगों से बातचीत करके दूर किया।
सवाल: सक्सेस का क्रेडिट किसे देंगे?
विनायक: सबसे पहले मैं परिवार को दूंगा। मम्मी, पापा और भैया ने पूरी मदद की है। मेरे फ्रेंड्स ने हमेशा सपोर्ट किया है। कभी ऐसा नहीं लगा कि उन्होंने मेरी बात नहीं समझी। यूट्यूब से मैंने काफी कुछ समझा और जाना है।
सवाल: तनाव से दूर करने के लिए क्या करते थे?
विनायक: मेडिकल फील्ड में काम करके यह तो सीख लिया कि टेंशन में रहकर कैसे काम करते हैं। कूल रहने के लिए मैं मम्मी के साथ आधे घंटे कॉलोनी में घूम लेता था। थोड़ी देर यूट्यूब पर वीडियो देख लिया। खाने के बाद थोड़ी देर टहल लिया। यही सब मैं करता था।

सवाल: अब क्या लक्ष्य रहेगा, किन मुद्दों पर काम करना चाहेंगे?
विनायक: मेरे पर्सनल विषय हेल्थ, एजुकेशन और लॉ एंड ऑर्डर। इन चारों विषयों पर काम करना चाहता हूं। वैसे ट्रेनिंग के वक्त भी काफी कुछ समझने का मौका मिलेगा।