भाजपा विधायक कालीचरण सराफ पर दर्ज केस सरकार वापस लेगी:मंजूरी के लिए फाइल हाईकोर्ट भेजी, मजिस्ट्रेट के हाथ से दस्तावेज लेकर फाड़ने के आरोप थे
भाजपा विधायक कालीचरण सराफ पर दर्ज केस सरकार वापस लेगी:मंजूरी के लिए फाइल हाईकोर्ट भेजी, मजिस्ट्रेट के हाथ से दस्तावेज लेकर फाड़ने के आरोप थे

जयपुर : भाजपा विधायक कालीचरण सराफ को 22 साल पुराने मामले में सरकार ने बड़ी राहत दी है। साल 2002 से चल रहे कोर्ट में विचाराधीन प्रकरण को वापस लेने का फैसला किया है। अब गृह विभाग हाईकोर्ट में मंजूरी की अर्जी लगाएगा। मामले में सराफ के साथ पूर्व पार्षद इंद्र संघी, धर्मदास मोटवानी एवं बसंत चौधरी का नाम भी था। सराफ को विशेष कोर्ट में पेश भी होना पड़ा था।
गृह विभाग का कहना है विशिष्ट सचिव अध्यक्षता वाली समिति के पास सराफ ने प्रकरण वापस लेने की अर्जी लगाई थी। समिति ने पड़ताल के बाद प्रकरण लेने का फैसला किया। इस मामले में हाईकोर्ट से मंजूरी जरूरी है, इसलिए महाधिवक्ता कार्यालय को सरकार की अर्जी भेज दी गई है। पिछली कांग्रेस सरकार ने लोकसभा स्पीकर सहित करीब 40 भाजपा नेताओं के खिलाफ एक प्रकरण वापस लिए जाने का फैसला किया था। उसमें हाईकोर्ट की मंजूरी भी मिल गई थी। बाद में वापस लेने की कार्रवाई संबंधित कोर्ट में पूरी की गई थी। इस भाजपा सरकार के करीब एक साल के कार्यकाल में सराफ का यह पहला ही मामला है।
न्यायिक मजिस्ट्रेट ने कराया था मामला दर्ज
तत्कालीन न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या 19 ने 2002 में सीजेएम कोर्ट में मामला दायर किया था। बापू नगर स्थित जनता स्टोर पर निगम के चालान कार्रवाई के दौरान न्यायिक मजिस्ट्रेट के हाथ से दस्तावेज फाड़ने, मजिस्ट्रेट की कार के आगे लेटने का आरोप लगाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के दखल से सरकारें सतर्क, सिर्फ 1 मामला
सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद से सांसद-विधायकों के खिलाफ मामले वापस लेने में कमी आई है। पिछली कांग्रेस सरकार ने लोकसभा स्पीकर सहित करीब 40 भाजपा नेताओं के खिलाफ एक प्रकरण वापस लिए जाने का फैसला किया था और उसमें हाईकोर्ट की मंजूरी भी मिल गई थी। बाद में वापस लेने की कार्रवाई संबंधित कोर्ट में पूरी की गई थी। इस भाजपा सरकार के करीब एक साल के कार्यकाल में सराफ का यह पहला ही मामला है।

हाईकोर्ट से मंजूरी की जरूरत क्यों?
वर्ष 2021 में तत्कालीन सीजेआई एनवी रमन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि राज्य सेक्शन 321 के तहत मिली ताकत का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उसी समय निर्देश दिए कि सांसद-विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों को संबंधित हाईकोर्ट की मंजूरी के बिना वापस नहीं लिया जा सकेगा। एडवोकेट प्रतीक कासलीवाल का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक गाइडलाइन बना रखी है। उसके तहत देखा जाता है कि प्रकरण वापस लिए जाने के पीछे की सरकार की मंशा क्या है?