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स्वामी विवेकानंद का राजस्थान में 316 दिन का प्रवास, सबसे अधिक रहा खेतड़ी में 109 दिन का प्रवास


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स्वामी विवेकानंद का राजस्थान में 316 दिन का प्रवास, सबसे अधिक रहा खेतड़ी में 109 दिन का प्रवास

स्वामी विवेकानंद का राजस्थान में 316 दिन का प्रवास, सबसे अधिक रहा खेतड़ी में 109 दिन का प्रवास

खेतड़ी : खेतड़ी का नाम सामने आते ही मन में एक ऐसे संन्यासी की छवि उभरती है जो अपनी मृत्यु के 123 साल बाद भी देश के लाखों करोड़ों युवाओं को अनंत ऊर्जा से भर देते हैं। देश का वह युवा संन्यासी जो यहां आने से पहले नरेन्द्र था और यहां आकर विवेकानंद हो गया। शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में सनातन धर्म पर संबोधन देकर विश्व पटल पर प्रतिभा की छाप छोड़ने वाले स्वामी विवेकानंद का राजस्थान के 6 जिलों से आत्मीय लगाव रहा। इसी के चलते वे कई बार मरुधरा में आए। वहीं विवेकानंद ने जहां सनातन धर्म व आध्यात्म को विश्व में फैलाया, वहीं विवेकानंद को आगे बढ़ाने में राजस्थान का महत्वपूर्ण योगदान रहा। झुन्झुनूं जिले के खेतड़ी के अतिरिक्त वे अलवर, जयपुर, किशनगढ़, अजमेर, माऊंट आबू और जोधपुर भी आए थे।

स्वामी विवेकानंद पर पीएचडी करने वाले युवा लेखक व चिन्तक डॉ. जुल्फिकार के अनुसार राजस्थान में स्वामी विवेकानंद 6 जिलों में 316 दिन प्रवास पर रहें उसमें सबसे अधिक खेतड़ी में 109 दिन रूके थे। स्वामीजी अपने गुरु भाइयों को राजस्थान में मानवता के लिए निरंतर कल्याणकारी कार्य करने के लिए प्रेरित भी करते रहे। उनके गुरु भाई स्वामी अखंडानन्द वर्ष 1895 में खेतड़ी में रहें और उन्होंने शिक्षा के प्रचार – प्रसार संबंधी गतिविधियों एवं अन्य सेवाओं का सूत्रपात किया। सबसे पहले रामकृष्ण मिशन सेवा कार्य का प्रारंभ खेतड़ी में हुआ। खेतड़ी मिशन द्वारा अकाल पीड़ितों की सहायता का कार्य सबसे पहले किशनगढ़ में किया गया।

स्वामीजी की राजस्थान यात्राएं

अलवर यात्रा :  स्वामी विवेकानंद दिल्ली से दो बार अलवर गए। वर्ष 1891 व 1897 में वे 52 दिन अलवर में रुके। सर्वप्रथम अलवर के तत्कालीन महाराजा मंगलसिंह से मूर्ति – पूजा पर चर्चा की।

जयपुर यात्रा : इसके बाद वे अलवर से जयपुर गए। जयपुर में वर्ष 1891,1893 व 1897 में तीन बार गए। तीनों बार कुल 50 दिन रुके।
जयपुर में वेदान्ती पं. सूर्यनारायण से धर्म चर्चा की। पाणिनीय व्याकरण का ज्ञान उन्होंने यहीं से लिया।

किशनगढ़ और अजमेर यात्रा : जयपुर से वे किशनगढ़ और अजमेर गए। वर्ष 1891 में वे 4 दिन यहां रुके। यहां उन्होंने निम्बार्काचार्य मठ के दर्शन किए और वहां के आचार्यों से वार्तालाप की।
अजमेर में अकबर महल व ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह और पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर व सावित्री मंदिर में दर्शन किए।

माऊंट आबू की यात्रा : अजमेर से वे माऊंट आबू गए। वर्ष 1891 में वे 91 दिन यहां रुके। 4 जून 1891 को यहीं पर उनकी मुलाकात खेतड़ी के तत्कालीन राजा अजीत सिंह से हुई।

खेतड़ी यात्रा : माऊंट आबू से वे खेतड़ी आए। वर्ष 1891, 1893 व 1897 में कुल 109 दिन यहां रुके। यहां पं. नारायणदास शास्त्री से व्याकरण का अध्ययन किया। खगोल शास्त्र व वेदान्त पर चर्चा की। यहां तक की उन्हें स्वामी विवेकानंद नाम, पौशाक, पगड़ी व शिकागो यात्रा टिकट सब खेतड़ी राजा अजीत सिंह की देन रहीं।

जोधपुर यात्रा : जयपुर से वे जोधपुर गए। वर्ष 1897 में वे 10 दिन वहां रुके। जोधपुर के तत्कालीन राजा प्रतापसिंह के यहां अतिथि के रूप में रहें। यहां उनकी कई सभा और व्याख्यान हुए।

स्वामीजी का खेतड़ी से खास रिश्ता

  • विवेकानंद नाम खेतड़ी की ही देन हैं।
  • खेतड़ी के तत्कालीन राजा अजीत सिंह ने ही स्वामी विवेकानंद को पगड़ी व राजस्थान अंगरखा भेंट किया, जो उनकी खास पहचान बन गए।
  • वर्ष 1891 से 1897 के बीच स्वामी विवेकानंद खेतड़ी तीन बार आए और तीनों यात्राओं के दौरान खेतड़ी में 109 दिन रुके।
  • इसी श्रद्धा भक्ति से ओतप्रोत होकर स्वामी विवेकानंद ने खेतड़ी को अपना दूसरा घर कहा ।

एक्सपर्ट व्यू

स्वामी विवेकानंद ने अपने पत्रों में बार – बार राजस्थान की प्रशंसा की उनका राजस्थान के 6 जिलों से आत्मीय लगाव रहा। इसी कारण स्वामीजी राजस्थान में 316 दिन प्रवास पर रहें। – डॉ. जुल्फिकार, भीमसर, विवेकानंद पर शोधकर्ता और लेखक

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