[pj-news-ticker post_cat="breaking-news"]

सामाजिक, भावनात्मक एवं नैतिक शिक्षणः बदलते जीवन की एक नई रोशनी


निष्पक्ष निर्भीक निरंतर
  • Download App from
  • google-playstore
  • apple-playstore
  • jm-qr-code
X
आर्टिकलझुंझुनूंटॉप न्यूज़राजस्थानराज्य

सामाजिक, भावनात्मक एवं नैतिक शिक्षणः बदलते जीवन की एक नई रोशनी

सामाजिक, भावनात्मक एवं नैतिक शिक्षणः बदलते जीवन की एक नई रोशनी

लेखक : किरण कुमार, महात्मा गाँधी राजकीय विद्यालय, किठाना ब्लाकः चिड़ावा, झुंझुनूं

सामाजिक, भावनात्मक एवं नैतिक शिक्षणः बदलते जीवन की एक नई रोशनी : विद्यालय में वह बच्ची आज पहली बार खुश दिखी। उसके चेहरे पर एक स्पष्ट मुस्कान थी। मैंने हल्के-फुल्के अंदाज में पूछा, “क्या बात है, बच्चे? आज इतना खुश क्यों हो?” उसने थोड़ा सकुचाते हुए जवाब दिया, “सर, आप बहुत अच्छे हो।” मेरी जिज्ञासा बढ़ी, क्योंकि यह वही बच्ची थी जो हमेशा उदास और परेशान दिखती थी। उसकी मुस्कान के पीछे की कहानी कुछ दिन पहले की एक गतिविधि से जुड़ी थी, जब कक्षा में सी लर्निंग की चेक-इन गतिविधि हो रही थी। बातचीत के दौरान मैंने बच्चों से पूछा कि कितने ऐसे हैं जिनकी अपनी माँ से अक्सर लड़ाई हो जाती है। कुछ बच्चों ने हाथ उठाए, और उनमें यह बच्ची भी थी। गहराई से जानने पर पता चला कि उसकी माँ बचपन से ही बोलने में असमर्थ थीं। वे इशारों से अपनी बात कहने का प्रयास करतीं, लेकिन यह बच्ची उन इशारों को ठीक से समझ नहीं पाती थी। माँ को लगता था कि उनकी बेटी जानबूझकर उन्हें अनदेखा करती है, जिससे वे नाराज हो जाती। बदले में, बच्ची भी गुस्से में चिल्लाने लगती और कई बार नाराज होकर खाना भी नहीं खाती। समस्या का समाधान खोजने के लिए मैंने इस बच्ची को सामाजिक, भावनात्मक एवं नैतिक शिक्षण की गतिविधियों से परिचित करवाया। इमोशनल व्हील, इमोशन ट्री और रेसिलियंस जोन जैसी रणनीतियों के माध्यम से उसे अपनी भावनाओं को पहचानने और प्रबंधित करने की कला सिखाई गई। हेल्प नाउ रणनीतियों, ग्राउंडिंग और रिसोर्सेस के अभ्यास से उसने अपने भीतर शांति और आत्मनियंत्रण विकसित किया। आज, वहीं बच्ची जब अपनी माँ के इशारों को समझ नहीं पाती, तो नकारात्मक प्रतिक्रिया देने के बजाय मुस्कुरा देती है। उसकी माँ उसे गले से लगा लेती हैं, और दोनों की आँखों से बहते आँसु, भावनात्मक जुड़ाव के इस नए स्तर को दशति हैं। भावनात्मक शिक्षाः एक नई दिशा सी लर्निंग ने इस बच्ची की जिंदगी बदल दी, और सिर्फ इसी की नहीं, बल्कि मेरे विद्यालय के कई अन्य बच्चों की भी। पहले वे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते थे, लेकिन लगातार किए गए अभ्यासों से उनके व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आया। एक छात्रा, खुशबू, बताती है, “मैं छोटी-छोटी बातों पर गुस्से में आकर बर्तन फेंक देती थी, लेकिन अब में शांत रहती हूँ।” प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक बताते हैं कि किशोरावस्था एक तनावपूर्ण और संघर्षों से भरी अवस्था होती है। इस दौरान किशोर मानसिक और शारीरिक बदलावों को पूरी तरह समड़ा नहीं पाते, जिससे वे विद्रोह, असंतोष, प्रेम और आकर्षण जैसी भावनाओं में उलड़ा जाते हैं। यदि सही मार्गदर्शन न मिले, तो यह भटकाव का कारण बन सकता है। ऐसे में सी लर्निंग एक सशक्त उपकरण के रूप में उभरता है, जो इस उम्र के बच्चों को न केवल अपनी भावनाओं को समझने में मदद करता है, बल्कि उन्हें स्वस्थ और सकारात्मक दिशा भी प्रदान करता है। मैं अपने विद्यालय में एक विषय शिक्षक के रूप में इन गतिविधियों का अभ्यास करवाता हूँ और इसके प्रभाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। सी लर्निंगः हर स्कूल में अनिवार्य क्यों? मेरा सुझाव है कि सी लर्निंग को हर विद्यालय में अनिवार्य किया जाए और इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए। यह केवल बच्चों के लिए ही नहीं, बल्कि शिक्षकों और समुदाय के लिए भी लाभकारी होगा। जब पूरा समाज भावनात्मक रूप से सशक्त होगा, तो एक सुंदर, सहृदय और संवेदनशील समाज का निर्माण संभव होगा। हमें शिक्षा को केवल जानकारी देने तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि इसे बच्चों के समग्र विकास का साधन बनाना चाहिए। और सी लर्निंग इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

लेखक : किरण कुमार, महात्मा गाँधी राजकीय विद्यालय, किठाना ब्लाकः चिड़ावा, झुंझुनूं

Related Articles