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रमजान का महिना, रोजा (उपवास), त्याग, इबादत के लिए होता है। ‌ डॉ फखरुल हसन गोरी


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रमजान का महिना, रोजा (उपवास), त्याग, इबादत के लिए होता है। ‌ डॉ फखरुल हसन गोरी

रमजान का महिना, रोजा (उपवास), त्याग, इबादत के लिए होता है। ‌ डॉ फखरुल हसन गोरी

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान

चूरू :  जिला मुख्यालय पर स्थित ‌ डॉ एफ एच गौरी- एम डी मेडिसिन फिजिशियन- एच. जे. साइकेट्रिक (मनोरोग), एल एल बी,रिटायर्ड पी एम ओ एण्ड सुप‌रीडेन्ट मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल चुरु, एक्स को-ऑर्डिनेटर मेडिकल कॉलेज चुरु, ‌‌ने बताया रमजान का महीना चाँद के हिसाब से कभी 29 दिन तो कभी 30 दिन का होता है। रोजा को अरबी भाषा में “सौम” कहा जाता है, इसलिए इस माह को अरबी भाषा में माह-ए-सियाम भी कहते हैं। फारसी भाषा में उपवास को “रोजा” कहा जाता है भारतीय परिवेश में यह शब्द फारसी से आया है।इस्लाम के 5 फराईज़ ए इमान है ।, कलमा शहादत, नमाज, रोजा, जकात, और हज होते हैं। उसमें तीसरा महत्वपूर्ण “रोज़ा” एक स्तम्भ है। जिस प्रकार माल की शुद्धता के लिए जकात वाजिब की गयी है। उसी प्रकार शरीर की जकात के रूप में शरीर की शुद्धता के लिए रोजा वाजिब किया गया है। यह शरीर की अशुद्धता को मिटाता है। इसी का दूसरा पहलू यह है कि मानव को भूख, प्यास की शिद्दत से गरीबों को होने वाली तकलीफ तथा पानी- खाने की कमी से लोगो को होने वाली दुनियावी ज़िन्दगी का अहसास इन्सानियत की तरफ रुजू भी कराता है।

योशिनोरी ओहसुमी एक जापानी साइंसदान है जिन्हें फिजियोलोजी एण्ड साइंस के क्षेत्र में ऑटोफेजी की खोज के लिए सन् 2016 में नोबेल प्राइज़ से नवाज़ा गया था। ऑटोफेजी एक प्रक्रिया है जिसमें कोशिका टूटने (मरने) के पश्चात उसके अवशेष अवयवों को शरीर पुनः उपयोग में ले लेता है। रोजा, शरीर की अशुद्ध कोशिकाएँ जिसमें कैंसर कारक तथा हानिकारक कोशिकाएँ होती हैं उनको नियंत्रित करने में सहायक है। बढ़ते वजन और कोलेस्ट्रोल को भी नियंत्रित करने में सहायक है। रोजा शारीरिक व मानसिक संतुलन को अच्छा रखता है। आज तो विज्ञान ने भी रोजा रखने पर साकारात्मक निर्णय लिया है। यह इंसान की मशीनरी को नियंत्रित करने का तरीका है। इसे धर्म से जोड़कर इसान को तन्दुरुस्त रहने की इस्लाम ने नेमत अता की है।

सावधानी रोजा रखने वालों को सेहरी के वक्त तथा इफतार के वक्त आवश्यकता से अधिक मात्रा में भोजन ग्रहण (ओवर डाईटिंग) करने से बचना चाहिए। अत्यधिक गरिष्ठ व वसीय भोजन ना करके सामान्य तथा उचित मात्रा में भोजन करने पर इसका पूरा लाभ मिलता है। इसी प्रकार शरीर के हर अंग का रोज होता है। रोज़ों में नियमित कार्य करें, नियमित नींद लें. कभी झूठ ना बोलने की आदत पक्की करें। अश्लील व गलत कार्य नहीं करने है। आँख से गलत नहीं देखना है, जबान से गलत नहीं बोलना है, हाथ से गलत नहीं करना है, पाँव से गलत जगह जाने से रुक जाना है। खूब मन लगाकर अपने रब की इबादत करनी है। लगातार इस प्रकार का संयम रखने पर धीरे-धीरे इंसान को सही रहने की आदत पड़ती है और रोज़ों का पूरा लाभ प्राप्त होता है।‌ रोज से इंसान को पानी की ‌ अहमियत समझ में आती है और प्यासे की प्यास महसूस करता है इसलिए व्यर्थ पानी नहीं बहाना चाहिए अन्यथा ये नेमत यूं ही व्यर्थ हो जाएगी ।

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