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भांजा-भांजी की शादी में भरा 3 करोड़ का मायरा:1.51 करोड़ रुपए नकद लेकर पहुंचे 3 मामा; सोने-चांदी के गहने और 2 प्लॉट भी दिए


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भांजा-भांजी की शादी में भरा 3 करोड़ का मायरा:1.51 करोड़ रुपए नकद लेकर पहुंचे 3 मामा; सोने-चांदी के गहने और 2 प्लॉट भी दिए

भांजा-भांजी की शादी में भरा 3 करोड़ का मायरा:1.51 करोड़ रुपए नकद लेकर पहुंचे 3 मामा; सोने-चांदी के गहने और 2 प्लॉट भी दिए

नागौर : शादी में मायरा (भात) भरने की प्रथा को लेकर राजस्थान का नागौर जिला एक बार फिर चर्चा में है। 3 भाइयों ने अपने भांजे-भांजी की शादी में 1 करोड़ 51 लाख रुपए नकद, सोने-चांदी की ज्वेलरी और शहर में 2 प्लॉट समेत करीब 3 करोड़ रुपए का मायरा भरा।

जब भाइयों के साथ परिवार के लोग थाली में कैश, ज्वेलरी लेकर पहुंचे तो ग्रामीणों की भीड़ जुट गई। मामला जायल तहसील के फरड़ोद गांव का है।

गांव के हर जाट परिवार को दी चांदी की मूर्तियां

जिले के साडोकन गांव निवासी हरनिवास खोजा, रामदयाल खोजा और हरचंद खोजा की ओर से यह मायरा भरा गया है। तीनों भाई अपनी बहन बीरज्या देवी पत्नी मदनलाल फरड़ोदा निवासी फरड़ोद के घर पर 7 फरवरी की सुबह मायरा भरने पहुंचे थे।

उन्होंने अपने भांजा सचिन और भांजी रेखा की शादी में मायरे के तौर पर 1.51 करोड़ रुपए नकद, 35 तोला सोने के गहने, 5 किलो चांदी के गहने, बर्तन, कपड़े और घरेलू सामान के साथ नागौर शहर में 20- 20 लाख की कीमत के 2 प्लॉट दिए। इसके साथ ही फरड़ोद गांव के हर जाट परिवार को एक-एक चांदी की मूर्तियां दीं।

इस तरह तीनों भाइयों ने सब कुछ मिलाकर करीब 3 करोड़ से ज्यादा का मायरा भरा, जिसकी जिलेभर में चर्चा रही। तीनों भाइयों की भांजी रेखा की शादी 7 फरवरी को हुई, जबकि भांजा सचिन की शादी 8 फरवरी (आज) को हुई।

नोटों के बंडलों को एक बड़ी थाली में रखकर कमरे में पहुंचाया गया।
नोटों के बंडलों को एक बड़ी थाली में रखकर कमरे में पहुंचाया गया।

3 बड़े बैग में लेकर पहुंचे नोटों के बंडल

मायरा की रस्म पूरी करने के लिए तीनों भाई 3 बड़े बैग में नोटों के बंडल और एक बैग में ज्वेलरी लेकर पहुंचे। रस्म के दौरान आवाज लगाकर पूरी रकम बताई गई, जिसके बाद मौके पर ग्रामीणों की भीड़ जमा हो गई। लोगों ने तीनों भाइयों के परिवार की जमकर प्रशंसा की। मायरे में राजस्थान सरकार के पूर्व उप मुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी, जायल के पूर्व प्रधान रिद्धकरण लामरोड़, नागौर की पूर्व जिला प्रमुख सुनीता चौधरी सहित ग्रामीणों की मौजूदगी रही।

पूर्व सरपंच और पूर्व जिला प्रमुख का परिवार

दूल्हे सचिन और दुल्हन रेखा के चचेरे भाई मनीष फरड़ोदा ने बताया- मदनलाल फरड़ोदा के पिता राधाकिशन फरड़ोदा, फरड़ोद ग्राम पंचायत के सरपंच रहे चुके हैं। मदनलाल की बहन सुनिता चौधरी नागौर जिला प्रमुख रहीं हैं। बहनोई महेंद्र चौधरी नावां से विधायक और उप मुख्य सचेतक रहे चुके हैं। मायरे में क्षेत्र के कई जनप्रतिनिधियों ने शिरकत की।

जायल के पूर्व प्रधान रिद्धकरण लोमरोड़ ने कहा- साडोकन के खोजा परिवार ने फरड़ोद गांव में अपनी बहन के बड़ा मायरा भरकर जायल-खिंयाला के जाटों की ओर से भरे गए मायरे की याद दिला दी। मायरा भरने वाले तीन भाइयों में रामदयाल खोजा और हरचंद खोजा टीचर हैं, जबकि तीसरा भाई हरनिवास खेती किसानी करते हैं।

तीनों भाइयों ने मायरा भरा तो बड़ी संख्या में रिश्तेदार और ग्रामीण कैश, ज्वेलरी समेत अन्य सामान देखने उमड़ पड़े।
तीनों भाइयों ने मायरा भरा तो बड़ी संख्या में रिश्तेदार और ग्रामीण कैश, ज्वेलरी समेत अन्य सामान देखने उमड़ पड़े।

नागौर का मायरा प्रसिद्ध

मारवाड़ में नागौर में मुगल शासन के दौरान के यहां के खिंयाला और जायल के जाटों द्वारा लिछमा गुजरी को अपनी बहन मान कर भरे गए मायरे को तो महिलाएं लोक गीतों में भी गाती हैं। कहा जाता है कि यहां के धर्माराम जाट और गोपालराम जाट मुगल शासन में बादशाह के लिए टैक्स कलेक्शन कर दिल्ली दरबार में ले जाकर जमा करने का काम करते थे।

इस दौरान एक बार जब वो टैक्स कलेक्शन कर दिल्ली जा रहे थे तो उन्हें बीच रास्ते में रोती हुई लिछमा गुजरी मिली। उसने बताया था कि उसके कोई भाई नहीं है और अब उसके बच्चों की शादी में मायरा कौन लाएगा ? इस पर धर्माराम और गोपालराम ने लिछमा गुजरी के भाई बन टैक्स कलेक्शन के सारे रुपए और सामग्री से मायरा भर दिया। बादशाह ने भी पूरी बात जान दोनों को सजा देने के बजाय माफ कर दिया था।

क्या होता है मायरा

बहन के बच्चों की शादी होने पर ननिहाल पक्ष की ओर से मायरा भरा जाता है। इसे सामान्य तौर पर भात भी कहते हैं। इस रस्म में ननिहाल पक्ष की ओर से बहन के बच्चों के लिए कपड़े, गहने, रुपए और अन्य सामान दिया जाता है। इसमें बहन के ससुराल पक्ष के लोगों के लिए भी कपड़े और जेवरात आदि होते हैं।

ये है मान्यता

मायरे की शुरुआत नरसी भगत के जीवन से हुई थी। नरसी का जन्म गुजरात के जूनागढ़ में आज से 600 साल पूर्व हुमायूं के शासनकाल में हुआ था। नरसी जन्म से ही गूंगे-बहरे थे। वो अपनी दादी के पास रहते थे। उनका एक भाई-भाभी भी थे। भाभी का स्वभाव कड़क था। एक संत की कृपा से नरसी की आवाज वापस आ गई थी और उनका बहरापन भी ठीक हो गया था। नरसी के माता-पिता गांव की एक महामारी का शिकार हो गए थे। नरसी की शादी हुई, लेकिन छोटी उम्र में पत्नी भगवान को प्यारी हो गई। नरसी का दूसरा विवाह कराया गया था।

समय बीतने पर नरसी की लड़की नानीबाई का विवाह अंजार नगर में हुआ था। इधर नरसी की भाभी ने उन्हें घर से निकाल दिया था। नरसी श्रीकृष्ण के अटूट भक्त थे। वे उन्हीं की भक्ति में लग गए थे। भगवान शंकर की कृपा से उन्होंने ठाकुर जी के दर्शन किए थे। इसके बाद तो नरसी ने सांसारिक मोह त्याग दिया और संत बन गए थे। उधर नानीबाई ने बेटी को जन्म दिया और बेटी विवाह लायक हो गई थी।

लड़की के विवाह पर ननिहाल की तरफ से भात भरने की रस्म के चलते नरसी को सूचित किया गया था। नरसी के पास देने को कुछ नहीं था। उसने भाई-बंधु से मदद की गुहार लगाई, मदद तो दूर कोई भी चलने तक को तैयार नहीं हुआ था। अंत में टूटी-फूटी बैलगाड़ी लेकर नरसी खुद ही लड़की के ससुराल के लिए निकल पड़े थे। बताया जाता है कि उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण खुद भात भरने पहुंचे थे।

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