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रमज़ान और रोज़ा – बरकत और रहमत का महीना हाफिज अब्बास ‌इमाम मस्जिद मदीना


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रमज़ान और रोज़ा – बरकत और रहमत का महीना हाफिज अब्बास ‌इमाम मस्जिद मदीना

रमज़ान और रोज़ा – बरकत और रहमत का महीना हाफिज अब्बास ‌इमाम मस्जिद मदीना

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान

चूरू : जिला मुख्यालय पर स्थित ‌ आथुना मोहल्ला मस्जिद मदीना ‌ के इमाम हाफिज अब्बास ने माहे रमज़ान में ‌ आठवां रोजा की‌ मुबारकबाद पेश कि‌ और बताया कि रमजान सिर्फ एक महीना नहीं है, बल्कि यह अल्लाह के करीब जाने और खुद को बेहतर बनाने का सुनहरा मौका है। यह रहमत (दया), मग़फिरत (माफी) और बरकत (आशीर्वाद) से भरा होता है। इस महीने में रोज़ा रखना फ़र्ज़ (जरूरी) किया गया है, लेकिन इसका मतलब सिर्फ भूख और प्यास से बचना नहीं, बल्कि अपने दिल, दिमाग और रूह को पाक (शुद्ध) करना भी है।क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाता है:”रमज़ान वह महीना है जिसमें क़ुरआन नाज़िल किया गया, जो लोगों के लिए हिदायत (मार्गदर्शन) है और जिसमें सच और झूठ में फर्क करने वाली निशानियाँ हैं।”

(सूरह अल-बक़रह: 185)नबी ﷺ ने फरमाया:”जब रमज़ान आता है तो जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं, जहन्नम के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं और शैतानों को बांध दिया जाता है।” (बुखारी: 1899) रमज़ान का मकसद सिर्फ इबादत (पूजा) करना नहीं, बल्कि हमें अच्छा इंसान बनाना भी है। रोज़ा हमें बुरी आदतों, ग़लत बातों और झगड़ों से बचने की सीख देता है।नबी ﷺ ने कहा:”रोज़ा एक ढाल (रक्षा कवच) है, इसलिए जब कोई रोज़े से हो तो न गलत बातें करे, न झगड़ा करे। अगर कोई उसे गाली दे या लड़ाई करे तो वह बस इतना कहे – मैं रोज़े से हूँ, मैं रोज़े से हूँ।” (बुखारी: 1894) इस महीने में हर नेकी (अच्छे काम) का सवाब (इनाम) कई गुना बढ़ जाता है। नफ़्ल (ऐच्छिक) इबादत का सवाब फ़र्ज़ (अनिवार्य) के बराबर और फ़र्ज़ का सवाब कई गुना कर दिया जाता है।

नबी ﷺ ने कहा: “जो शख्स सच्चे दिल से ईमान और सवाब की नीयत से रमज़ान के रोज़े रखता है, उसके सारे पुराने गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।” (बुखारी: 38)इस महीने की सबसे खास रात “शब-ए-क़द्र” होती है, जो हज़ार महीनों से बेहतर है। इस रात की इबादत का बहुत बड़ा इनाम है।नबी ﷺ ने कहा:”जो शख्स शब-ए-क़द्र में ईमान और सवाब की नीयत से इबादत करता है, उसके सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।” (बुखारी: 1901)रमज़ान हमें गरीबों की भूख-प्यास का एहसास कराता है, जिससे हमारे अंदर हमदर्दी और दरियादिली (सहानुभूति और उदारता) आती है। यही वजह थी कि नबी ﷺ रमज़ान में सबसे ज्यादा सख़ावत (दया और दान) किया करते थे।

हज़रत इब्न अब्बास (रज़ि.) फरमाते हैं:”रमज़ान में नबी ﷺ की दरियादिली तेज़ आंधी से भी ज्यादा होती थी।” (बुखारी: 1902)रोज़ा सिर्फ एक इबादत ही नहीं, बल्कि सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। यह शरीर को ज़हरीले तत्वों से साफ करता है और आत्मनियंत्रण को मजबूत बनाता है।इस पवित्र महीने में हमें ज्यादा से ज्यादा इबादत, क़ुरआन की तिलावत (पढ़ाई), दुआ, जकात और सदक़ात और अच्छे कामों में समय लगाना चाहिए, ताकि हम अल्लाह की रहमत और माफी पा सकें। रमज़ान एक ऐसा तोहफा है, जो हमें खुद को बेहतर बनाने और अल्लाह की खुशी हासिल करने का मौका देता है।अल्लाह हमें इस महीने की पूरी बरकतें पाने की तौफीक़ दे। आमीन!

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