खुद कमाया कांमड़ा कीनै दीजृयो दोष
खुद कमाया कांमड़ा कीनै दीजृयो दोष

राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक
एक मारवाड़ी की प्रचलित कहावत है कि खुद कमाया कांमड़ा कीनै दीजृयो दोष भावार्थ है कि जब खुद ने ही ग़लत व्यक्ति का चयन करते गये व जब समस्या का समाधान नहीं हो रहा तो दोषारोपण पर उतारू हो जाते हैं । उपरोक्त कहावत झुंझुनूं जिले के मतदाताओं पर खरी उतरती है । जिस नेता को यमुना जल को लेकर मुद्दे पर वोट देते आये लेकिन उस नेता ने इस मुद्दे का दोहन किया व परिवार वाद को बढ़ावा दिया । अब जब घोर जल संकट सामने है तो सरकारों को दोषारोपण करते हैं । मतदान के समय जातिवाद हावी हो जाता है यही मूल कारण है कि कोई निस्वार्थ भाव से जनसेवा करने वाला व्यक्ति चुनावों से किनारा कर लेता है । क्योंकि उसको पता है कि जातिवाद की यह राजनिति उसको चुनावों में टिकने नहीं देगी । इसी जातिवाद की राजनीति की बुखार के चलते राजनीतिक दल केवल एक विशेष जाति के उम्मीदवार को ही टिकट देते हैं । अपवाद के रूप में जरूर एक दो बार अन्य जाति का नेता विजयी हुआ है ।
इसी के चलते यदि झुंझुनूं विधानसभा की बात करें तो जिले के विकास को लेकर व अभी बरसात की वजह से झुंझुनूं शहर जलमग्न होने को लेकर नेताओं को कोसते रहते हैं लेकिन शायद उनको पता नहीं होगा कि उन्हीं के वोट से लगातार तीन बार विधायक बने हैं । यदि वह नेता जनहित के मुद्दों को प्राथमिकता नहीं दी तो बार बार उसको क्यों मौका दिया जा रहा है ? यदि मौका दे रहे हैं तो फिर इन समस्याओं को लेकर सरकार व जन प्रतिनिधि को दोषी क्यों ठहराया जा रहा है ? किसी भी नेता की जनहित के मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता एक कार्यकाल में ही उजागर हो जाती है फिर उसको लगातार तीन कार्यकाल देकर क्यों ढोया जा रहा है ?
जब जनता जन प्रतिनिधियों से जवाबदेही का हिसाब मांगना शुरु कर देगी तो निश्चित रूप से जनहित के कार्य होंगे इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए । झुंझुनूं विधानसभा में आगामी उपचुनाव होने वाले हैं और एक तरफ परिवारवाद होगा तो दूसरी तरफ परिवारवाद को खात्मे को लेकर उम्मीदवार चुनावी समर में होगा । लेकिन भाजपा को भी टिकट वितरण में पारदर्शिता का परिचय देते हुए किसी जनाधार वाले नेता पर दांव लगाना होगा व भीतरघात के साथ ही बागी उम्मीदवार पर अंकुश लगाना होगा क्योंकि भाजपा अपने बोझ के कारण ही चुनावों में पराजित होती आई है । विधानसभा सभा क्षेत्र के प्रबुद्ध मतदाताओं भी आगामी उप चुनाव में अपने विवेक को वरीयता देगे न कि चुनाव परिणाम जातिवाद के तराजू में तोलेंगे । बदलाव से ही नेताओं को उनकी जिम्मेदारी का अहसास होगा यदि ऐसा नहीं होता है तो उपरोक्त कहावत को देखते हुए अपनी समस्याओं व जनहित के मुद्दों को लेकर नेताओ को न कोसे क्योंकि इस परिस्थिति के जिम्मेदार हम खुद है नेता नहीं ।