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रोज़ा (उपवास) की महत्ताः मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से – प्रोफेसर डॉ एम. एम. शेख़


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रोज़ा (उपवास) की महत्ताः मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से – प्रोफेसर डॉ एम. एम. शेख़

रोज़ा (उपवास) की महत्ताः मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से - प्रोफेसर डॉ एम. एम. शेख़

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान

चूरू : जिला मुख्यालय स्थित ‌ राजकीय लोहिया महाविद्यालय में प्रोफेसर डॉ एम .एम. शेख ने कहा रोज़ा जिसे उपवास भी कहा जाता है. इस्लाम के पांच प्रमुख स्तंभों में से एक ‌ रोजा है ।और यह मुसलमानों के लिए रमजान के महीने में एक अनिवार्य धार्मिक कर्तव्य है। हाला कि रोजा एक धार्मिक अनुष्ठान है, लेकिन इसका प्रभाव न केवल अतिक और धार्मिक जीवन पर, बल्की शारीरिक, मानसिक और ‌। पर्यावरण दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण होता है। इस से हमे रोजा के मानसिक, शारीरीरिक, आध्यात्मिक और पर्यावरणीय प्रभाव रहता है। माहे रमजान में ‌ इस्लाम में दान और इबादत का ‌ बहुत ही महत्व है। रोज़ा (उपवास) का धार्मिक महत्व रोजा रखना इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, और यह प्रत्येक सक्षम मुसलमान पर रमजान के महीने में अनिवार्य रूप से लागू होता है।

रोजे का मुख्या उद्देश्य स्वयं को पवित्र करना पाक साफ रहना और अल्लाह के प्रति आस्था को प्रगाढ़ करना है। रमजान का महीना मुस्लिमों के लिए आध्यात्मिक उन्नति का सबब होता है, जिसमें वे अपने गुनाहों से तौबा करते हैं और अपनी आत्मा को शुद्ध करने की कोशिश करते हैं।रोज़ा रखने से इंसान में सब्र और आत्मनिर्णय की भावना का विकास होता है। यह न केवल दीन-ईमान को मजबूत करता है, बल्की एक मुसलमान को अपने जीवन के उद्देश्य और अल्लाह के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास भी कराता है। रोजा के दौरान मुसलमानों को अपनी अन्यायपूर्ण और बुरी आदतों से छुटकारा मिलता है।

यह एक मौका है जब वो अपनी निंदा, झूठ बोलने और बुरी निगाहों को नियंत्रित करते है।जकात, इस्लाम में धन का एक फिहद हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दान करने की अनिवार्य व्यवस्था है। यह हर सक्षम मुसलमान पर सालाना दान देने का कर्तव्य है, और जकात का उद्देश्य समाज में गरीबों की सहायता जकात से निर्धन व्यक्तियों को सहारा मिलता है, जिससे वे अपने जीवन में बेहतर स्थिति में आ सकते हैं। दान देकर । संपत्ति का शुद्धिकरण होता है और यह माना जाता है कि इससे व्यक्ति की संपत्ति में वृद्धि होती है।फितरा का महत्व रमजान के महीने के अंत में, फितरा या जकात-उल-फित्र देना एक विशेष धार्मिक कर्तव्य है। जिसे हर मुसलमान पर रमजान के महीने के अंत में देना आवश्यक होता है। उद्देश्य गरीबों को रमजान के त्योहार के दिन ‌ सबको खुशी प्रदान करना है । इस खुशी के अवसर पर सब सामिल हो सके।त्यौहार के समय मददः फितरा एक प्रकार का उपहार है. जिससे वे भी ईद के त्योहार का आनंद ले सकें। जब व्यक्ति दिनभर खाने-पीने से बचता है, तो उसको मानसिक स्थिति स्थिर और शांतिपूर्ण होती है।दूसरों के प्रति संवेदनशीलता उपवासी भूख और गरीबी से पीड़ित लोगों के प्रति सहानुभूति को बढ़ावा देता है।‌ माहे रमजान वैज्ञानिक एवं इस्लामी दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

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