जो समाज अपराध को अपराध न कहे, उसका पतन निश्चित है!

हमारे घरों में अश्वेत, मुसलमान या प्रवासियों पर जिन चुटकुलों पर हम हँसते हैं, जो फब्तियाँ कसते हैं या उनके लिए जिस नफ़रत भरी ज़ुबान का इस्तेमाल करते हैं, वह धीरे धीरे घृणा को गहरा करती है और फिर वह शारीरिक हिंसा में जगह जगह प्रकट होती है। जैसा कनाडा के प्रधानमंत्री ने किया, वैसा ही न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री ने किया जब एक मस्जिद पर हमला हुआ। वे ख़ुद उस मस्जिद तक गईं।वहाँ सामूहिक नमाज़ में हिस्सा लिया और मुसलमानों के साथ एकजुटता ज़ाहिर करने के लिए सर को ढँका भी।
“ऐसी सरकार से यह उम्मीद करना मूर्खता है कि वह उत्तर प्रदेश के एक गाँव में एक मुसलमान बच्चे के साथ की गई हिंसा पर कुछ बोलेगी। फिर भी यह माँग की ही जानी चाहिए। यह उम्मीद सरकार से बनी रहनी चाहिए अगर हम जनतांत्रिक समाज और राज्य की कल्पना में अभी भी विश्वास करते हैं। हमें इसका भी अहसास बना होना चाहिए कि वह क्या चीज़ है जो अब राजकीय स्वभाव से ग़ायब हो चुकी है और किसे बहाल किया जाना है।
तृप्ता त्यागी के इस इत्मीनान की वजह क्या है? इस घटना की ख़बर मिलते ही भारतीय जनता पार्टी के नेता बच्चे के साथ हिंसा करनेवाली तृप्ता त्यागी के साथ सहानुभूति जतलाने गाँव पहुँच गए। साथ ही त्यागी समाज के लोग भी। उनके अलावा नरेश टिकैत जैसे लोग भी पहुँचे जिन्हें उनके अपने समुदाय का नेता माना जाता है। ये सब मिलकर तृप्ता त्यागी के अपराध पर लीपापोती करने में जुट गए हैं।बड़े मीडिया ने भी तृप्ता त्यागी को बेचारी औरत के रूप में चित्रित करना शुरू कर दिया है।टिकैत ने साफ़ साफ़ कहा कि उनका इतना ज़ोर तो है ही कि वे त्यागी के ख़िलाफ़ एफ़आईआर रद्द करवा दें।