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जयपुर : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा- संसद की कानून बनाने की शक्ति को न्यायपालिका अमान्य नहीं कर सकती


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जयपुर : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा- संसद की कानून बनाने की शक्ति को न्यायपालिका अमान्य नहीं कर सकती

उपराष्ट्रपति ने कहा कि संसद के बनाए कानून को किसी आधार पर कोई संस्था अमान्य करती है, तो प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा। धनखड़ ने कहा कि संसद संप्रभु है, किसी भी लोकतांत्रिक समाज में जनमत की प्रधानता ही उसके मूल ढांचे का आधार है।

जयपुर : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र में संसदीय संप्रभुता व स्वायत्तता सर्वोपरि है। न्यायपालिका या कार्यपालिका संसद में कानून बनाने या संविधान में संशोधन करने की शक्ति को अमान्य नहीं कर सकती। न्यायिक नियुक्तियों पर केंद्र सरकार व कॉलेजियम में टकराव के बीच उपराष्ट्रपति ने वर्ष 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून को सुप्रीम कोर्ट से रद्द किए जाने पर फिर नाखुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि दुनिया के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा कहीं नहीं हुआ है।

राज्यसभा सभापति धनखड़ ने बुधवार को जयपुर में 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस दौरान देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बयानों का हवाला देते हुए सवाल किया कि क्या अब संसद में बने कानून पर कोर्ट की मुहर लगेगी, तभी वह मान्य होगा? उन्होंने कहा कि कोई भी संस्था जनादेश को बेअसर करने के लिए शक्ति या अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकती है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि संसद के बनाए कानून को किसी आधार पर कोई संस्था अमान्य करती है, तो प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा। धनखड़ ने कहा कि संसद संप्रभु है, किसी भी लोकतांत्रिक समाज में जनमत की प्रधानता ही उसके मूल ढांचे का आधार है। संसद व विधानमंडलों की प्रधानता तथा संप्रभुता आवश्यक शर्त है, जिससे समझौता नहीं किया जा सकता। उन्होंने सभी संस्थाओं से मर्यादा में कार्य करने का आग्रह किया। कहा, संसद से पारित सांविधानिक कानून के अनुपालन के लिए कार्यपालिका जिम्मेदार होती है। यह एनजेएसी कानून का पालन करने के लिए बाध्य थी। न्यायिक फैसला इसे कम नहीं कर सकता। लोगों की संप्रभुता की रक्षा करना संसद व विधायिकाओं का दायित्व है।

न्यायिक मंच से दिखावा अच्छा नहीं
धनखड़ ने कहा, न्यायिक मंच से जनता के लिए दिखावा अच्छा नहीं है। मुझे तब आश्चर्य हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट के जजों ने अटॉर्नी जनरल को अपनी नाराजगी उच्च सांविधानिक पदाधिकारियों को बताने के लिए कहा था। धनखड़ ने कहा, जब उन्होंने राज्यसभा के सभापति का कार्यभार संभाला, तो कहा था-सदन के पास न्यायिक फैसले लिखने की शक्ति नहीं है, इसी तरह कार्यपालिका-न्यायपालिका के पास भी कानून बनाने का अधिकार नहीं है। लोकतंत्र तभी फलता फूलता है जब तीनों अंग परस्पर सहयोग और सामंजस्य के साथ, जन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए काम करते हैं।

कहना मुश्किल होगा- हम लोकतांत्रिक राष्ट्र
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, वर्ष 1973 में गलत परंपरा शुरू हुई। सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती मामले में कहा कि संसद संविधान संशोधन कर सकती है, लेकिन इसके मूल ढांचे में बदलाव नहीं कर सकती है।

  • धनखड़ ने कहा, कोर्ट से सम्मानपूर्वक कहना चाहता हूं, हम इससे सहमत नहीं हैं। किसी भी बुनियादी ढांचे का आधार जनादेश की सर्वोच्चता है। अगर कोई अथॉरिटी संसद की शक्ति पर सवाल उठाती है, तो कहना मुश्किल होगा कि ‘हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं’।

न्यायपालिका मर्यादा का पालन करे  : बिरला
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा, विधायिका ने हमेशा न्यायपालिका की शक्तियों व अधिकारों का सम्मान किया है। न्यायपालिका भी मर्यादा का पालन करे। उम्मीद की जाती है कि उसे जो सांविधानिक अधिकार हैंै, उनका उपयोग करे, लेकिन अपनी शक्तियों का संतुलन भी बनाए रखे। लोकतंत्र के तीनों अंग कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के अपने अधिकार हैं। सभी को एक-दूसरे का ख्याल रखते हुए विश्वास व संतुलन से काम करना चाहिए।

कई बार लगा अदालतें हस्तक्षेप कर रही हैं : गहलोत
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि आज सोशल मीडिया का जमाना हैं। कार्यपालिका व विधायिका को कई बार लगता है, न्यायपालिका हस्तक्षेप करती हैं, इसके बावजूद 75 साल बाद भी तीनों अंग काम कर पा रहे हैं, ये हमारी पहचान है।

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