400 साल पुराना अजबपुरा गांव:95% साक्षरता दर की अनूठी मिसाल, पुरानी धरोहर का किया कायाकल्प
400 साल पुराना अजबपुरा गांव:95% साक्षरता दर की अनूठी मिसाल, पुरानी धरोहर का किया कायाकल्प
रानौली : रानोली-पलसाना क्षेत्र से लगभग 7-8 किलोमीटर दूर स्थित अजबपुरा गांव अपनी ऐतिहासिक, धार्मिक और सामाजिक विशेषताओं के लिए जाना जाता है। करीब 400 साल पुराना यह गांव इतिहास, आस्था, शिक्षा और एकता की अनूठी मिसाल पेश करता है। यह गांव लगभग 400 साल पूर्व बसाया गया था और उस समय खंडेला रियासत के अधीन था। स्थानीय मान्यताओं की माने तो खंडेला के तत्कालीन राजा ने अपनी बेटी अजमल को यह गांव दहेज में दिया था, जिसके बाद इसका नाम अजबपुरा पड़ा। गांव में बलाई, कुमावत, ब्राह्मण और खाती सहित विभिन्न समाज के लोग निवास करते हैं।
पुराने हनुमान मंदिर की खास मान्यता
गांव का एक प्रमुख आकर्षण सालासर बालाजी की तर्ज पर बना पुराना बालाजी मंदिर है। ग्रामीणों का कहना है कि यहां पहले एक संत रहते थे जिनके पास एक शंख और एक गद्दी थी। ऐसी मान्यता है कि उस शंख की ध्वनि प्राकृतिक आपदाओं को रोक देती थी और गद्दी के उपयोग से कई बीमार लोग ठीक हो जाते थे।
लगभग 3000 बीघा में फैले इस गांव की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है। गांव के चारों ओर नदियां हैं और चारों दिशाओं में मंदिर स्थित हैं, जिससे यह धार्मिक महत्व का केंद्र बन गया है। गांव का पांच बाती चौराहा प्रदेश में अद्वितीय माना जाता है। पीपल चौक गांव के सामाजिक और राजनीतिक निर्णयों का केंद्र है, जहां लिए गए फैसले सर्वमान्य होते हैं।
गांव की धरोहर पुराने कुएं का कायाकल्प
गांव के बीच स्थित सदियों पुराना कुआं अजबपुरा की पहचान रहा है। समय के साथ जर्जर हुए इस कुएं का ग्रामवासियों ने सामूहिक सहयोग से कायाकल्प किया। लगभग डेढ़ लाख रुपए की लागत से कुएं की सफाई, मरम्मत और सुंदरी करण कराया गया। यह पूरा कार्य ग्रामवासियों के सहयोग से बिना किसी सरकारी सहायता के पूरा हुआ। कुएं के चारों ओर चबूतरे और रेलिंग बनाई गई है ताकि यह धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रहे।ग्रामीणों ने इसे गांव की आत्मा और इतिहास को पुनर्जीवित करने का प्रतीक बताया है। आज यह कुआं न केवल जल संरक्षण का उदाहरण है, बल्कि गांव की एकता और सांस्कृतिक चेतना का भी प्रतीक बन चुका है।
गांव की साक्षरता दर लगभग 95 प्रतिशत
अजबपुरा में बारहवीं तक का सरकारी स्कूल है, जहां कला विषय की पढ़ाई होती है। गांव की साक्षरता दर लगभग 95 प्रतिशत है और बालिकाओं में शिक्षा के प्रति विशेष रुचि देखी जाती है। ग्रामीण टाइल, मार्बल कार्य, दुकानों और कृषि के माध्यम से अपनी आजीविका चलाते हैं। हर वर्ष हरियाणा से आने वाले बत्तीसी संघ का यहां रुकना गांव की एक पहचान बन चुका है।
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