रोज़ा और रमज़ान : रोज़ा या सौम मज़हब-ए-इस्लाम के प्रमुख पांच अरकान में से एक है – सैय्यद मोहम्मद अनवार नदीम उल कादरी शहर इमाम चुरु
रोज़ा और रमज़ान : रोज़ा या सौम मज़हब-ए-इस्लाम के प्रमुख पांच अरकान में से एक है - सैय्यद मोहम्मद अनवार नदीम उल कादरी शहर इमाम चुरु

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान
चूरू : जिला मुख्यालय पर शहर इमाम सैयद मोहम्मद अनवार नदीम उल कादरी ने माहे रमजान की शहर वासियों को मुबारकबाद पेश की और कहा 622 ईस्वी में हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सलल्लाहो अलैहि वसल्लम के मक्का शहर से मदीना शहर जाने (हिज़रत/Migration) के दो साल बाद 624 ईस्वी में पहली बार 30 रोज़े मुस्लिमों पर फ़र्ज़ (अनिवार्य) किये गये। रोज़ा या सौम एक बेहतरीन इबादत है जो इस्लामिक कैलेंडर के नौंवे माह रमज़ान में रखे जाते हैं।
रमज़ान शब्द अरेबिक शब्द ‘अर-रमद’ या ‘रमदा’ से लिया गया है जिसका अर्थ होता है ‘जलना’। माहे रमज़ान इस्लामिक महिनों में एक खास स्थान रखता है यह एक बहुत ही पाक़ महिना है! 30 फ़र्ज़ (अनिवार्य) रोज़े, लैलतुल कद्र, तरावीह नमाज़ और कुरान का नाज़िल (Revealed) होना इस माह को इस्लामिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण बनाता है। इस माह में की गई फ़र्ज़ इबादत का आम दिनों में पढ़ी गई नमाज़ से 70 गुणा ज्यादा सवाब (लाभ) मिलता है तथा नवाफिल इबादत नमाजों का सवाब इस माह में फ़र्ज़ के बराबर कर दिया जाता है। इस माह में आने वाली लैलतुल कद्र जो संभवतः 21, 23, 25, 27, 29 वीं तारीख की रात में से कोई एक होती है मुख्यतः मुस्लिम 27 वीं तारीख वाली रात को ही लैलतुल कद्र मानते हैं इसी रात में कुरान पहली बार नाज़िल हुई तथा इस रात की इबादत का सवाब 1000 रातों की इबादत के बराबर होता है।
तरावीह
इसी माह में तीस दिन तक तरावीह (सुन्नत / वैकल्पिक नमाज़) इशा की नमाज़ के बाद (दिन की आखरी नमाज़ जो रात को सोने से पहले अदा की जाती है) 2-2 रकअत करके कुल 20 रकअत अदा की जाती है जिसमें एक माह पूरे कुरान को इमाम द्वारा नमाज़ के माध्यम से सुनाया जाता है ! इस माह में कुरान की तिलावत (Recitation) का भी बहुत महत्व है। रमज़ान के महीने में जन्नत के सभी दरवाजे खोल दिये जाते हैं तथा जहन्नुम के सभी रास्ते बंद कर दिये जाते हैं इस माह में शैतान को भी जंजीरों से जकड़कर बांध दिया जाता है। इसी क्रम में तीस दिन का शहरी व इफ़्तारी का कैलेंडर जारी किया।