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145 करोड़ मरीज लाभान्वित:13 साल पहले 2 अक्टूबर 2011 में शुरू हुई थी निशुल्क दवा योजना, 195 से 2100 करोड़ पहुंचा बजट


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145 करोड़ मरीज लाभान्वित:13 साल पहले 2 अक्टूबर 2011 में शुरू हुई थी निशुल्क दवा योजना, 195 से 2100 करोड़ पहुंचा बजट

145 करोड़ मरीज लाभान्वित:13 साल पहले 2 अक्टूबर 2011 में शुरू हुई थी निशुल्क दवा योजना, 195 से 2100 करोड़ पहुंचा बजट

जयपुर : प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में मरीजों के इलाज का भार कम करने व क्वालिटी से युक्त इलाज देने के लिए 2 अक्टूबर 2011 से प्रारंभ मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना को बुधवार को 13 साल हो गए है। अब तक 13 साल में दिल, कैंसर, लिवर, डायबिटीज समेत गंभीर बीमारियों से पीड़ित 145 करोड़ मरीज लाभान्वित हो चुके हैं।

यहां तक कि योजना प्रारंभ होने पर 13 साल पहले बजट 195 करोड़ था, जो अब बढ़कर 2100 करोड़ के पार हो गया है। लेकिन सरकारी अस्पतालों में दवाओं का टोटा होने के कारण कभी-कभी मरीजों को दिक्कत आती है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि जहां भी मरीजों को दवा उपलब्ध नहीं होती, वहां पर हर तरह से मॉनिटरिंग की जा रही है।

इधर, मुख्यमंत्री निशु्ल्क निरोगी राजस्थान योजना (दवा) के स्टेट नोडल अधिकारी डॉ. रामबाबू जायसवाल का कहना है कि केन्द्र सरकार की ओर से जारी डीवीडीएमएस के आंकड़ों के अनुसार राजस्थान लगातार एक नंबर पर बना हुआ है। जिसमें सरकार के सभी अधिकारियों एवं स्टाफ का योगदान है।

नई सरकार की पॉलिसी

मुख्यमंत्री भजनलाल सरकार इस पॉलिसी पर काम कर रही है कि सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों को सरकारी डॉक्टरों द्वारा लिखी गई सभी दवाएं दवा वितरण काउंटरों पर मिली। जिससे मरीजों को निजी सेन्टरों पर नहीं खरीदनी पड़े। खुद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा व चिकित्सा मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर संबंधित अधिकारियों को ऐसी योजना बनाने के निर्देश दे चुके हैं कि अस्पताल में आने वाला मरीज बिना दवा के नहीं जाना चाहिए।

निशुल्क दवा योजना का इतिहास

  • निशुल्क दवा योजना का शुभारंभ 2 अक्टूबर 2011, {अब नाम बदलकर मुख्यमंत्री निशुल्क निरोगी राजस्थान योजना (दवा)
  • जून -2024 में राजस्थान ने 76.78 अंकों के साथ प्रथम स्थान मिला।

टेंडर नहीं होने से दवा का टोटा

  • इसलिए सरकारी अस्पतालों में दवा का टोटा: विशेषज्ञों के अनुसार सरकारी अस्पतालों में दवा का टोटा होने के कारण समय पर टेंडर नहीं होना और प्रोसेस प्रक्रिया लंबी है। टेंडर में शामिल कंपनियों की ओर से दवा की आपूर्ति के बाद भी सरकार की ओर से समय पर पैसा नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में आपूर्ति रोकने से मरीजों का इलाज प्रभावित हो रहा है।
  • निशु्ल्क दवा से इलाज सस्ता: एक समय था, जब मरीज पैसे के अभाव में इलाज के चलते जिन्दगी-मौत से जूझते दम तोड़ देता था, लेकिन योजना के बाद हर साल अस्पतालों में निशुल्क दवा, सर्जिकल आइटमों के उपलब्ध होने से आउटडोर-इनडोर तक बढ़ गया। ये ही नहीं निशुल्क दवा से मरीजों का इलाज सस्ता हो गया है।

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