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अशोक गहलोत का जादू: कैसे कर लेते हैं सब, पार्टी विधायक और हाईकमान दोनों खुश


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राजस्थान

अशोक गहलोत का जादू: कैसे कर लेते हैं सब, पार्टी विधायक और हाईकमान दोनों खुश

अशोक गहलोत का जादू: कैसे कर लेते हैं सब, पार्टी विधायक और हाईकमान दोनों खुश

साल 1989 में आई अमिताभ बच्चन की फिल्म जादूगर का मशहूर गाना आजकल कांग्रेसी हलकों में गूंज रहा है. हर कोई पूछ रहा है, जादूगर का जादू, हाथों का कमाल है, करते हो तुम कैसे सबका ये सवाल है.गाने के रूप में ये सवाल राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पूछा जा रहा है. सवाल जायज भी है. कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे चल रहे गहलोत ने ऐसा सियासी ड्रामा रचा कि वो खुद ब खुद इस दौड़ से बाहर हो गए. बाद में वो आलाकमान की जबरदस्त नाराजगी के बावजूद अपनी कुर्सी बचाने में भी कामयाब हो गए. गहलोत इस जादू से हर कोई हैरान है.

क्या टल गया है गहलोत की कुर्सी पर खतरा?

हालांकि माना जा रही है कि गहलोत की कुर्सी पर अभी खतरा अभी टला नहीं है. कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा जा सकता है. लेकिन गहलोत और उनकी राजनीतिक दांव पेंचों पर पैन नजर रखने वालों का कहना है कि उस स्थित के लिए गहलोत ने पहले से ही कोई अकाट्य दांव तैयार कर कर रखा होगा. समय आने पर वो उसके सामने लाएंगे. इसकी झलक गहलोत ने दिखा दी है. खबर है कि गहलोत ने राजस्थान के प्रभारी महासचिव अजय माकन को प्रदेश में ये सर्वे कराने को कहा है कि कांग्रेस किसके नेतृत्व में जीत सकती है. कांग्रेस विधायक दल में वो 90 से ज्यादा विधायक गहलोत के साथ हैं. मुख्यमंत्री बदलने की स्थिति में ये तमाम विधायक इस्तीफा देने को तैयार हैं. आलाकमान के लिए इस धमकी को नजरअंदाज करके नेतृत्व परिवर्तन करना आसान नहीं होगा.

गहलोत के जादू के सामने फेल हो गई राहुल की तिकड़म

दरअसल राहुल गांधी चाहते थे कि अशोक गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष बनवा दें ताकि वो अपने चहेते सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनवा सके. इसकी भनक लगते ही गहलोत ने ऐसा जादू दिखाया कि अपनी ही जग हंसाई करवाके भी वो अपनी कुर्सी बचा ले गए. अब अगले साल होने वाले विधानसभा से पहले राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन के बारे में सोचना कांग्रेस आलाकमान के लिए मुश्किल होगा. राजस्थान में भी कांग्रेस की स्थिति पंजाब की तरह हो सकती है. पंजाब में भी चुनाव से कुछ महीने पहले आपसी खींचतान के चलते कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया था. लेकिन प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की हठधर्मी के चलते कांग्रेस में उठापटक बंद नहीं हुई. नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस ने अपने पुराने और दस जनपथ के वफादार कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसा कद्दावर नेता भी खो दिया और सत्ता भी हाथ से चली गई. जिस सिद्धू की खातिर से सब किया वो हत्या के पुरान मामले में जेल चले गए. कम से कम इस तरह के बुरे नतीजे वाले प्रयोग को कांग्रेस राजस्थान में नहीं दोहराना चाहेगी.

राजस्थान मे अटका था गहलोत का मन

कांग्रेस के मौजूदा आलाकमान के निर्देश पर जब अशोक गहलोत अध्यक्ष पद के लिए पर्चा भरने का ऐलान कर चुके थे तो फिर अचानक वो उससे मुकर क्यों गए? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए हमें राजस्थान कांग्रेस में हुए सियासी ड्रामे को बारीकी से समझना होगा. ये बात किसी से छिपी नहीं है कि अशोक गहलोत कभी भी राजस्थान छोड़कर दिल्ली आने इच्छुक नहीं थे. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के ऐलान के साथ ही उनका नाम सबसे आगे चल रहा था. गहलोत हमेशा अपने लोगों को यह समझाते रहे कि मैं कही भी रहूं, लेकिन आप लोगों से दूर नहीं जाऊंगा. इसी लिए गहलोत ने कहा था कि वो राजस्थान मुख्यमंत्री रहते हुए भी कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाल सकते हैं. वो ऐसा
करने में पूरी तरह सक्षम हैं. लेकिन राहुल गांधी ने एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत पर जोर दिया तो गहलोत बेमन से राजस्थान का मुख्यमंत्री पद छोड़ने को राजी हो गए थे.

किसने किसका भरोसा तोड़ा?

अशोक गहलोत को पूरा भरोसा था कि पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें अगले कुछ महीने राजस्थान के सीएम की कुर्सी से नहीं हटाया जाएगा. आलाकमान से अपनी नज़दीकी की वजह से उन्हें ये भरोसा था. इसी के चलते वो अपने करीबी मंत्रियों और विधायकों से अगले साल जनवरी में पेश किए जाने वाले मौजूदा सरकार के आखिरी बजट की तैयारी में जुटने के कह चुके थे. लेकिन जब अध्यक्ष के चुनाव के लिए पर्चा भरने से पहले राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन के लिए विधायक दल की बैठक बुलाने के लिए आलाकमान ने प्रभारी अजय माकन और पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजा तो गहलोत को सारा माजरा समझ आ गया. फिर उन्होंने अपने जादू का कमाल दिखा दिया. कई दिन चले सियासी ड्रामे में कई मोड़ आए. कई बार ऐसा लगा कि गहलोत ने सब कुछ गंवा दिया है. पार्टी में पचास साल में कमाई इज्जत का कबाड़ा कर दिया है. लेकिन उनके जादू के सामने सारी तिकड़में धरी की धरी रह गईं.

गहलोत ने कैसे पलटा गेम?

दरअसल पहले गहलोत ने ‘एक व्यक्ति एक पद’ के कांग्रेसी फार्मूले को भी ये कहकर खारिज कर दिया था कि उन पर ये लागू नहीं होगा क्योंकि वो सीएम के पद पर चुनाव जीत कर पहुंचे है, किसी के मनोनयन से नहीं. राहुल गांधी को अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने के लिए तैयार करने के नाम पर गहलोत केरल पहुंचे, इस समय तक सभी लोग गहलोत की बातों पर भरोसा कर रहे थे. लेकिन जब राहुल गांधी ने साफ कर दिया कि वो अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ने जा रहे और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर एक व्यक्ति एक पद का फार्मूला लागू होगा. बस यहीं से अशोक गहलोत की बेचैनी बढ़ गई. राहुल के इस ऐलान के बाद से राजस्थान कांग्रेस में बगावत की पटकथा लिखने का काम शुरू हो गया. इसके लेखक और निर्देशक दोनों ही अशोक गहलोत को माना जा रहा है.

सियासी ड्रामे से चित किया आलाकमान को

आलाकमान चाहता था कि अशोक गहलोत पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दें और फिर अध्यक्ष के चुनाव के लिए अपना पर्चा भरें. ये अशोक गहलोत को मंजूर नहीं था. लिहाजा उन्हीं के इशारे पर विधायकों के प्रतिनिधियों ने पर्यवेक्षकों के सामने शर्त रख दी कि वो आलाकमान की तरफ से भेजे गए एक लाइन के प्रस्ताव पर दस्तखत करने को तैयार हैं लेकिन इस पर अमल नया अध्यक्ष ही करे. ये आलाकमान को किसी सूरत मंजूर नहीं था. आलाकमान ने विधायकों के नहीं मिलने और आधिकारिक बैठक के समय अलग जगह पर बैठक करने को अनुशासनहीनता तो माना लेकिन गहलोत को समर्थन में 90 से ज्यादा विधायकों का समर्थन देख कोई ठोस कार्रवाई करने का जोखिम उठाने से परहेज किया. सिर्फ कुछ नेताओं को कारण बताओ नोटिस भेज कर खानापूर्ति कर ली.

गहलोत पहले भी दिखा चुके हैं जादू

सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद अशोक गहलोत हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के बाद तीन बार मुख्यमंत्री बनने वाले
अकेले नेता हैं. सबसे 1998 में कांग्रेस उनके नेतृत्व में 153 सीटें जीती थी. इस चुनाव में अपने कद्दावर नेता भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व में
बीजेपी महज 33 सीटों पर सिमट गई थी. हालांकि 2003 में अगला विधानसभा चुनाव नो वसुंधरा राजे के मुकाबले बुरी तरह हारे. बीजेपी 150 और कांग्रेस 56 सीटें जीती थी. 2008 में कांग्रेस ने 96 सीटें जीत कर सत्ता में वापसी की. अशोक गहलोत बीएसपी के 6 और कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से मुख्यमंत्री बने. पूरे पांच साल रहे. लेकिन 2013 में फिर वसुंधरा राजे के मुकाबले बुरी तरह हारे. तब कांग्रेस को उनके नेतृत्व में सिर्फ 21 सीटें ही मिली थी. बाद में उन्हें केंद्र की राजनीति में लाकर सचिन पायलट को राजस्थान कांग्रेस की कमान सौंपी गई. 2028 में कांग्रेस 96 सीटें जीती. ये अशोक गहलोत के जादू का हगी कमाल था कि वो फिर मुख्यमंत्री बन गए. इस बार भी बीएसपी के 6 विधायकों और कुछ निर्दलीय विधायकों का उन्हें समर्थन मिला. दोनों बार ही अशोक गहलोत के जादू ने बीएसपी के विधायकों को कांग्रेस मे शामिल करके विधानसभा में बीएसपी को गायब कर दिया.

अशोक गहलोत बतौर मुख्यमंत्री दो बार अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. अगर तीसरी बार भी वो अपना कार्यकाल पूरा कर लेते हैं तो ये रिकॉर्ड होगा. सचिन पायलट खुद को मुख्यमंत्री बनाए जाने की जिद पर अड़े हुए हैं. लेकिन राजस्थान के सियासी ड्राम के बाद सोनिया गांधी से हुई उनकी मुलाकात के बाद उनके तेवर थोड़ा ढीले पड़े हैं. बताया जाता है कि उन्हें अपने पक्ष में विधायकों का मन टटोलने को कहा गया है. विधायक पहले ही गहलोत के जादू में फंसे हुए हैं. फिलहाल तो यही लगता है कि राजस्थान की राजनीति में गहलोत का जादू ही सिर चढ़ कर बोल रहा है. फिलहाल तो इसके आगे सचिन की दाल गलती नहीं दिख रही.

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