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कोटा : भूखे पेट पढ़ी, एक वक्त चटनी-रोटी खाकर NEET पास की:ऑटो ड्राइवर पिता की मौत के बाद घर खाली करने की आ गई थी नौबत


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कोटा : भूखे पेट पढ़ी, एक वक्त चटनी-रोटी खाकर NEET पास की:ऑटो ड्राइवर पिता की मौत के बाद घर खाली करने की आ गई थी नौबत

भूखे पेट पढ़ी, एक वक्त चटनी-रोटी खाकर NEET पास की:ऑटो ड्राइवर पिता की मौत के बाद घर खाली करने की आ गई थी नौबत

कोटा : ‘मुश्किलें हमें तब दिखती हैं, जब हमारा ध्यान लक्ष्य पर नहीं होता’ कोटा की प्रेरणा सिंह (20) ने भी ऐसा ही करके दिखाया। पिता ऑटो ड्राइवर थे।

उनकी मौत हो गई। घर पर 27 लाख का लोन था तो बैंक ने घर खाली करने का नोटिस लगा दिया। परिवार की कमाई इतनी भी नहीं थी की तीन वक्त का भरपेट खाना खा पाएं।

परिवार एक वक्त चटनी से रोटी खाकर गुजारा करता था, लेकिन इन सबके बीच प्रेरणा अपने लक्ष्य पर डटी रही। भूखे पेट रहकर पढ़ाई की और आखिर नीट क्लीयर कर लिया।

कोटा के महावीर नगर में रहने वाली प्रेरणा ने नीट यूजी में 686 नंबर हासिल किए हैं। इन नंबरों से उसे सरकारी मेडिकल कॉलेज में आसानी से एडमिशन मिल जाएगा।

प्रेरणा की सफलता के बाद परिवार में खुशियों का माहौल है। प्रेरणा के चेहरे पर मुस्कान के साथ साथ आज पिता की भी याद है। इन सब मुश्किलों ने उसे तोड़ा नहीं बल्कि और मजबूत किया। प्रेरणा की सक्सेस के पीछे उसकी मां का भी बड़ा रोल है।

आगे पढ़िए प्रेरणा की सफलता की कहानी उसी की जुबानी…

पहले पिता की मौत, आर्थिक स्थिति खराब, बैंक का कर्ज और फीस की परेशानी, लेकिन इन सब मुश्किलों ने प्रेरणा को नई हिम्मत दी।
पहले पिता की मौत, आर्थिक स्थिति खराब, बैंक का कर्ज और फीस की परेशानी, लेकिन इन सब मुश्किलों ने प्रेरणा को नई हिम्मत दी।

दसवीं में थी तब हुई पिता की मौत
2018 मैं दसवीं क्लास में पढ़ रही थी। तब पिता बृजराज सिंह की कैंसर के कारण मौत हो गई थी। पापा का जगह-जगह इलाज करवाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। करीब तीन लाख रूपए खर्च हो गए, लेकिन आखिरकार उन्होंने दुनिया छोड़ दी। वो ऑटो चलाते थे। यही परिवार की कमाई का जरिया था। हम चार भाई-बहनों की परवरिश इसी से हो रही थी।

पिता की मौत ने परिवार को गहरे सदमे में डाल दिया था। फिर आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। मैं भी टूट गई थी, लेकिन मां ने सभी को संभाला। इसके बाद कोरोना आ गया। इससे परिवार के आर्थिक हालात और खराब हो गए। रिश्तेदारों के भरोसे घर चला। मां के परिवार और घरवालों ने मदद की। मां की पांच सौ रूपए पेंशन आती थी। जैसे-तैसे कर इससे हम भाई-बहनों को पढ़ाया।

प्रेरणा ने दस से बारह घंटे तक खुद पढ़ाई की। कोचिंग में पढ़ाई के बाद घर पर रिविजन करती, जो समझ नहीं आता डाउट क्लास में पूछती थी।
प्रेरणा ने दस से बारह घंटे तक खुद पढ़ाई की। कोचिंग में पढ़ाई के बाद घर पर रिविजन करती, जो समझ नहीं आता डाउट क्लास में पूछती थी।

पिता का ऑटो आज भी घर के बाहर खड़ा

प्रेरणा ने बताया- पिता का ऑटो आज भी मकान के बाहर ही खड़ा है। जब भी ऑटो को देखती हूं, पिता की याद आती है। पैसे बचाने के लिए कभी कोचिंग जाने के लिए कोई साधन का उपयोग नहीं किया।

बल्कि साइकिल से ही आया जाया करती थी। कोचिंग के बाद दस से बारह घंटे खुद पढ़ाई करती थी। पढ़ने वाले कमरे में एक बोर्ड लगा रखा है। जब भी कोई परेशानी आती बार-बार उसे सॉल्व करती। जब तक समझ नही आता, बार बार सवाल करती थी। टीचर्स का भी पूरा सपोर्ट मिला।

प्रेरणा का कहना है कि मां-बाप के आशीर्वाद से ही उसे ये सक्सेस मिली है। वो चाहती है कि किसी भी बच्चे की पढ़ाई पैसों की तंगी के कारण कभी ना रुके।
प्रेरणा का कहना है कि मां-बाप के आशीर्वाद से ही उसे ये सक्सेस मिली है। वो चाहती है कि किसी भी बच्चे की पढ़ाई पैसों की तंगी के कारण कभी ना रुके।

पिता कहते थे बेटी नाम रोशन करेगी
प्रेरणा ने कहा- मेरे पापा हमेशा कहते थे कि मेरी बेटी प्रेरणा नाम रोशन करेगी। उस समय तो मैं पढ़ने में भी अच्छी नहीं थी। उन्हें मेरे पर खूब विश्वास था। वह थे तब तक कोई दिक्कत नहीं आने दी। उनके जाने के बाद मैनें ठान लिया कि पापा का सपना पूरा करना है। डॉक्टर बनना चाहती थी, पढ़ाई की।

कोचिंग की तरफ से भी आर्थिक मदद मिली। आज मैं गर्व से कह सकती हूं कि मैंने मेरे पापा का नाम रोशन कर दिया। हालांकि, यह देखने के लिए वह हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन आज वह जहां भी होंगे खुश होंगे।

घर के बाहर पिता का ऑटो खड़ा है। इसे देख हमेशा प्रेरणा पिता को याद करती है। आज उसने पिता के सपने को पूरा कर दिया।
घर के बाहर पिता का ऑटो खड़ा है। इसे देख हमेशा प्रेरणा पिता को याद करती है। आज उसने पिता के सपने को पूरा कर दिया।

चटनी के साथ रोटी खाकर रहे, बैंक ने घर पर लगा दिया था नोटिस
प्रेरणा की मां माया कंवर ने बताया- मैं ही हार जाती तो बच्चों का क्या होता। मैनें हिम्मत नहीं हारी। यह स्थिति थी कि घर में सब्जी भी नहीं होती थी।

एक समय रोटी के साथ प्याज यहा लहसुन की चटनी बनाकर एक वक्त का खाना खाते थे। पढ़ाई करते रहते थे। बच्चे भी बहुत जल्द समझदार हो गए। उन्हें अगर दस रूपए भी दिए तो वह कई दिन तक संभालकर रखते थे। ये सोचकर की घर में काम आ जाऐंगे।

चार बच्चे थे, चारों की पढ़ाई में कोई कमी नही आने दी। रिश्तेदारों से उधार लिया। करीब दो लाख का तो उधार ही है। इसके अलावा बैंक का केस भी चल रहा है। पति की मौत के बाद मकान की किस्त नही जा सकी। इसके चलते बैंक वाले नोटिस चिपका कर गए।

हालांकि, बाद में कुछ किश्तें इधर उधर से जमा करके दी। प्रेरणा के पिता के इंश्योरेंस का भी मामला चल रहा है। घर का केस भी चल रहा है। काफी परेशानियों में बच्चे पाले हैं।

मैं शब्दों में बता भी नही सकती कि कितनी परेशानियां आई। जो अभी भी चल रही हैं। अब जब बेटी ने नाम रोशन कर दिया तो सभी परेशानियां छोटी लगती हैं।

इसी कमरे में बैठकर प्रेरणा ने पढ़ाई की, कमरे में सिर्फ बैठने जितनी जगह है।
इसी कमरे में बैठकर प्रेरणा ने पढ़ाई की, कमरे में सिर्फ बैठने जितनी जगह है।

बैठने जितनी जगह में रहकर की पढ़ाई
प्रेरणा का परिवार पिता के बनाए मकान की तीसरी मंजिल पर रह रहा है। इस मकान के निचले हिस्से को हाल में ही किराये पर दिया है।

इस कमाई से फिलहाल परिवार का खर्चा चल रहा है। यहां ऊपरी मंजिल पर एक हॉल बना है। इसमें ईंटों पर प्लास्टर तक नहीं है। इसी एक हॉल में प्रेरणा का पूरा परिवार रह रहा है। रसोई भी इसी में है।

एक छोटा सा कमरा प्रेरणा के लिए है। इस कमरे में टेबल कुर्सी रखने के बाद बैठने के अलावा जगह नहीं बचती। इसी कमरे में रहकर प्रेरणा ने पढ़ाई की। प्रेरणा कहती है कि पढ़ाई के दौरान इसी कमरे में जैसे-तैसे सो जाती थी।

एक हॉल में पांच जनों का परिवार रहता है। खाना भी यहीं बनता है। अब प्रेरणा की मां रिश्तेदारों के साथ बेटी की सफलता में खुशी मना रही है।
एक हॉल में पांच जनों का परिवार रहता है। खाना भी यहीं बनता है। अब प्रेरणा की मां रिश्तेदारों के साथ बेटी की सफलता में खुशी मना रही है।

चारों भाई बहनों ने नहीं हारी हिम्मत
प्रेरणा की सबसे बड़ी बहन अनामिका बीएड कर रही हैं। भाई मानवेन्द्र ने जेईई मेन से एनआईटी में जगह हासिल की। वहीं, सबसे छोटा भाई विजय बीएससी कर रहा है। प्रेरणा ने बताया- उसकी 1033वीं रैंक है।

वह एमबीबीएस करने के बाद पीजी करेगी। उसके बाद मेडिकल फील्ड में ही रिसर्च करना चाहती है। वह चाहती है कि कैंसर जैसी बीमारियों में और खोज हो और मरीजों को बचाया जा सके।

रिजल्ट आने के बाद परिवार में खुशियों का माहौल है। रिश्तेदार घर पहुंचकर बधाई दे रहे हैं।
रिजल्ट आने के बाद परिवार में खुशियों का माहौल है। रिश्तेदार घर पहुंचकर बधाई दे रहे हैं।
मां माया कंवर ने मिठाई खिलाकर बेटी को बधाई दी तो उनकी आंख में खुशियों की चमक साफ देखी जा सकती थी।
मां माया कंवर ने मिठाई खिलाकर बेटी को बधाई दी तो उनकी आंख में खुशियों की चमक साफ देखी जा सकती थी।

नीट में टॉप-20 में कोटा कोचिंग के 5 स्टूडेंट्स
नीट के रिजल्ट में टॉप-20 में कोटा के पांच स्टूडेंट्स ने जगह बनाई है। पार्थ खंडेलवाल ने 715 अंक प्राप्त कर आल इंडिया रैंक-10 प्राप्त की है। इसके साथ ही पार्थ ने राजस्थान टॉप किया है।

715 अंक प्राप्त करके ही शशांक कुमार ने आल इंडिया रैंक 14 हासिल की है। बिहार स्टेट टॉप किया है।

शुभम बंसल ने 715 अंक प्राप्त कर एआईआर-16 और उत्तर प्रदेश टॉप किया है। अरनब पाती ने भी 715 अंकों के साथ आल इंडिया रैंक-19 और शशांक सिन्हा ने 712 अंक प्राप्त कर आल इंडिया रैंक 20 प्राप्त की है।

एनटीए के अनुसार इस बार 16 स्टूडेंट्स ऐसे हैं, जिन्होंने 715 अंक प्राप्त किए हैं। इन स्टूडेंट्स को आयु के मापदण्ड के आधार पर प्रवेश में वरीयता दी जा रही है।

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