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हाईकोर्ट ने सीकर कलेक्टर को किया तलब:कहा- स्कूल को आवंटित मैदान पर खेल गतिविधियों के अलावा सब कुछ हो रहा, यह शॉकिंग


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हाईकोर्ट ने सीकर कलेक्टर को किया तलब:कहा- स्कूल को आवंटित मैदान पर खेल गतिविधियों के अलावा सब कुछ हो रहा, यह शॉकिंग

हाईकोर्ट ने सीकर कलेक्टर को किया तलब:कहा- स्कूल को आवंटित मैदान पर खेल गतिविधियों के अलावा सब कुछ हो रहा, यह शॉकिंग

जयपुर : सरकारी स्कूल को आवंटित खेल मैदान पर 21 साल बाद भी स्कूल को कब्जा नहीं मिलने के मामले में हाईकोर्ट ने सीकर कलेक्टर को तलब किया है। हाईकोर्ट ने 5 फरवरी को सीकर कलेक्टर और दांतारामगढ़ तहसीलदार को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित रहने के निर्देश दिए हैं।

कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि स्कूल को आवंटित खेल के मैदान में खेल गतिविधियों को छोड़कर बाकी सबकुछ हो रहा है। यह अपने आप में शॉकिंग है। कोर्ट ने 21 साल पहले आवंटित खेल मैदान का कब्जा अभी तक स्कूल को नहीं मिलने पर भी नाराजगी जताई।

खेल मैदान पर खेल गतिविधियों को छोड़कर सबकुछ
दरअसल, सीकर कलेक्टर ने 29 जुलाई 2002 को सुंदरिया गांव की राजकीय उच्च प्राथमिक स्कूल को खेल मैदान के लिए जमीन अलॉट की थी, लेकिन इस जमीन पर अतिक्रमण होने से स्कूल को इसका कब्जा कभी नहीं मिल पाया। हाईकोर्ट में सरकार ने भी अपने जवाब में कहा कि खेल के मैदान पर सालों पुराने पक्के घर बने हुए हैं। उस जमीन पर कब्रिस्तान है। इसके अलावा खेल मैदान के ऊपर से 11 हजार केवी की हाईटेंशन लाइन भी गुजर रही है।

इसके साथ ही खेल मैदान के लिए आवंटित एक खसरे के बीच में से मुख्य सड़क भी गुजर रही हैं। ऐसे में यह जमीन खेल मैदान के लिए उपर्युक्त नहीं है। इस पर कोर्ट ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि खेल मैदान में खेल गतिविधियों के अलावा बाकी सब कुछ हो रहा है। यह अपने आप में चौंकाने वाला तथ्य है। कोर्ट ने सीकर कलेक्टर और तहसीलदार को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होकर स्पष्टीकरण देने के लिए कहा।

रेवेन्यू रिकॉर्ड में भी खेल मैदान
मामले में याचिकाकर्ता मूलाराम की वकील मीता पारीक ने बताया कि यह जमीन रेवेन्यू रिकॉर्ड में भी खेल मैदान के नाम से दर्ज है। वहीं पटवारी की जिस रिपोर्ट के आधार पर सरकार कह रही है कि जमीन पर सालों पुराने पक्के मकान बने हुए हैं। उसी पटवारी की 3 साल पुरानी रिपोर्ट कहती है कि जमीन खेल मैदान के लिए उपर्युक्त है। यहां किसी तरह का पक्का निर्माण नहीं है, लेकिन 3 साल में ही रिपोर्ट बदल जाना शंका पैदा करता है।

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