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थप्पड़ SDM के नहीं पड़ा


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थप्पड़ SDM के नहीं पड़ा

थप्पड़ SDM के नहीं पड़ा

थप्पड़ SDM के नहीं पड़ा : 13 नवम्बर को उप चुनाव के दौरान एक निर्दलीय प्रत्याशी ने वहां मौजूद SDM को फ़ंफ़नाट करता हुआ एक तमाचा जड़ दिया जिसकी विडियो दबाकर वायरल हो रही है।

मैं कहना चाहूंगा कि थप्पड़ SDM के पड़ा ही नहीं ये थप्पड़ तो उपचुनाव ड्यूटी में तैनात एक कर्मी के लगा है और इतना ज्यादा तेज भी नहीं लगा बस आवाज ही ज्यादा हुई थी तो, इतने हंगामे की क्या जरूरत आन पड़ी ?? भाई🤔

एक उपजिला कलेक्टर इलाके का कलेक्टर होता है, ये तमाचा उस एस डी एम के नहीं बल्कि पूरे सिस्टम के पड़ा है मित्रों, प्रशासन का भय निकलने के परिणाम अब नजर आने लगे हैं, जिम्मेदार भी शायद अधिकारी ही हैं,।

मेरा मानना है कि एक RAS व IAS अधिकारियों को जनता के साथ ज्यादा भाईचारे से मेल नहीं रखना चाहिए,,, कुछ तो सीमाएं व मर्यादाए होनी चाहिए, लोग इन्हें साब की जगह भैया या भाईसाब कहने क्या लगे, लोग इनके गले मे हाथ डालकर बतियाने लगे,, आर्मी के अनुशासन को समझिये जरा वहां शायद आज भी पद का ख़ौफ़ है। भीड़ के आगे पुलिस का भारी दल बल फीका क्यों पड़ने लगा है क्योंकि अब अपराधियो जैसी हरकत करने वाले लोगो मे जूते मारने वाले पुलिस कर्मियों व अधिकारियों पर उच्च अधिकारी पीठ थपथपाने की बजाय खुद की कुर्सी सुरक्षित रहे इसलिए दबाव मे आकर नोटिस देना,डॉट फटकार लगाना ज्यादा पसंद करते हैं,, नजीतन
अपराध व आपराधिक गतिविधियों को पंख लगे हैं।

SDM लेवल का अधिकारी sdm ही नहीं होता बल्कि उस क्षेत्र के मुखिया का प्रतिनिधित्व भी करता है। आज ये क्या बवाल मचा हुआ है कि थप्पड़ मारने वाले आरोपी को पकड़ने गई पुलिस को भी खोपड़ी फुडवानी पड़ी हो,,, ये होता क्या जा रहा है सिस्टम को,कौंन इसे खोखला बना रहा है???

क्यों कि इस सिस्टम में मजबूत अधिकाररियों को खांचे में इसलिए फिट कर दिया जा रहा है कि एक तो वो दूध नही दे रहा और ऊपर से लात भी मार रहा है।

इसका बड़ा कारण ये भी है कि माल देकर जब अधिकारी क्षेत्र में माल कूटने के लिए लगता है तो वो भी चाहता है कि कोई साब की जगह भाईसाब बोल दे,कोई साथ बैठकर चाय पी ले,हँसी ठिठोली कर ले सब चल जाएगा बस पोस्टिंग बनी रहे ताकि बेचारे बच्चे सही से पल जाएं। दोस्तों मेरा ये कंटेंट बुरा जरूर लग रहा होगा पर एक बार तीन से चार दशक पहले वाले सिस्टम के बारे में सोचिये तो जरा,
क्या जोरदार ख़ौफ़ रहा करता था क्योंकि अधिकारी भी अपनी मर्यादाए समझते थे,,आज मन आए उसके साथ हाथ मिला लेना,मन आए जिसके साथ बैठ जाना ने मर्यादाए भी तोड़ी तो हैं ही।

13 नवम्बर की घटना वीभत्स रही कोई संदेह नहीं, ऐसे लोगों को कड़ी से कड़ी सजा भी मिलनी चाहिए,,,

पर उससे कहीं अधिक आवश्यकता है सिस्टम को जर्जर होने से बचाए जाने की,,,जिस अधिकारी की आंखों में आंखे डालकर बोलने की हिमाकत नहीं करने वाली आवाम आज उसे दिन दहाड़े खुले आम सपाटा मार दे,,,,उस सिस्टम के गिरते हुए मानवीय मूल्यों को भी बचाना होगा,,

आवारा पुत्र द्वारा अपने ही पिता को समाज के सामने थप्पड़ मार देना,,बाप बेचारा कहलाए तो कहीं ना कहीं उसकी परवरिश पर भी सवाल उठते हैं,,।

एक पुलिसकर्मी पूरे गांव में से अपराधी को पकड़कर लाता था। आज एक मोहल्ले में से एक अदने से बदमाश को पकड़ने पूरी फोर्स मय डिप्टी एस पी स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में जाती है, और बैरंग नहीं बल्कि लाल रंग लेकर (खोपडिया फुटवाक़े) आती है। इसे विडंबना नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे मित्रों।

बदलाव की आवश्यकता समाज से ज्यादा सिस्टम को हैं।

ऐसी इकोफ्रेंडली का कोई लाभ नहीं जब खुद की हड्डियों में से कैल्शियम निकाल कर संगठित भीड़(समाज) को दे दिया जाए,,,
मंथन व चिंतन का विषय है मित्रों

एक नरेश को तो पकड़ लाए उसे दोनों तरह की सजा भी मिल जाएगी,,पर खुद को मजबूत नहीं बनाओगे तो नित नए नरेश पैदा होंगे,,,।

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