खेतड़ी : जब हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुकूमत थी, तब खेतड़ी की रियासत कोटपूतली तक हुआ करती थी। स्वामी विवेकानंद के अजीज मित्र अजीत सिंह भी खेतड़ी रियासत के नरेश ( राजा ) रह चुके। अजीत सिंह का जन्म आज ही के दिन 16 अक्टूबर 1861ई. को झुंझुनूं जिले के अलसीसर में हुआ था। आज उनकी जयंती है। उनके पिता का नाम छान्तु सिंह और माँ उदावत थी। मात्र छह वर्ष की आयु में अजीत सिंह के ऊपर से माता – पिता का साया उठ गया था। खेतड़ी नरेश फतेह सिंह भी नि:सन्तान थे। तत्कालीन खेतड़ी नरेश फतेह सिंह ने अलसीसर प्रवास के दौरान अजीत सिंह को दत्तक पुत्र बनाया था। अजीत सिंह 1870 ई. में खेतड़ी नरेश बने और 1876 ई. में 15 वर्ष की आयु में उन्होंने रानी चम्पावत से शादी की। उनके एक बेटा जयसिंह और दो बेटियां सूर्य कुमारी व चंद्र कुमारी थी। स्वामी विवेकानंद व राजा अजीत सिंह पर रिसर्च कर चुके डॉ. जुल्फिकार भीमसर के अनुसार खेतड़ी नरेश अजीत सिंह अपने सम – सामयिक राजस्थानी राजाओं और प्रजा में बड़े लोकप्रिय शासक थे। उन्हें हिन्दी, अग्रेजी, उर्दू, संस्कृत और राजस्थानी सहित 5 भाषाओं का ज्ञान था। वे पांचों भाषा पढ़ व लिख सकते थे।
स्वामी विवेकानंद को विश्वधर्म परिषद और यूरोपीय देशों में धर्म प्रचारर्थ भिजवाने में राजा अजीत सिंह का सबसे बड़ा योगदान रहा है। इससे पहले अमेरिका में भारत की छवि एक ऐसे देश की थी जिसमें सांप सपेरा और अंधविश्वासी लोग रहते हैं, तब स्वामीजी ने उन्हें बताया कि वास्तव में भारत क्या है, उनके मुख से प्राचीन ग्रंथों की नई व्याख्या सुनकर वे चकित रह गए तब अमेरिका में ऐसा कोई अखबार नहीं था जिसके प्रथम पृष्ठ पर स्वामीजी की फोटो और उनका परिचय प्रकाशित न हुआ हो। अपने मित्र राजा अजीत सिंह के बारे में स्वामी विवेकानंद ने स्वयं कहा था कि –
“भारतवर्ष की उन्नति के लिए जो कुछ मैंने थोड़ा बहुत किया है, वह में नहीं कर पाता यदि राजा अजीत सिंह मुझे नहीं मिलतें “
संन्यासी और राजा में समानता :
राजा अजीत सिंह और स्वामी विवेकानंद दोनों गुरु और शिष्य में एक समानता थी, राजा अजीत सिंह की आयु अधिक नहीं रहीं। 18 जनवरी 1901ई. को उत्तरप्रदेश के सिकंदरा में उनका देहांत हो गया, यानी स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन 12 जनवरी से ठीक 6 दिन बाद इसके अलावा दोनों में एक और समानता है, अपने शिष्य की मृत्यु से स्वामीजी को बहुत दु:ख हुआ और अगले ही साल वो भी 4 जुलाई, 1902ई. को ब्रह्मलीन हो गये। स्वामीजी ने स्वीकार किया कि उनकी सफलता में राजा अजीत सिंह का अत्यधिक योगदान था। जब भी स्वामीजी की कीर्ति और यश का जिक्र किया जाएगा, तब राजा अजीत सिंह का नाम अवश्य लिया जायेगा।
टाॅपिक एक्सपर्ट :
राजा अजीत सिंह बहादुर, सुयोग्य, प्रजा हितैषी, विधानुरागी, ज्योतिष के ज्ञाता और कवियों का आदर करने वाले शासक थे। उस समय दरबारी कवि कविराज बलदेव बारहठ को इन्होंने एक लाख रुपये का सम्मान देकर अपनी उदारता व काव्यानुराग का परिचय दिया था। ~ डॉ. जुल्फिकार, भीमसर गांव के युवा लेखक चिन्तक