सरकारी अस्पताल का ‘RRR’ सिस्टम, जिसने बचाई 214 जानें:इमरजेंसी में मरीज के पहुंचने से पहले तैयार रहता है ICU, न पर्ची का झंझट न भर्ती का इंतजार
सरकारी अस्पताल का ‘RRR’ सिस्टम, जिसने बचाई 214 जानें:इमरजेंसी में मरीज के पहुंचने से पहले तैयार रहता है ICU, न पर्ची का झंझट न भर्ती का इंतजार

उदयपुर : हेलो- मैं एमबी अस्पताल से बात कर रहा हूं। आपका मरीज कितनी देर में अस्पताल पहुंचेगा? आपकी लोकेशन वॉट्सऐप कर दीजिए
हेलो (कुछ देर बाद)…आपके मरीज के इलाज की पूरी व्यवस्था कर दी गई है।
ये किसी बड़े प्राइवेट अस्पताल के रिसेप्शन से किया गया फोन कॉल नहीं है, उदयपुर के सरकारी अस्पताल महाराणा भूपाल (MB) का है। अस्पताल ने ‘RRR’ यानी रैपिड, रेफरल और रिड्रेसल सिस्टम तैयार किया है जिसके जरिए पिछले 2 महीने में 214 मरीजों की जान बचाई जा चुकी है। अस्पताल प्रशासन का दावा है कि यह देश का पहला सरकारी अस्पताल है, जहां गंभीर हालत में रेफर मरीजों की जान बचाने का ऐसा सिस्टम है।
अन्य अस्पतालों में जहां रेफर होकर आए मरीजों को पर्ची कटवाने, भर्ती करवाने में ही घंटों लग जाते हैं, उदयपुर के एमबी अस्पताल में मरीज के पहुंचते ही स्ट्रेचर, डॉक्टर और आईसीयू तैयार मिलता है।
हमारे मीडिया कर्मी ने अस्पताल की ग्राउंड रिपोर्ट कर यह जाना कि आखिर यह सिस्टम क्या है, जो मरीजों की जान बचा रहा है…

डॉक्टर ने तैयार किया सिस्टम, 2 महीने पहले शुरुआत
इस सिस्टम को डेवलप किया है RNT मेडिकल कॉलेज प्रिंसिपल डॉ. विपिन माथुर ने।
डॉ. माथुर बताते हैं- मन में था कि एक ऐसा सिस्टम बनाया जाए जिससे इमरजेंसी में आने वाले मरीजों को पहुंचते ही उपचार मिल जाए।
क्योंकि इमरजेंसी में आए मरीज की जिंदगी बचाने के लिए कुछ मिनट या घंटे ही होते हैं। इसे गोल्डन अवर कहते हैं। उस समय मरीज को इलाज मिल जाए तो हम काफी जानें बचा सकते हैं।
डॉ. माथुर ने बताया- बाहर से रेफर होकर इमरजेंसी में आने वाले मरीज और अस्पताल के बीच ब्रिज (सेतु) बनाया गया है। नाम ‘RRR’ दिया है। इसका मतलब है R- रेपिड (त्वरित), रेफरल (रेफर) और रिड्रेसल (निवारण)। यानी रेफर मरीजों का त्वरित निवारण।
जहां से मरीज रेफर होकर रवाना होता है उससे पहले हमारे पास उसकी पूरी डिटेल पहुंच जाती है। मरीज के अस्पताल पहुंचने से पहले उसके उपचार के लिए स्पेशलिस्ट डॉक्टर और अस्पताल की टीम उसका इंतजार करती है।

यह ट्रिपल आर (RRR) सिस्टम क्या है, कैसे काम करता है?
डॉ. विपिन माथुर ने बताया कि अस्पताल की ओर से एक गूगल फॉर्म का QR कोड बनाया गया है। यह QR कोड उन अस्पतालों को दिया गया है जहां से सबसे ज्यादा मरीज रेफर होकर यहां आते हैं। उन अस्पतालों में जैसे ही कोई गंभीर घायल या गंभीर हालत में मरीज को रेफर करने की जरूरत होती है, तब वहां का डॉक्टर QR कोड स्कैन कर लिंक को ओपन करता है।

लिंक में मरीज से संबंधित जानकारी भरता है। जैसे- मरीज का नाम, क्या बीमारी है, किस तरह की इमरजेंसी है, अब तक क्या इलाज दिया गया है, मरीज की वर्तमान हालत क्या है। इसके साथ ही डॉक्टर खुद का नाम और परिवार के एक सदस्य का मोबाइल नंबर भी देता है। इस फॉर्म में जानकारी भरने के बाद उसे सब्मिट कर देता है।

एमबी अस्पताल में पहुंचता है नोटिफिकेशन
आरएनटी मेडिकल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. एमएस राठौड़ बताते हैं- रेफर करने वाला डॉक्टर जैसे ही गूगल फॉर्म सब्मिट करता है। MB हॉस्पिटल में बने कंट्रोल रूम के पास नोटिफिकेशन आता है। इसके साथ ही मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल और इस इमरजेंसी के लिए बनी टीम के पास भी यह सूचना पहुंच जाती है।
सबसे पहले कंट्रोल रूम की वर्किंग शुरू हो जाती है। मरीज की हिस्ट्री इमरजेंसी में शेयर की जाती है और वहां पर उस बीमारी से जुड़े डॉक्टर को तैयार रहने को कहा जाता है। अगर डॉक्टर वहां मौजूद नहीं है तो उसे अस्पताल आने के लिए सूचित किया जाता है। मरीज के आने के अनुमानित समय के अनुसार इमरजेंसी के मुख्य गेट पर तमाम प्रबंध कर दिए जाते हैं।

इसी दौरान कंट्रोल रूम पर मौजूद व्यक्ति मरीज के परिजनों के नंबर पर कॉल कर उनसे लोकेशन लेता है। सारी तैयारियां होने के बाद उन्हें जानकारी भी देता है। अस्पताल पहुंचते ही मरीज को भटकने की बजाय सीधे इलाज के लिए ले जाया जाता है।
तुरंत इलाज के लिए 12 ट्रॉमा बेड को इमरजेंसी आईसीयू में बदला
डॉ. विपिन माथुर ने बताया कि इस सिस्टम को पूरी तरह से वर्क करने के लिए जरूरी था कि इमरजेंसी वार्ड में ही मरीज को वो लाइफ सेविंग सुविधाएं दी जाएं जो आईसीयू में रहती हैं। हमारे पास इमरजेंसी में 10 मेडिकल के और 12 ट्रॉमा बेड थे। सभी बेड को आईसीयू बेड में तब्दील कर किया गया।

सिस्टम को मैनेज करने के लिए बनाया कंट्रोल रूम
डॉ. माथुर ने बताया कि अस्पताल के कंट्रोल रूम को भी सिस्टम के साथ जोड़ा गया है। आमतौर पर अस्पतालों में शिफ्ट को लेकर दिक्कत आती है। इसे सॉल्व करने के लिए 50 सीयूजी मोबाइल (एक ग्रुप के लिए) खरीदे गए। ये मोबाइल ब्लड बैंक से लेकर अलग-अलग डिपार्टमेंट को बांटे गए।
सभी को पाबंद किया गया कि जिसे सीयूजी आवंटित है वही उसे संभालेगा। कोई सीयूजी नंबर को बंद नहीं करेगा। अगर कोई बंद करता है तो इसकी सूचना एचओडी को दी जाएगी। नेटवर्क समस्या आने पर लैंडलाइन नंबरों के उपयोग का विकल्प भी दिया गया है।

कंट्रोल रूम में बड़ी एलईडी स्क्रीन लगाई गई हैं। इसके अलावा प्रिंसिपल कक्ष और इमरजेंसी में भी एलईडी स्क्रीन लगाई गई हैं। जब भी कोई रेफर केस आता है, उसका नोटिफिकेशन इन स्क्रीन पर शो होने लगता है। साथ ही बीप की आवाज भी सुनाई देती है। इस सिस्टम से जुड़ी डॉक्टर की टीम के पास भी नोटिफिकेशन जाता है।
214 मरीजों की जिंदगी बचाई गई
डॉ. माथुर बताते हैं कि पहले मरीजों को आधा घंटे से ज्यादा का समय तो भर्ती होने में लगता था। इतने में कई लोगों की जान चली जाती थी। अब इस सिस्टम के जरिए आते ही उन्हें इमरजेंसी में शिफ्ट करना जरूरी होता है। उनकी स्थिति चेक करने के बाद आईसीयू या वार्ड में भर्ती करने का फैसला लिया जाता है।
अभी 2 महीने में शहरी क्षेत्र के इमरजेंसी स्थिति में मरीज ही यहां आ रहे थे। इसमें 214 मरीज आरआरआर सिस्टम के जरिए पहुंचे थे। इसमें मेडिकल इमरजेंसी के 81, ट्रॉमा के 30, बाल रोग के 29, महिला एवं प्रसूता से जुड़े 25 और बाकी अन्य मरीज थे। 214 में से 119 को भर्ती किया गया था जबकि 69 सुपर स्पेशियलिटी के केस थे।

वो तीन बड़े मामले जब RRR सिस्टम ने गोल्डन आवर में बचाई मरीजों की जान
आरएनटी के प्रिंसिपल डॉ. विपिन माथुर बताते हैं कि इमरजेंसी में आने वाले मरीजों की जांच और हिस्ट्री के बारे में पता नहीं होने के कारण गोल्डन अवर निकल जाता है। ऐसे में सिस्टम को डेवलप करने के लिए विचार किया। इस दौरान जैसे ही यह आइडिया आया इसे टीम के साथ बैठकर अमल में लाया गया। इसपर कम्युनिटी मेडिसिन विभाग ने काम किया है।
केस-1 : नेपाली नौकरानी ने बेहोश किया, सेतु से पहुंचे अस्पताल
9 जुलाई को उदयपुर के सुखेर थाना क्षेत्र में डकैती की वारदात हुई। नेपाली नौकरानी ने माइनिंग कारोबारी संजय गांधी (47), पत्नी शिल्पा गांधी (40) बेटा शौर्य (10) और बेटी नियोनिका (18) को बेहोश कर दिया था। उन्हें जहरीला केमिकल सुंघाया गया था। स्थानीय अस्पताल के डॉक्टर ने रेफर करने से पहले मरीज की पूरी जानकारी ट्रिपल आर सिस्टम से भेज दी। जैसे ही इनको एमबी अस्पताल पहुंचाया तो वहां पर उनकी व्यवस्था कर दी गई थी और उसी के एक्सपर्ट डॉक्टर पहुंच गए और चारों का उपचार शुरू कर दिया गया।

केस-2 : साढ़े छह साल की नंदिनी की जान बच गई
प्रतापगढ़ अस्पताल के बाल चिकित्सा विभाग के वरिष्ठ विशेषज्ञ डा. धीरज सेन ने बताया कि उनके पास रात करीब 10.30 बजे 6 साल की एक बच्ची को गंभीर स्थिति में लाया गया था। जांच की गई तो निमोनिया बिगड़ा हुआ था। बाएं फेफड़े में पानी भर गया था। तभी स्टाफ के एक कर्मचारी से पता चला कि उदयपुर में सेतु सिस्टम शुरू किया है। मैंने उस क्यू आर कोड से पूरी जानकारी पेशेंट की अपलोड कर सबमिट किया। तत्काल मरीज के पास कॉल आ गया।
रात को 1.30 बजे परिजन उदयपुर के एमबी अस्पताल बच्ची को लेकर पहुंचे। वहां पर हमारी तरफ से अपलोड किए मरीज के ट्रीटमेंट की रिपोर्ट और एक्सरे के आधार पर सर्जरी के विशेषज्ञ डॉक्टर को पहले ही बुला लिया गया था। कुछ ही मिनट में बच्ची का उपचार शुरू कर दिया गया, जिससे उसकी जान बच सकी।
केस-3 : पेट में जुड़वा बच्चों और प्रसूता की जान बचाई
उदयपुर-अहमदाबाद हाईवे पर एक निजी अस्पताल के डॉ. महेंद्र डामोर ने बताया कि हमारे पास एक जुड़वां बच्चों से 7 माह की गर्भवती को गंभीर स्थिति में लाया गया था। प्रसूता को स्पेशलिस्ट डॉक्टर का इलाज जरूरी था, वरना जान जा सकती थी। इसलिए तुरंत महिला की मेडिकल कंडीशन सेतु पर अपलोड कर दी। वहां जाते ही उसका उपचार शुरू कर दिया। डॉक्टरों के तुरंत इलाज मिलने से एक बच्चे और प्रसूता की जान को बचाया जा सका था।

इसी सिस्टम की मांग कर चुके 2 जिले
धीरे-धीरे उदयपुर के पूरे जिले को इससे जोड़ने की कवायद शुरू की गई है। CMHO के जरिए गांव-गांव के सीएचसी और पीएचसी में यह सुविधा पहुंचाने के लिए अवेयरनेस लाई जा रही है।
इस व्यवस्था को देखकर राजसमंद की सांसद महिमा कुमारी, नाथद्वारा विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ और राजसमंद विधायक दीप्ति किरण माहेश्वरी भी चाहती हैं कि उनके जिले में भी ये RRR सिस्टम लाया जाए। डॉ. माथुर बताते हैं कि जल्द ही हमारे अस्पताल की टीम इन दो जिलों के प्रतिनिधियों को प्रेजेंटेशन देकर इस सिस्टम के बारे में समझाएगी।

ये है टीम जो RRR को सफल बना रही
- आरएनटी कॉलेज प्रिंसिपल डाॅ. विपिन माथुर
- डाॅ. आर. एल. सुमन, अधीक्षक एमबी अस्पताल
- डाॅ. विजय गुप्ता, अतिरिक्त प्राचार्य
- डाॅ. गौरव जायसवाल आरएमओ इमरजेंसी
- डाॅ. भुवनेश चंपावत
- डाॅ. कुशल गहलोत
- डाॅ.एम.एस. राठौड़
- कंट्रोल रूम, इमरजेंसी स्टाफ