झुंझुनूं के सरकारी अस्पतालों में मम्प्स बीमारी के टीके नहीं:हर दिन पहुंच रहे 15 से 20 मरीज, निजी क्लिनिक वसूल रहे दोगुना दाम
झुंझुनूं के सरकारी अस्पतालों में मम्प्स बीमारी के टीके नहीं:हर दिन पहुंच रहे 15 से 20 मरीज, निजी क्लिनिक वसूल रहे दोगुना दाम

झुंझुनूं : झुंझुनूं के सरकारी अस्पतालों में मौसमी बीमारियों से पीड़ित बच्चों का इलाज होना मुश्किल हो गया है। अस्पताल प्रबंधन के पास मौसमी बीमारियों के इलाज के लिए पर्याप्त सुविधाएं तो है, पर बच्चों को मम्प्स बीमारी के लगने वाले टीकें भी उपलब्ध नहीं है। इसी कारण अस्पतालों में बच्चों को टीके लगवाने लेकर आ रहे परिजनों को बैरंग लौटना पड़ रहा है।
दरअसल डेंगू, मलेरिया के साथ मम्प्स के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है। जिले में हर दिन 20 से 25 बच्चे मम्प्स की चपेट में आ रहे हैं, लेकिन सरकारी अस्पतालों में टीके अभी तक नहीं पहुंचें है।
निजी क्लिनिक में टीके लगवाने को मजबूर
वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ जितेन्द्र भाम्बू ने बताया कि राजकीय बीडीके अस्पताल झुंझुनूं में मम्प्स के उपचार की पूर्ण सुविधाएं उपलब्ध हैं। मम्प्स से गंभीरता काफ़ी कम है। रोगी 3-5 दिन में ठीक हो रहे हैं। फिर भी भर्ती होने पर पूर्ण उपचार की सुविधा उपलब्ध है।एक बार मम्प्स होने के बाद दुबारा नहीं होता है। इससे इम्यूनिटी बन जाती है।
युआईपी प्लान में टीकाकरण नहीं है। परंतु सहयोगात्मक एवं लक्षणात्मक उपचार से अधिकांश रोगीयों को स्वस्थ किया जा सकता है।
मम्प्स एक संक्रामक रोग है, जो वायरस के कारण होता है। सामान्यतः बच्चों में बुखार आने के बाद एक-दो दिन में चेहरे पर सूजन और जबड़े के नीचे सूजन आ जाती है।
जबड़े में सूजन के चलते भारी खाना खाने से दर्द होता है। निगलने में दिक्कत होती है। यह करीबी व्यक्तिगत संपर्क में आने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। हालांकी जैसे जैसी गर्मी बढ़ेगी इस बीमारी असर खत्म होना शुरू हो जाएगा।
वायरस जनित बीमारी, सावधानी जरूरी
उन्होंने बताया कि अभिभावक इसमें लापरवाही नहीं बरते, मम्प्स का उपचार थोड़ा कठिन है, क्योंकि यह एक वायरस है। इसलिए यह अन्य दवाओं और एंटीबायोटिक दवाओं पर भी प्रतिक्रिया नहीं करता। दर्द को कम करने और मम्प्स के अन्य लक्षणों के इलाज के लिए चिकित्सक को दिखाए। बच्चों को स्कूल नहीं भेजे और उन्हें प्रोपर आराम करने देंवे।