टोंक के हाफिज गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में कुरआन सुनाने जा रहे
राज्य में सबसे ज्यादा 3 हजार हाफिज़ टोंक में, यहां दुनिया की सबसे बड़ी 10 फीट लंबी और 7 फीट चौड़ी कुरआन मौजूद

टोंक : माहे रमज्जान में विशेष रूप से पढ़े जाने वाली तरावीह की नमाज्ज में हाफिजों का अपना अलग ही महत्व रहा है। टोंक राज्य का एक ऐसा शहर है, जहां सबसे ज्यादा कुरआन कंठस्थ करने वाले हाफिज्ज हैं। यहां 3 हजार से ज्यादा हाफिज्ज मौजूद हैं। इनमें से 500 से अधिक हाफिज्ज माहे रमजान में होने वाली तरावीह की नमाज में कुरआन सुनाते हैं। कई हाफिज गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में भी कुरआन की तिलावत के लिए जाते हैं। यही नहीं यहां दुनिया की सबसे बड़ी साइज की कुरआन भी मौजूद है। यह कुरआन दस फीट से भी ज्यादा लंबी है।
रियासत काल नवाब वजीरुद्दोला, इब्राहिम अली खां, सआदत अली खां ने भी कुरआन कंठस्थ किया था। टोंक रियासत दीनी तालीम के लिए पूरे देश में मशहूर थी। खाड़ी देशों से भी तालिबे इल्म यहां पढ़ने आते थे। उस दौर में मुस्लिम समाज के दो-तीन घरों के बीच एक हाफिज्ज जरूर होता था। हालांकि अब यह स्थिति नहीं है। लेकिन आज भी राज्य में सबसे ज्यादा हाफिज टॉक में ही हैं।
टोंक में 300 से ज्यादा मस्जिदें हैं। रमजान में इनमें हाफिज्ज तरावीह की नमाज अदा कराते हैं। कई घरों में भी हाफिज कुरआन की तिलावत करते हैं। मुफ्ती आदिल नदवी के मुताबिक, टॉक में 3 हजार हाफिज्ज हैं। इनमें से 500 से ज्यादा हाफिज जिले और राज्य के बाहर भी कुरआन सुनाने जाते हैं। कई जगह घरों में भी तरावीह की नमाज में हाफिज्जा कुरआन सुनाते हैं।
सांगानेरी कागज से बनी है सबसे बड़ी कुरआन
मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी-फारसी शोध संस्थान में दुनिया की सबसे बड़े साइज की कुरआन मौजूद है। इसकी लंबाई 10 फीट 5 इंच और चौड़ाई 7 फीट 6 इंच है। मौलाना जमील के मुताबिक, 2014 से अब तक 12 लाख से ज्यादा देश-विदेश के लोग इसे देख चुके हैं। मौलाना जमील ने बताया कि यह कुरआन जर्मन की स्याही से लिखी गई है। हर पेज की डिजाइन और कैलीग्राफी अलग-अलग है। इसकी हर लाइन अलिफ से शुरू होती है। इसमें 18 शीट का इस्तेमाल हुआ है। 64 पेज और 32 वर्क की है। इसका कागज करीब 400 साल तक सुरक्षित रह सकता है। इसे रखने के लिए विशेष शोकेस भी तैयार किया है। कुरआन के शोकेस व पेज को खोलने के लिए भी 8-10 लोगों की जरूरत होती है।
पहले अरबी का ज्ञान फिर के 30 सिपारे पढ़ाते हैं
जो बिना देखे कुरआन कंठस्थ कर ले, उसे हाफिज कहा जाता है। अधिकतर मदरसों में 7-8 साल से 15-16 साल की उम्र तक के बच्चे कुरआन याद कर लेते हैं। प्रति वर्ष करीब 100 से अधिक तालिबे इल्म कुरआन कंठस्थ कर लेते हैं। टोंक में कई मदरसे हैं, जहां पहले अरबी के शब्दों का ज्ञान कराया जाता है। इसके बाद एक-एक कर कुरआन के 30 सिपारे पढ़ाए जाते हैं। कुछ बच्चे इन्हें पूरा याद कर लेते हैं। जो उस्ताद की निगरानी में कुरआन हिफ्ज करते हैं, उन्हें सनद दी जाती है। जिसको सनद दी जाती है। वो हाफिज होता है। हाफिज तरावीह की नमाज में कुरआन सुना सकते हैं।
दुनियां का सबसे बड़ा क़ुरान मजीद
अरबी फारसी के इस महत्वपूर्ण संस्थान में हाल ही के बीते कुछ सालों पहले एक चीज़ महत्वपूर्ण यह रही कि यहां बनाया गया दुनिया का सबसे बडी साइज का कुरान यहां पंहुचने वाले पर्यटकों और शिक्षाविदों के लिए आकर्षण और जिज्ञासा का केंद्र बन गया.
यहां मौजूद क़ुरान मजीद की लम्बाई 10 फीट 5 इंच और चौड़ाई 7 फीट 6 इंच है. इसमें कुरान मजीद में 32 पेज और 64 पन्ना हैं इसके हर वर्ग का डिजाइन अलग-अलग है. क़ुरान मजीद को हैंडमेड पेपर से बनाया गया है. 18 सीट को जोड़कर एक पेज बनाया गया है. वहीं इस क़ुरान मजीद में हर लाइन को अलिफ से शुरू किया गया है, हर पेज में 41 लाइन है.
इस कुरान को मौलाना जमील और उनके परिवार ने बनाया है.

टोंक का अरबी -फ़ारसी संस्थान
स्टाफ़ की कमी से जूझता संग्राहलय
लेकिन शहर के बुद्धिजीवियों का दर्द यह भी है कि स्टाफ की भारी कमी इसके विकास और विस्तार में बाधक है. जरूरत है कि सेवा नियम बने और यहां एकेडमिक स्टाफ के अलावा ट्रांसलेटर और अन्य स्टाफ की नियुक्ति हो, जिससे यह संस्थान और आगे बढ़कर देश ही नहीं दुनिया के अन्य मुल्कों तक अपनी छाप छोड़े .
कैलीग्राफी कला है प्रसिद्ध
अरबी फारसी के ग्रथों ओर सिक्कों के संग्रह को समेटे इसी संस्थान में एक महत्वपूर्ण कला जिसे कैलीग्राफी कहते है उस पर भी यहां बहुत काम हुआ है और प्रशिक्षण का दौर निरन्तर जारी है. शब्दों को अलग-अलग अंदाज में अलग डिजाइन और बेल बूटों और सुराइयों के आकार में लिखे जानी वाली इस केलीग्राफी की कला को नए कलाकारों के साथ आगे बढ़ा रहा है. देखने मे सुंदर तरीके से लिखने की कला को कैलीग्राफी कहा जाता है यह एक विज़ुअल आर्ट है और इसके कलाकार को केलीग्राफर कहते है. टोंक के केलीग्राफी के कलाकारों ने अपनी पहचान दुनियाभर में छोड़ी है .
नवाब मोहम्मद अली खां का कारनामा
जब शौक़े जुनूं सिर चढकर बोलने लगता है, तो यकीनन कुछ ऐसा कारनामें सामने आते हैं, जो दुनिया के लिए एक मिसाल बनता है. एक ऐसा ही शौक़े जुनूं राजस्थान की एक छोटी-सी रियासत टोंक के तीसरे नवाब मोहम्मद अली खां के सिर चढकर बोला और उन्होंने ऐसे-ऐसे दुर्लभ ग्रंथों का संग्रह किया, जो आज दुनिया के लिए किसी अजूबे से कम नहीं है. शान-ए-बनास, प्राचीन रहस्यों का जिला टोंक, पुस्तक में टोंक के तीसरे नवाब मोहम्मद अली खाँ की इल्मी विरासत के बारे में काफी कुछ जानकारी दी गई हैं .

दुनियां का सबसे बड़ा क़ुरान को इस तरह उठाते हैं लोग.
संग्रहालय में मौजूद हैं कई दुर्लभ ग्रंथ
टोंक का मशहूर अरबी-फारसी संस्थान में यूं तो 31 फनों के बेशुमार ग्रंथ उपलब्ध हैं, पर अरबी फारसी में रामायण,महाभारत और गीता के अलावा भी कुछ हस्तलिखित ग्रन्थ उल्ल्लेखनीय हैं. जिसमे एक कुरआन मजीद, यह ग्रंथ केवल तीस पन्नों पर आधारित है और लेकिन कला का उत्कृष्ट नमूना है.
कुरान शरीफ़ के शुरू के दो पेज स्वर्णिम है यहां क़ुरान की तफ़्सीर जादुल मसीर (तफसीर) मौजूद है. यह ग्रंथ अब्बासी खलीफाओं के संग्रहालय की शोभा बढ़ा चुका है. जब बगदाद का संग्रहालय बर्बाद हुआ तो यह किसी ज्ञानी के हाथ लग गया,यह अरबी भाषा का श्रेष्ठ नमूना है . वहीं संस्थान में फ़ारसी में लिखे गीता,महाभारत और रामायण भी मौजूद हैं.