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चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, CJI कमेटी में नहीं… मोदी सरकार के नए बिल पर क्यों हो रहा विवाद?


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चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, CJI कमेटी में नहीं… मोदी सरकार के नए बिल पर क्यों हो रहा विवाद?

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर विवाद बढ़ गया है. विपक्ष ने सरकार के नियुक्त से संबंधित नए बिल को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उलट बताया है. सरकार ने नए विधेयक में तीन सदस्यीय नियुक्ति पैनल बनाया है, जिसकी पीएम अध्यक्षता करेंगे. दो अन्य मेंबर्स में एक लोकसभा में नेता विपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री को शामिल किया जाएगा. नए पैनल में सीजेआई को शामिल नहीं किया गया है.

मुख्य चुनाव आयुक्त : केंद्र सरकार ने गुरुवार को राज्यसभा में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (सेवा की नियुक्ति शर्तें और कार्यकाल) बिल राज्यसभा में पेश किया है. इस बिल को लेकर विवाद भी शुरू हो गया है. विपक्ष ने तीन सदस्यीय पैनल को लेकर आपत्ति जताई है. इस विधेयक के मुताबिक, अब मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी करेगी. इस कमेटी में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री भी सदस्य होंगे. नए विधेयक में CJI को शामिल नहीं किया गया है.

दरअसल, इससे पहले मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा चयन प्रक्रिया को खारिज कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि अब मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का भी वही तरीका होगा, जो सीबीआई चीफ की नियुक्ति का है. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने फैसले में कहा था कि अब ये नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस की कमेटी की सिफारिश पर राष्ट्रपति करेंगे. अब तक मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति केंद्र सरकार करती थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया था कि मौजूदा व्यवस्था तब तक जारी रहेगी, जब तक संसद इस पर कानून ना बना दे.

  • सुप्रीम कोर्ट ने अपने मार्च के फैसले में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में कार्यपालिका के हस्तक्षेप को कम करने की कोशिश की थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले यह नियुक्तियां सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी.
  • यदि संसद के निचले सदन में कोई LOP नहीं है तो लोकसभा में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को LoP माना जाएगा.
  • कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली एक सर्च कमेटी में चुनाव से संबंधित मामलों में ज्ञान और अनुभव रखने वाले सचिव के पद से नीचे के दो अन्य सदस्य शामिल होंगे. नियुक्तियों के लिए चयन समिति द्वारा विचार करने के लिए पांच लोगों का एक पैनल तैयार किया जाएगा.
  • राज्यसभा में गुरुवार को पेश विधेयक के मुताबिक, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का वेतन और भत्ते कैबिनेट सचिव के बराबर होंगे. सीईसी और ईसी की सेवा और आचरण को नियंत्रित करने वाले वर्तमान कानून के तहत उन्हें सुप्रीम कोर्ट के जज के वेतन के बराबर वेतन दिया जाता है.
  • एक पदाधिकारी ने बताया, वेतन 2.50 लाख रुपये प्रति माह ही है, लेकिन सीईसी और ईसी अब कैबिनेट सचिव के बराबर हैं, ना कि सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर. – संसद से विधेयक पारित होने के बाद वरीयता क्रम में सीईसी और ईसी को राज्य मंत्री से नीचे स्थान दिया जाएगा.
  • चूंकि सीईसी और ईसी कैबिनेट सचिव के समकक्ष होंगे, ना कि सुप्रीम कोर्ट के जज के, इसलिए उन्हें नौकरशाह माना जा सकता है. चुनाव के दौरान यह एक मुश्किल स्थिति हो सकती है.
  • मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (सेवा की नियुक्ति शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 किसी व्यक्ति के लिए सीईसी या ईसी बनने के लिए अपेक्षित योग्यता भी जोड़ता है.
  • विधेयक के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति उन व्यक्तियों में से की जाएगी जो भारत सरकार के सचिव के पद के बराबर पद पर हैं या रह चुके हैं और ईमानदार व्यक्ति होंगे, जिन्हें चुनाव के प्रबंधन और संचालन के अनुभव के बारे में जानकारी होगी.
  • विधेयक यह स्पष्ट करता है कि सीईसी और ईसी उस तारीख से छह साल की अवधि के लिए पद पर रहेंगे, जिस दिन वह पद ग्रहण करेंगे या जब तक वह 65 वर्ष की आयु पूरी नहीं कर लेते, जो भी पहले हो.
  • जहां एक चुनाव आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जाता है, उसका कार्यकाल कुल मिलाकर छह साल से ज्यादा नहीं होगा. मौजूदा कानून भी उसी तर्ज पर है.
  • बिल के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं होंगे.
  • मौजूदा कानून में उम्मीदवारों की योग्यता, सीईसी और ईसी की नियुक्तियों के लिए सर्च कमेटी और सिलेक्शन कमेटी के गठन के संबंध में प्रावधान नहीं हैं.
  • मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति सिर्फ चयन समिति के संविधान में किसी रिक्ति या किसी दोष के कारण अमान्य नहीं होगी.
  • विधेयक में चुनाव आयोग द्वारा व्यवसाय के लेन-देन के लिए एक प्रक्रिया बनाने का भी प्रावधान है.

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