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झुंझुनूं में BDK अस्पताल की टीम ने कराई हाई-रिस्क डिलीवरी:मां और बच्चा दोनों स्वस्थ होकर लौटे; भारी ब्लीडिंग से बचाव कर सफल ऑपरेशन किया


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झुंझुनूं में BDK अस्पताल की टीम ने कराई हाई-रिस्क डिलीवरी:मां और बच्चा दोनों स्वस्थ होकर लौटे; भारी ब्लीडिंग से बचाव कर सफल ऑपरेशन किया

झुंझुनूं में BDK अस्पताल की टीम ने कराई हाई-रिस्क डिलीवरी:मां और बच्चा दोनों स्वस्थ होकर लौटे; भारी ब्लीडिंग से बचाव कर सफल ऑपरेशन किया

जनमानस शेखावाटी सवंददाता : चंद्रकांत बंका

झुंझुनूं : झुंझुनूं के बीडीके अस्पताल के डॉक्टरों ने अपनी सतर्कता और त्वरित कार्रवाई से एक बार फिर जीवन बचाने की मिसाल पेश की है। ठिमाऊ बड़ी गांव की 25 साल निशा का प्रसव एक जटिल स्थिति में हुआ, जिसमें उसे पीपीएच (पोस्ट पार्टम हेमरेज) जैसी जानलेवा समस्या का सामना करना पड़ा। इस स्थिति में 30 से 60 प्रतिशत मामलों में मां को बचाना मुश्किल होता है, लेकिन अस्पताल की मातृ एवं शिशु इकाई में मौजूद विशेषज्ञ सेवाओं और टीम भावना ने इसे संभव कर दिखाया।

हाई-रिस्क केस की लगातार मॉनिटरिंग

निशा को शनिवार रात पॉलीहाइड्रोम्नियोस (एम्निओटिक द्रव का अधिक होना) और उच्च रक्तचाप की वजह से अस्पताल में भर्ती किया गया था। सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. सुशीला के मार्गदर्शन में, प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ और रेजिडेंट डॉक्टरों ने तुरंत उपचार शुरू किया। प्रसव से पहले लगातार ब्लड प्रेशर, भ्रूण की धड़कन और ऑनलाइन लेबर वॉच के जरिए उसकी निगरानी की गई।अत्यधिक जोखिम के बावजूद, निशा का सामान्य प्रसव हुआ।

प्रसव के तुरंत बाद सुबह करीब 9 बजे निशा को पीपीएच (प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्राव) हो गया। पॉलीहाइड्रोम्नियोस और एटोनिक गर्भाशय (ढीला गर्भाशय) के कारण रक्तस्राव बहुत तेज हो गया। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, उसे तुरंत ऑपरेशन थिएटर ले जाया गया। वहां निश्चेतना, प्रसूति रोग, शिशु रोग और सर्जन विशेषज्ञों की टीम ने मिलकर ऑपरेशन कर गर्भाशय से रक्तस्राव को नियंत्रित किया।

आईसीयू में 24 घंटे का संघर्ष

ऑपरेशन के बाद भी निशा का ब्लड प्रेशर बहुत कम था और खून की भारी कमी के कारण वह हाइपोवोलेमिक शॉक (रक्त की कमी से होने वाला झटका) में चली गई। उसे तुरंत ब्लड ट्रांसफ्यूजन, दवाइयों और सपोर्टिव केयर के साथ गंभीर आईसीयू में भर्ती किया गया। फिजिशियन, एनेस्थेटिस्ट और गायनेकोलॉजिस्ट की टीम ने 24 घंटे उस पर कड़ी नजर रखी।

रविवार को छुट्टी का दिन होने के बावजूद पीएमओ डॉ. जितेंद्र भाम्बू खुद आईसीयू पहुंचे और डॉक्टरों से लगातार संपर्क में रहे। उन्होंने जरूरी खून, दवाएं और अतिरिक्त स्टाफ की उपलब्धता सुनिश्चित की। इस दौरान निशा का ऑक्सीजन सेचुरेशन लगातार गिर रहा था और सांस की गति भी बहुत तेज हो गई थी।

टीमवर्क से लौटी जिंदगी

लगातार 48 घंटे की गहन चिकित्सा और डॉक्टरों की टीम भावना के चलते निशा की हालत में धीरे-धीरे सुधार होने लगा। एक सप्ताह के इलाज के बाद, वह पूरी तरह स्वस्थ होकर अस्पताल से डिस्चार्ज हुई। घर लौटने के बाद उसने अपने भाई को राखी बांधते हुए कहा कि यह उसके लिए एक नया जीवन है, जो अस्पताल की बेहतरीन सेवाओं की वजह से संभव हो पाया।

पीएमओ ने की टीम की सराहना

पीएमओ डॉ. भाम्बू ने बताया कि बीडीके अस्पताल की मातृ एवं शिशु इकाई में लेबर रूम, ऑपरेशन थिएटर, नवजात आईसीयू, ब्लड बैंक और गंभीर आईसीयू एक ही छत के नीचे मौजूद हैं, जिससे मरीजों को तुरंत इलाज मिल पाता है। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों और स्टाफ ने मिलकर बेहतरीन टीमवर्क का परिचय दिया है।

इस सफल इलाज में डॉ. सुशीला, डॉ. अनिता गुप्ता, डॉ. प्रियंका शेखसरिया, डॉ. पुष्पा रावत, डॉ. आकांक्षा, डॉ. मधू तंवर, डॉ. राजीव दुलड, डॉ. ललिता, डॉ. विजय झाझड़िया, रेजिडेंट डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यह घटना स्वास्थ्यकर्मियों और आम लोगों के लिए एक प्रेरणा है कि समय पर पहचान, त्वरित कार्रवाई और समन्वित टीमवर्क से सबसे जटिल परिस्थितियों में भी जीवन को बचाया जा सकता है।

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