आस्था और भक्ति का अनूठा संगम है कांवड़ यात्रा
सावन का पहला सोमवार आज, भक्त गंगाजल से करेंगे भोले का जलाभिषेक

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद आरिफ चंदेल
इस्लामपुर : शिव का प्रिय महीना सावन शुक्रवार से शुरू हो गया है। आज सावन का पहला सोमवार है जिसके चलते सुबह से ही शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ रहेगी। शिव भक्त दूध, बिल्वपत्र, आक व गंगाजल से शिव का अभिषेक कर उन्हें रिझाने का प्रयास करेंगे। शिवभक्तों को इस महीने का बेसब्री से इंतजार रहता है। इस महीने में कांवड़ यात्रा भी निकाली जाती है। कांवड़ में भोले के भक्त गंगा नदी या लोहार्गल धाम से जल भरकर लाते हैं और शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। ऐसा माना जाता है कि अपने भक्त की इस अटूट श्रद्धा से शिव प्रसन्न होते हैं।
आइए जानते हैं कि कांवड़ का महत्व क्या है और इसकी शुरुआत कैसे हुई
श्रवण कुमार लाए थे पहली कांवड़
पंडित विनोद शर्मा ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। अपने दृष्टिहीन माता-पिता को तीर्थयात्रा कराते समय उनके माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान की इच्छा जाहिर की थी। इस इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार ने उन्हें कांवड़ में बैठाया और हरिद्वार ले जाकर गंगा स्नान कराया था। वहां से वह अपने साथ गंगाजल भी लाए थे। तभी से कांवड़ यात्रा की ये परंपरा चली आ रही है।
कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को कांवडिया कहा जाता है। कांवड़ यात्रा पर जाने वाले भक्तों को यात्रा के दौरान कई खास नियमों का पालन करना होता है। भक्तों को पैदल यात्रा करनी होती है। सात्विक भोजन का सेवन करना होता है। अगर कांवड़ गलती से जमीन को छू जाए तो दोबारा से गंगाजल भरकर फिर से यात्रा शुरू करनी पड़ती है। कांवड़ यात्रा में भक्तों को नंगे पांव चलना होता है। स्नान के बाद ही कांवड़ को छुआ जाता है।
कांवड़ कई प्रकार की होती है
डाक कांवड़: डाक कांवड़ सबसे कठिन व मुश्किल कांवड़ मानी जाती है। इसमें भक्त निश्चित समय के भीतर जल लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। इसमें कांवड़िए गंगाजल लेकर दौड़ते हुए शिवालय तक पहुंचते हैं।
झूला कांवड़: यह कांवड़ सबसे सरल और आसान मानी जाती है। ज्यादातर भक्त झूला कांवड़ लेकर ही आते हैं। बच्चे, बूढ़े और महिलाएं भी यह कांवड़ आसानी से लेकर आ सकते हैं। इसमें शिवभक्त कांवड़ को पेड़ या किसी ऊंची जगह पर टांगकर आराम कर सकता है मगर कांवड़ जमीन से स्पर्श नहीं होनी चाहिए। जमीन से स्पर्श होने पर कांवड़ का अपमान माना जाता है।
खड़ी कांवड़ः इसमें शिवभक्त कांवड़ को पेड़ या ऊंची जगह पर टांगकर आराम नहीं कर सकता है। इसके लिए उसे किसी दूसरे कांवड़िए का सहयोग लेना पड़ता है। जब तक शिवभक्त आराम करता है तब तक सहयोगी कांवड़िया उस कांवड़ को अपने कंधे पर उठाए रहता है।
कावड़ के तीनों प्रकारों में से ज्यादातर शिव भक्त झूला कांवड़ को ही महत्व देते हैं। झूला कांवड सबसे सरल और आसान मानी जाती है। इस कावड़ को लाने में भोले के भक्त को कम से कम परेशानी का सामना करना पड़ता है। हमारे आसपास के क्षेत्र में सबसे अधिक झूला कांवड़ ही प्रचलित है।