[pj-news-ticker post_cat="breaking-news"]

देश का पहला बिना पिलर का जैन मंदिर:राजस्थान में 550 एकड़ का कैंपस, 11 मंजिला मंदिर में 720 प्रतिमाएं होंगी स्थापित


निष्पक्ष निर्भीक निरंतर
  • Download App from
  • google-playstore
  • apple-playstore
  • jm-qr-code
X
अजमेरटॉप न्यूज़राजस्थानराज्य

देश का पहला बिना पिलर का जैन मंदिर:राजस्थान में 550 एकड़ का कैंपस, 11 मंजिला मंदिर में 720 प्रतिमाएं होंगी स्थापित

देश का पहला बिना पिलर का जैन मंदिर:राजस्थान में 550 एकड़ का कैंपस, 11 मंजिला मंदिर में 720 प्रतिमाएं होंगी स्थापित

देश का पहला जैन मंदिर, जिसमें बिना पिलर का गुफा मंदिर भी होगा। पहाड़ी की तलहटी में स्थित डोम के आकार का गुफा मंदिर 90 फीट चौड़ा और 135 फीट लंबा है। इसे बनाने में लाल पत्थरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। करीब साढ़े पांच सौ एकड़ के कैंपस में जैन धर्म से जुड़े तमाम मंदिर और प्रतिमाएं हैं। महावीर जयंती के मौके पर हम आपको ले चलते हैं अजमेर के ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र नारेली।

मंदिर के अंदर भगवान महावीर की वर्तमान, भूत व भविष्य की तीन मृर्तियां लगाई गई हैं।
मंदिर के अंदर भगवान महावीर की वर्तमान, भूत व भविष्य की तीन मृर्तियां लगाई गई हैं।

तीर्थ निर्माण की शुरुआत से लेकर अब तक की पूरी कहानी पढ़िए…

नारेली तीर्थ क्षेत्र कमेटी के कोषाध्यक्ष मिश्रीलाल जैन ने बताया कि 150 मीटर ऊंची पहाड़ी की तलहटी में बना यह बहुउद्देशीय क्षेत्र करीब साढे़ पांच सौ बीघा भूमि पर फैला है। ज्ञानसागर महाराज की समाधि नसीराबाद (अजमेर) में है। संत शिरोमणी पूज्य आचार्य 108 विद्यासागरजी की दीक्षा स्थली भी अजमेर ही है। दोनों महान आदर्श संतों की यशोगाथा को चिर स्थायी बनाने के लिए ‘ज्ञानोदय तीर्थ’ बनाया गया।

इसी कैंपस में 11 मंजिला मंदिर भी बन रहा है। इसका काम भी लगभग पूरा हो चुका है। यहां भगवान आदिनाथ से महावीर स्वामी तक 24 तीर्थंकरों की 3-3 प्रतिमाएं विराजेंगी। हर मंजिल पर 72 और 10 मंजिलों में चारों ओर 720 प्रतिमाएं तीर्थंकरों की लगेंगी। गौशाला, स्कूल, हॉस्पिटल के अलावा भक्तों के ठहरने के लिए धर्मशाला को भी बनाया गया है।

साल 1997 में सुधासागरजी महाराज का प्रथम चातुर्मास भी इसी क्षेत्र पर हुआ था। इस साल कई योजनाएं शुरू की गईं और विभिन्न योजनाओं का शिलान्यास किया गया।

एंट्री पर लाल पत्थरों से बना सिंहद्वार

नारेली तीर्थ में एंट्री पर लाल पत्थरों से बना सिंहद्वार है। इसकी ऊंचाई 51 फीट है। इसके दोनों तरफ सुरक्षाकर्मियों के लिए 2 मंजिले कमरे बने हैं। इस द्वार से क्षेत्र के प्रमुख मंदिर आदिनाथ जिनालय में स्थापित विशाल और भव्य मनोहारी आदिनाथ की प्रतिमा के दर्शन होते हैं। इसका उद्घाटन 16 सितम्बर, 2000 को आर. के.मार्बल परिवार किशनगढ़ ने किया।

त्रिकाल चौबीसी के 24 मंदिर पहाड़ी पर बने हैं। लाल पत्थरों से बने ये कलात्मक मंदिर एक जैसे हैं।
त्रिकाल चौबीसी के 24 मंदिर पहाड़ी पर बने हैं। लाल पत्थरों से बने ये कलात्मक मंदिर एक जैसे हैं।

आदिनाथ जिनालय में बना ‘ज्ञानसागर सभागार’

पहाड़ी की तलहटी में अक्षरधाम की तर्ज पर आदिनाथ जिनालय बना है। मंदिर भव्य और कलात्मक है। फव्वारे, गार्डन, धर्म आधारित कलाकृतियां आदि इसकी सुंदरता को बढ़ाती हैं। इसमें भूतल पर वृत्ताकार आकृति में ‘ज्ञानसागर सभागार’ है। इसके चारों तरफ दरवाजे हैं। यह खुला-खुला और हवादार है। बीच में शानदार स्टेज है।

दूसरी मंजिल पर विशाल जिनालय है। हॉलनुमा इस मंदिर में लाल पत्थर से बनी विशालकाय मूर्ति स्थापित है। लाल पत्थरों के कमलासन पर मूर्ति पद्मासन में विराजमान है। प्रतिमा एक ही पत्थर से बनी है, जिसकी ऊंचाई 21 फीट और वजन करीब 40 मीट्रिक टन है। इस मंदिर का शिलान्यास सुधासागरजी महाराज के सानिध्य में 11 अगस्त, 1997 को आरके मार्बल परिवार ने किया था।

बच्चों के लिए स्कूल और हॉस्टल

यहां सुधार सागर पब्लिक स्कूल भी बनाया गया है, जिसका भवन तैयार हो चुका है। स्कूल में 40 कमरों को बनाया गया हैं। मान्यता को लेकर कार्रवाई चल रही है। बच्चों के लिए 35 कमरों के हॉस्टल की भी व्यवस्था है।

तीर्थक्षेत्र में 55 फीट के 2 कीर्ति स्तंभ

ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र नारेली में 55 फीट के 2 कीर्ति स्तंभ भी हैं। इनमें एक आचार्य ज्ञान सागर महाराज का समाधि और आचार्य विद्या सागर महाराज को कीर्ति स्तंभ बना हुआ है। दो कीर्ति स्तंभ प्रवेश करते ही नजर आते हैं, जो कि तीर्थकर वन में है।

त्रिकाल चौबीसी के 24 मंदिर

त्रिकाल चौबीसी के 24 मंदिर पहाड़ी पर बने हैं। लाल पत्थरों से बने ये कलात्मक मंदिर मूल रूप से एक जैसे हैं, लेकिन सभी का शिल्प व कारविंग कार्य अलग-अलग है। मंदिरों का निर्माण अलग-अलग पुण्यार्जकों ने करवाया है। इनमें त्रिकाल चैबीसी विराजमान की जा रही है। मंदिरों में कुल 72 मूर्तियां स्थापित की जाएगी, जिसमें भरत क्षेत्र के भूत, भविष्य और वर्तमान के 24-24 तीर्थंकर अर्थात ‘चौबीसी’ रहेगी। प्रतिमाओं की ऊंचाई 5.6 फीट रखी गई है।

श्री नंदेश्वर जिनाला

श्री नंदेश्वर जिनाला पहाड़ की चढ़ाई शुरू होने के साथ ही मोड पर निर्माणाधीन है। शास्त्रों के अनुसार यह जम्बूद्वीप के आठवें स्थान पर स्थित है, जहां मनुष्यों का जाना सम्भव नहीं है इसीलिए नंदीश्वर द्वीप के 52 जिनालयों की स्थापना निक्षेप से इस क्षेत्र पर की है ताकि संसारी जीवों को इसके दर्शन लाभ मिल सकें।

सहस्त्रफणी पार्श्वनाथ जिनालय

यह मनोहारी जिनालय पहाड़ की पृष्ठभूमि में बना है। यह पहाड़ की चढ़ाई शुरू होने पर कुछ सीढ़ियां चढ़ने पर स्थित है। मंदिर का शिलान्यास 19 अगस्त, 2000 को हुआ था। लाल पाषाण की पद्मासन 1008 फणों वाली प्रतिमा 12 जनवरी, 2003 को विराजमान की गई थी।

सहस्त्रकूट जिनालय

अरिहंत तीर्थंकरों के शरीर में 1008 सुलक्षण होते हैं ।इसीलिए तीर्थंकरों को 1008 नामों से पुकारते हैं। इस एक-एक नाम के लिए एक-एक वास्तुकला में विराजमान कर 1008 जिनबिम्ब एक स्थान पर विराजमान किए जाते हैं, जिन्हें सहस्त्रकूट जिनालय कहा जाता है। सीढ़ियों वाले रास्ते पर पार्श्वनाथ जिनालय के बाद पहाड़ी के कूट पर यह स्थित है। इसका शिलान्यास 31 जनवरी, 1998 में हुआ था। षट्‌कोणीय आकृति में बने इस जिनालय में 1008 प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी। बीच में चार प्रतिमाएं रहेंगी। इन चैत्यवृक्ष पर 24 जिनालय होंगे।

त्रिमूर्ति जिनालय

पहाड़ी पर बना यह मूलनायक जिनालय है। लाल पत्थरों से बने इस जिनालय को छेनी-हथौड़ी की मदद से आकर्षक बनाया जा रह है। जिनालय में अष्ठधातु की 11-11 फीट उतुंग तीर्थंकर, चक्रवर्ती, कामदेव जैसे महापुण्य पदों को एक साथ प्राप्त करने वाले श्री शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरहनाथ भगवान की खड्गासन मूर्तियां स्थापित हैं। इन तीनों का वजन 24 हजार किलोग्राम है। पहाड़ पर इन प्रतिमाओं को 27 अगस्त, 2000 को स्थापित किया गया था। मंदिर का निर्माण वंशी पहाड़ के लाल पत्थरों से किया जा रहा है।

श्री शीतलनाथ चैत्यालय

यह पहाड़ पर त्रिमूर्ति जिनालय के बाद स्थित है। पहाड़ पर स्थित इस जिनालय में शीतलनाथ भगवान के अलावा आदिनाथ एवं भगवान महावीर की मूर्तियां स्थापित हैं। अष्ठधातु की ये तीनों प्रतिमाएं पद्मासन है। जिनालय में पूजा-अभिषेक होता है। यहां प्रतिमाएं 8 फरवरी, 2001 को विराजमान की गईं थी। मंदिर हॉल का शिलान्यास 27 सितम्बर, 2004 को हुआ था।

कैलाश पर्वत

सहस्त्रकूट जिनालय के ठीक विपरीत पहाड़ के दूसरे छोर पर यह बनाया गया है। इसका निर्माण गुप्त दातार ने करवाया था। आरम्भिक पांडुक शिला इसी छोर पर स्थित है।

गौशाला में 1400 गाय

यहां एक गौशाला भी है। गौशाला का उद्घाटन मुनिश्री सुधासागरजी के सान्निध्य में 10 दिसम्बर, 1995 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिह शेखावत ने 11 गायों से किया था। अब इसमें करीब 1400 गाय हैं। इसे पूरी तरह से आधुनिक बनाया गया है। यहां अस्पताल का निर्माण भी कराया जा रहा है।

भाग्यशाला ‘औषधालय’

यह शॉपिंग सेंटर और भोजनशाला के पास बना है। इसका शिलान्यास मुनिश्री सुधासागरजी महाराज के सानिध्य में 1 मार्च, 1998 को हुआ था।

ठहरने के लिए धर्मशालाएं

यहां ठहरने की समुचित व्यवस्था है। पहली धर्मशाला साधारण, दूसरी डिलक्स और तीसरी एसी धर्मशाला यानी सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं। इनमें गद्दे-रजाई आदि की समुचित व्यवस्था है। वातानुकूलित विश्राम गृह का शिलान्यास व भूमि पूजन 2 दिसम्बर, 2004 को हुआ था। कार्यालय भवन (चैत्यालय मंदिर) क्षेत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक दो मंजिला भवन का निर्माण किया गया है, जिसका उद्घाटन संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट ने सन 2012 में किया था। यहां एक रत्नत्रय चैत्यालय भी स्थापित किए जाने की योजना है। इसका शिलान्यास व भूमि पूजन 2 दिसम्बर, 2001 को किया गया था।

संत सुधा सागर वाटिका और तीर्थंकर वन

तीर्थ पर पर्यावरण की रक्षा के लिए संत सुधा सागर वाटिका बनाई गई है, जिसमें 30 हजार पौधे लगाकर क्षेत्र को हरा-भरा और प्राकृतिक बनाया गया। यहां बीस बीघा जमीन पर तीर्थंकर वन भी बनाया गया है, जिसमें 24 तीर्थकरों को केवल ज्ञान जिस वृक्ष के नीचे हुआ, उनके वृक्ष भी लगाए गए है।

यहां समय-समय पर होते हैं धार्मिक कार्यक्रम

  • रक्षाबंधन पर धर्म की रक्षा का धागा बांधा जाता है। होली के मौके पर केसर की होली खेली जाती है।
  • वार्षिक कलशाभिषेक का कार्यक्रम भी धूमधाम से होता है। कलशाभिषेक के अवसर पर यहां आस-पास के क्षेत्रों से पद यात्राएं आती हैं।
  • क्षेत्र में पहली पदयात्रा का सिलसिला 19 अगस्त 2000 को शुरू हुआ था, जब ब्यावर से पहली बार लोग पैदल चलकर यहां पहुंचे।
  • पहला महा मस्तकाभिषेक साल 2018 के आगाज के साथ हुआ था, जिसमें 11 हजार स्वर्णिम कलशों से भूगर्भ से निकली मुनि सुव्रतनाथ व अन्य प्रतिमाओं के अभिषेक किए गए।
  • अन्य सुविधाएं -यहां ठहरने के लिए धर्मशाला और खाने-पीने के लिए भोजन शाला भी है। भोजनशाला के पास ही एक शॉपिंग सेंटर है, जहां रोजमर्रा और टूरिस्ट के जरूरत की सभी सामग्री उपलब्ध रहती है।

श्रद्धालु बोले

  • मुंबई निवासी सम्पत चावला ने बताया कि मुंबई से नारेली के दर्शन करने के लिए आए हैं। यहां आकर बहुत बढ़िया लगा। यहां और निर्माण हो रहे हैं, जिसके बाद इसकी सुंदरता और बढ़ जाएगी।
  • विनोद कुमार ने बताया पहली बार नारेली के दर्शन करने आए हैं। काफी अच्छा लगा। बहुत अच्छे दर्शन यहां पर हुए।
  • सूरत निवासी पूजा जैन ने बताया कि नारेली मंदिर के दर्शन करने आए हैं। मंदिर में काफी सुंदर आकृतियां बनी हुई है। देखने लायक मंदिर है। सभी से यही कहूंगी कि यहां दर्शन करने के लिए एक बार जरूर आएं।

Related Articles