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चीन-ताइवान नहीं, राजस्थान में बनी चिप से रोशन होंगे घर:देश की पहली चिप तैयार, बालों से भी 10 गुना पतले सोने के तारों का इस्तेमाल


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चीन-ताइवान नहीं, राजस्थान में बनी चिप से रोशन होंगे घर:देश की पहली चिप तैयार, बालों से भी 10 गुना पतले सोने के तारों का इस्तेमाल

चीन-ताइवान नहीं, राजस्थान में बनी चिप से रोशन होंगे घर:देश की पहली चिप तैयार, बालों से भी 10 गुना पतले सोने के तारों का इस्तेमाल

पिलानी : दुनियाभर में छाए चिप संकट के बीच झुंझुनूं (राजस्थान) से राहत देने वाली खबर आई है। देश की पहली LED सेमी कंडक्टर चिप बनाने में कामयाबी मिली है। इसको लेकर पिछले 17 साल से पिलानी (झुंझुनूं) स्थित केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीरी) में रिसर्च चल रहा था। अब जल्द ही उसका प्रोडक्शन करने के लिए किसी कंपनी से MOU करने की तैयारी है।

चिप को बनाने में इंसानी बालों से भी पतले सोने के तारों का उपयोग हुआ है। चिप पर इन तारों को लगाने का काम इतना मुश्किल होता है कि इसे बिना माइक्रोस्कोप के देख नहीं सकते।

देश की यह पहली चिप कैसे बनी? ये जानने के लिए मीडिया रिपोर्टर पहुंचा सीरी कैंपस (पिलानी) की उस लैब में, जहां हर किसी को जाने की इजाजत नहीं है। निदेशक डॉ. पीसी पंचारिया से स्पेशल परमिशन के बाद ही हम लैब में दाखिल हुए।

वैज्ञानिकों और टेक्नीशियंस की टीम यहां अपने काम में जुटी थी। यहीं पर हमारी मुलाकात प्रोजेक्ट हेड सीनियर साइंटिस्ट डॉ. कुलदीप सिंह से हुई। डॉ. कुलदीप ने हमें एक डिब्बी दिखाई। कहा- इसमें देखिए। ये है भारत की पहली सेमी कंडक्टर चिप। इसे हमने बनाया है। उनके चेहरे पर कामयाबी की खुशी आसानी से देखी जा सकती थी।

माइक्रोस्कोप से ली गई चिप की फोटो। चिप के सर्किट पर लगे 2 वायर सोने के हैं। दोनों वायर इंसान के बाल से 10 गुना पतले हैं।
माइक्रोस्कोप से ली गई चिप की फोटो। चिप के सर्किट पर लगे 2 वायर सोने के हैं। दोनों वायर इंसान के बाल से 10 गुना पतले हैं।

प्रोजेक्ट हेड सीनियर साइंटिस्ट डॉ. कुलदीप ने बताया- दुनिया में अब तक केवल 5 ही देश चिप बनाते हैं। उनमें सबसे आगे ताइवान है। इसके बाद अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया और जापान।

डॉ. कुलदीप पूरे आत्मविश्वास के साथ कहते हैं- लेकिन अब भारत अपनी चिप बनाएगा।

सीएसआईआर सीरी के निदेशक डॉ. पीसी पंचारिया और डॉ. कुलदीप सिंह ने हमें इसके बनने की पूरी कहानी बताई-

साल 2000 के बाद से डिजिटलाइजेशन की शुरुआत के बाद दुनिया में इनोवेशन हो रहे थे। धीरे-धीरे मोबाइल लोगों तक पहुंच रहा था। टीवी, मोबाइल, एलईडी बल्ब से लेकर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में सबसे अहम पार्ट चिप का उपयोग होने लगा था। उस वक्त ताइवान, अमेरिका और चीन जैसे देश ही थे, जिनके पास चिप बनाने की तकनीक थी। पूरी दुनिया इन्हीं देशों पर निर्भर थी।

सीरी देश के लिए नई टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट करता है। 2007 में सीरी ने खुद चिप निर्माण का इनिशिएटिव लिया। इसका प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया। हमें इसकी मंजूरी और जरूरी बजट मिल गया।

सीरी के तत्कालीन डायरेक्टर डॉ. चंद्रशेखर के नेतृत्व में स्वदेशी एलईडी सेमी कंडक्टर चिप के लिए लैब में काम शुरू हुआ।

चिप पर रिसर्च करते सीरी के वैज्ञानिक। वैज्ञानिकों ने 2007 में इस पर काम शुरू किया था।
चिप पर रिसर्च करते सीरी के वैज्ञानिक। वैज्ञानिकों ने 2007 में इस पर काम शुरू किया था।

पहली बार में मिली असफलता

करीब 3 साल की मेहनत के बाद हमने पहली एलईडी सेमी कंडक्टर चिप बना ली। इसकी क्षमता बहुत कम (1 ल्यूमंस प्रति वाट) थी। ल्यूमंस प्रकाश की तीव्रता का मापक है। उदाहरण के लिए 100 वाट का साधारण बल्ब 1600 ल्यूमंस प्रकाश देता है। इतने ही प्रकाश के लिए 26 वाट की LED की आवश्यकता होती है।

हमारा उद्देश्य ऐसी चिप बनाना था, जिसे अलग-अलग डिवाइस में काम में लिया जा सके। इसके लिए चिप की क्षमता 70-100 ल्यूमंस होना जरूरी था। हम टारगेट से बेहद पीछे थे। कई तरह की चुनौतियां थीं। सबसे बड़ी बात तो ये थी कि चुनिंदा देशों के अलावा किसी के पास इसकी टेक्नोलॉजी नहीं थी। तो हमारे पास बाहर से सीखने के भी कोई अवसर नहीं थे।

कोरोना के कारण चिप संकट आया, दोगुनी ताकत से प्रोजेक्ट में लगे

2012 से 2017 के बीच हमने दोबारा नए सिरे से प्लान बनाया और 50 ल्यूमंस का टारगेट रखा। इस बार हम 30 ल्यूमंस तक ही पहुंच पाए। अब भी हम बहुत पीछे थे, लेकिन हमने हार नहीं मानी। सीरी के वैज्ञानिक दिन-रात इसकी स्टडी करते रहे। कई प्रयोग किए। इसी बीच एक फेज (2017 से 2021) ऐसा आया कि कुछ वैज्ञानिकों के रिटायर होने और कुछ अन्य कारणों से रिसर्च बंद रही। कहते हैं कि आपदा ही हमारे लिए अवसर लेकर आती है। कोरोना के साथ ही दुनिया भर में चिप का संकट छा गया।

कई देशों में मोबाइल और कारों का प्रोडक्शन ठप हो गया। भारत भी इस संकट से अछूता नहीं रहा। इस संकट ने हमें नई हिम्मत दी और हम दोगुनी ताकत से वापस अपने प्रोजेक्ट पर लग गए।

17 साल बाद मिली सफलता

करीब 17 साल के रिसर्च के बाद आखिर हमने 98 ल्यूमंस प्रति वाट की सेमी कंडक्टर एलईडी चिप तैयार कर ली। हम कह सकते हैं कि ये चिप अब अलग-अलग डिवाइस में काम में ले सकते हैं। यह चिप लाल, नीली, हरी और सफेद रंग की रोशनी देने में सक्षम है। डॉ. कुलदीप सिंह ने बताया- एलईडी लाइट को हम चार भागों में बांटते हैं। इसमें 0.2 वाट, 0.5 वाट, 1 वाट और 1 वाट से ज्यादा शामिल हैं।

एक वाट तक की एलईडी लाइट में कारगर

1 वाट तक की एलईडी लाइट में हमारी चिप इस्तेमाल हो सकती है। इसका मतलब ये नहीं है कि हमारी चिप से 1 वाट से ज्यादा पावर का बल्ब नहीं बन सकता। एक एलईडी बल्ब में कई एलईडी लाइट लगी होती हैं। उन एलईडी लाइट की संख्या के अनुसार एलईडी चिप का इस्तेमाल होता है।

3 साइज की चिप डेवलप की

सीरी ने तीन साइज की चिप डेवलप की है। इनमें 500×500 माइक्रॉन स्क्वॉयर, 1000×1000 माइक्रॉन स्क्वॉयर और 300×600 माइक्रॉन स्क्वॉयर। ये आकार में बहुत छोटी हैं। सफेद, हरी और नीली एलईडी लाइट के लिए चिप गैलियम नाइट्राइड और रेड लाइट के लिए गैलियम आर्सेनाइड बनाई गई है।

इस प्रोजेक्ट पर शुरुआत में साइंटिस्ट डॉ. बीआर सिंह, डॉ. ओपी डागा, डॉ सी धनवंतरी और डॉ. एस पाल ने अपनी टीम के साथ काम शुरू किया था। डॉ. बीआर सिंह, डॉ. ओपी डागा और डॉ. सी धनवंतरी इस प्रोजेक्ट के पूरा होने से पहले रिटायर हो चुके हैं। प्रोजेक्ट के मौजूदा इंचार्ज डॉ. कुलदीप सिंह और डॉ. मनीष मैथ्यू के साथ टेक्निकल टीम ने काम करते हुए अब सफलता हासिल की है। फिलहाल यह चिप सिर्फ एलईडी बल्ब में ही उपयोग हो सकेगी।

चिप के निर्माण में लगी सीरी के वैज्ञानिकों की टीम (बाएं से) रमेश बौरा, रमाकांत शर्मा, कशिश, इंद्राणी, भूपेंद्र कुमार कुशवाहा, अरविंद कुमार सिंह, निदेशक डॉ पीसी पंचारिया, डॉ. कुलदीप सिंह, भवानी शंकर, अशोक चौहान, प्रियव्रत प्रजापत, धीरेंद्र कुमार, प्रतीक कोठारी।
चिप के निर्माण में लगी सीरी के वैज्ञानिकों की टीम (बाएं से) रमेश बौरा, रमाकांत शर्मा, कशिश, इंद्राणी, भूपेंद्र कुमार कुशवाहा, अरविंद कुमार सिंह, निदेशक डॉ पीसी पंचारिया, डॉ. कुलदीप सिंह, भवानी शंकर, अशोक चौहान, प्रियव्रत प्रजापत, धीरेंद्र कुमार, प्रतीक कोठारी।

हमने सवाल किया- क्या कारण है कि एलईडी, मोबाइल से लेकर ऑटो मोबाइल में काम आने वाली ये चिप आज तक भारत नहीं बना पाया?

डॉ. कुलदीप सिंह कहते हैं- दुनिया में चुनिंदा ऐसे देश हैं, जो सेमी कंडक्टर चिप इंडस्ट्री की तकनीक जानते हैं। चीन सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का हब बन चुका था और वहां से सस्ते में सेमी कंडक्टर की आपूर्ति दुनिया भर में हो रही थी। ऐसे में इंडिया ने सेमी कंडक्टर प्रोजेक्ट पर कभी फोकस ही नहीं किया था। न ही सेमी कंडक्टर पर रिसर्च की ओर ध्यान दिया गया था। किसी ने नहीं सोचा था कि यह इंडस्ट्री लाखों करोड़ों रुपए की हो जाएगी। अब देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। देश में ही चिप डिजाइन की टेक्नोलॉजी और प्रोडक्शन बहुत जरूरी है।

2032 में भारत का मार्केट होगा 2 लाख करोड़ रुपए का

भारत ने वर्ष 2023 में सेमी कंडक्टर चिप आयात पर 23 हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं। आईएमएआरसी की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय एलईडी लाइटिंग मार्केट लगभग 4.2 बिलियन अमेरिकन डॉलर यानी लगभग 35 हजार करोड़ रुपए का है। इसमें प्रति वर्ष 20% की दर से वृद्धि हो रही है।

मार्केट रिसर्च के अनुसार, 2032 में सेमी कंडक्टर एलईडी मार्केट साइज करीब 23.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर यानी 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक रहने का अनुमान है। इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि अब स्मार्टफोन्स, लैपटॉप, टैबलेट, कंप्यूटर, स्मार्ट डिवाइस, ऑटो मोबाइल सेक्टर, हाउस अप्लायंसेज, लाइफ सेविंग फार्मास्यूटिकल डिवाइस समेत तमाम आधुनिक उपकरण बनाने में चिप का उपयोग होता है।

इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में रिसर्च करती है सीरी

सीरी (सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट) की स्थापना वर्ष 1953 में हुई थी। यह सीएसआईआर की राष्ट्रीय प्रयोगशाला है। सीरी इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में नई तकनीक पर रिसर्च करती है। सीरी ने इससे पहले कई तकनीकों की खोज की है। इसमें माइक्रोवेव ट्यूब, प्‍लाज्‍मा डिवाइस, एमईएमएस और माइक्रोसेंसर, ऑप्‍टोइलेक्‍ट्रॉनिक्‍स डिवाइस, माइक्रो इलेक्‍ट्रॉनिक प्रोसेसिंग और फेब्रिकेशन, वीएलएसआई डिजाइन, एलटीसीसी तकनीक, नैनो संरचना, पावर इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स जैसी कई तकनीक शामिल हैं।

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