जयपुर : नीमकाथाना इलाके में 17 दिसंबर को पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह गुढा लेपर्ड के हमले में बाल-बाल बचे हैं। शेखावाटी ही नहीं, राजस्थान के कई जिलों में लेपर्ड हिंसक होते जा रहे हैं। इंसानी बस्ती में मूवमेंट बढ़ गया है। अक्टूबर में उदयपुर के जंगलों में रहने वाले लेपर्ड ने 9 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।
लेपर्ड को इंसानों के बीच का ही वन्यजीव माना जाता है। पांच साल पहले तक लेपर्ड के इंसानों पर हमले का आंकड़ा भी काफी कम था। ऐसे में सवाल खड़ा हाे रहा है कि लेपर्ड अचानक से हिंसक कैसे बन रहे हैं? भास्कर ने एक्सपर्ट से बात कर इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश की।
पहले जानिए लेपर्ड में आए बदलावों के बारे में…
शिकार का समय बदला वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार, पहले लेपर्ड आधी रात के बाद ही अपने शिकार के लिए आवासीय इलाकों के आस-पास जाता था। अब लेपर्ड अपना समय बदल रहा है। लेपर्ड रात ढलने से पहले इंसानों के बीच जाने की हिम्मत कर रहा है। पिछले कुछ सालों में लेपर्ड की दिनचर्या में आया यह सबसे बड़ा बदलाव है।
इंसानों का डर खत्म काफी क्षेत्र में लेपर्ड में इंसानों का डर खत्म होता जा रहा है। एक बार इंसान पर हमला करने के बाद उसे इंसान सबसे आसान शिकार लग रहा है। ऐसे में लेपर्ड जानवरों के शिकार का संघर्ष छोड़कर इंसानों को टारगेट कर रहा है। इसके उदाहरण पिछले पांच महीने में सबसे ज्यादा नजर आए हैं।
आसान शिकार की तलाश पहले लेपर्ड ज्यादातर जंगल में रहने वाले जानवरों का शिकार करता था। इसमें बंदर, मोर, हिरण, खरगोश, नील गाय सहित अन्य शामिल थे। हालांकि पहले भी लेपर्ड इंसानी बस्ती में रहने वाले जानवरों का शिकार करता था, लेकिन उसका प्रतिशत 30 से भी कम था। पिछले 5 साल की बात करें तो सभी इलाकों के लेपर्ड के डाइट में 70 प्रतिशत पालतू जानवर शामिल हो गए हैं। लेपर्ड आसान शिकार के लिए शहर व बस्तियों में आ रहा है। इसमें कुत्ते, बकरी और बछड़े शामिल हैं।
इंसानी बस्ती में लेपर्ड की बढ़ती गतिविधियों के कारण
तेजी से बढ़ रहा है कुनबा पिछले कुछ सालों में राजस्थान में लेपर्ड से टूरिज्म बढ़ा है। इसके चलते इन्हें काफी संरक्षण मिलने लगा है। वर्ष 2018 की राजस्थान वन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में 476 लेपर्ड थे। 2022 में ये आंकड़ा 721 हो गया। हालांकि सभी क्षेत्रों में लेपर्ड का वास्तविक आंकड़ा इससे काफी ज्यादा है। ऐसे में नर लेपर्ड के बीच संघर्ष भी बढ़ गया है। हारने वाला लेपर्ड अपनी टेरिटरी छोड़ दूसरी जगह जा रहा है। वह अब दूसरे लेपर्ड की टेरेटरी में भी नहीं जा सकता। ऐसे में वह लेपर्ड इंसानी बस्तियों के पास ही छिपकर अपना शिकार करता है।
जंगलों में भोजन की आ रही कमी लेपर्ड की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसके अनुपात में इनका भोजन जंगलों में लगातार कम हो रहा है। जंगली क्षेत्रों में इंसानों की दखल के चलते खरगोश, सांभर व अन्य छोटे जीव कम हो गए हैं। इनका लेपर्ड आसानी से शिकार करता है। यह एक बड़ी वजह है कि लेपर्ड इंसानी बस्ती में भोजन ढूंढने निकल रहे हैं।
जंगल में आग लगने से कम हो रहे जीव जंगलों में शाकाहारी जीवों की कमी का सबसे बड़ा कारण आग भी है। पहाड़ी क्षेत्र में गर्मी के समय प्राकृतिक व इंसानी दोनों कारणों से हर बार आग लगती है। ऐसे में हजारों हेक्टेयर जमीन पर लगी घास जलकर राख हो जाती है। इन जंगलों में रहने वाले जीव या तो बिना भोजन के मर जाते हैं या यहां से पलायन कर जाते हैं।
इंसानों पर हमला करने का कारण एक्सपट्र्स का कहना है- लेपर्ड के लिए इंसान काफी सॉफ्ट टारगेट है। जानवर लेपर्ड से बचने के लिए भागता है। बचने की कोशिश भी करता है। इंसान इतना एक्टिव नहीं हो पाता है। इसके साथ ही सबसे ज्यादा इंसानों का शिकार करने वाले लेपर्ड बुजुर्ग होते हैं। जब तक उन्हें जंगल या इंसानी बस्ती में आसान शिकार मिलता है तब तक उनका काम चलता रहता है। नहीं तो वह इंसानों को निशाना बनाना शुरू कर देते हैं। लेपर्ड एक बार इंसान का शिकार करने के बाद इस आसान शिकार का आदी हो जाता है। उदयपुर के सभी केस में ऐसा ही था।
टेरेटरी छोड़ने वाले लेपर्ड होते हैं सबसे ज्यादा हिंसक एक्सपट्र्स के अनुसार, इंसानों पर हमला करने वाले जितने भी लेपर्ड का रेस्क्यू किया गया, इनमें अधिकांश बुजुर्ग थे। यह लेपर्ड युवा लेपर्ड से टेरेटरी संघर्ष में हारकर दूसरे जंगल में आए हुए होते हैं। अब वह दूसरे की टेरेटरी में भी शिकार नहीं कर पाते हैं। ऐसे में उनका टारगेट इंसानी बस्ती के पास ही मवेशी होते हैं। जब मवेशी नहीं मिल पाते तो भूख के कारण इंसानों पर हमला शुरू कर देते हैं।
- वन्यजीव विशेषज्ञ विजय कोली ने बताया- पिछले कुछ सालों में लेपर्ड की लाइफ स्टाइल में काफी बदलाव आया है। इनके इलाकों में इंसानों की मूवमेंट तेजी से बढ़ रही है। जंगल में इसके लिए भोजन कम पड़ने लगा है। ऐसे में अब लेपर्ड ने जंगल के जीवों के साथ ही डोमेस्टिक जानवरों का शिकार अपनी फूड चेन में ज्यादा बढ़ा दिया है। बस्तियों में रहने वाले कुत्ते, बकरी और गाय-बाड़ों में बंधे रहते हैं। यह इनके लिए सॉफ्ट टारगेट हो गए हैं।
- उदयपुर के पूर्व सीसीएफ राहुल भटनागर ने बताया- लेपर्ड बुजुर्ग हो जाता है, घायल हो जाता है या शिकार करने में समर्थ नहीं होता तो वह आसान शिकार ढूंढता है। इंसानों पर हमला करता है। इंसान पर एक बार हमला करने के बाद वह सबसे आसान शिकार लगता है। इसके बाद वह अन्य जानवर की जगह इंसानों पर हमले शुरू कर देता है।
- शूटर बंशीलाल ने बताया- उदयपुर के जंगली क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में लेपर्ड को लेकर जागरूकता नहीं है। कई बार वह भोजन की तलाश में इंसानी बस्तियों तक आ जाता है। वहां लोग अपने जानवर को बचाने के संघर्ष में लेपर्ड से सामना करते हैं। यहां लेपर्ड के अंदर जो इंसान का डर होता है, वह खत्म होने लगता है। वह इंसानों को आसान शिकार समझ आदमखोर हो जाता है।