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विरोध का प्रतीक है दुनिया का पहला स्मारक:करंट से हुई मौत पर बनाया गोडावण का स्टैच्यू; देश-दुनिया के लोग यहां सिर झुकाते हैं


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विरोध का प्रतीक है दुनिया का पहला स्मारक:करंट से हुई मौत पर बनाया गोडावण का स्टैच्यू; देश-दुनिया के लोग यहां सिर झुकाते हैं

विरोध का प्रतीक है दुनिया का पहला स्मारक:करंट से हुई मौत पर बनाया गोडावण का स्टैच्यू; देश-दुनिया के लोग यहां सिर झुकाते हैं

जैसलमेर : दुनिया में वन्यजीव प्रेम से जुड़े कई किस्से-कहानियां तो आपने सुने होंगे, लेकिन जैसलमेर के पर्यावरण प्रेमियों ने पक्षी प्रेम की एक अनूठी मिसाल पेश की है। इसको देखने देश-दुनिया के लोग जैसलमेर आ रहे हैं और एक स्टैच्यू के आगे शीश नवाते हैं।

दरअसल, जैसलमेर के देगराय ओरण इलाके में साल 2020 में हाइटेंशन लाइनों से टकराने से एक मादा गोडावण की मौत हो गई थी।

मादा गोडावण की मौत से वन्य जीव प्रेमी इतने आहत हुए कि उसकी याद में और मौत के विरोध में दुनिया का पहला गोडावण पक्षी का स्टैच्यू बनाया ताकि लोगों को पक्षी प्रेम की एक मिसाल देखने को मिले। साथ ही लोगों को उसकी मौत की जानकारी मिले और वे उसकी मौत का विरोध कर सकें।

लोग यहां से गुजरते समय गोडावण के स्टैच्यू को देखकर आश्चर्य करते हैं और पर्यावरण प्रेमियों के जज्बे को सलाम करते हैं।

पर्यावरण प्रेमी सुमेर सिंह सांवता के प्रयासों से बना स्मारक।
पर्यावरण प्रेमी सुमेर सिंह सांवता के प्रयासों से बना स्मारक।

मादा गोडावण की हाइटेंशन लाइनों से टकराकर हुई थी मौत

पर्यावरण प्रेमी सुमेर ने बताया- जैसलमेर से करीब 50 किलोमीटर‌ दूर देगराय ओरण में 16 सितम्बर 2020 को मादा गोडावण की हाइटेंशन लाइनों से टकराकर मौत हुई थी। गोडावण की मौत ने पर्यावरण प्रेमियों और पक्षी प्रेमियों को काफी दुखी किया। पर्यावरण प्रेमियों ने इलाके से गुजर रही हाइटेंशन लाइनों को भूमिगत करने के लिए प्रशासन को कई बार गुहार भी लगाई।

मगर हालत नहीं सुधरे। तब अपना विरोध जताने और पक्षी की याद में स्टैच्यू के निर्माण करने की ठानी। गौरतलब है कि इस इलाके में अब तक कई प्रवासी व दुर्लभ पक्षी इन हाइटेंशन लाइनों से टकराकर अपनी जान दे चुके हैं। ऐसे में गोडावण की मौत से आहत पर्यावरण प्रेमियों ने मादा गोडावण की याद में स्टैच्यू बनाने का बीड़ा उठाया, ताकि उसकी याद कभी मिटाई ना जा सके और लोग उसे याद करें। साथ ही दुर्लभ गोडावण की मौत का विरोध का सके।

ढाई लाख की लागत से हुआ तैयार

पर्यावरण प्रेमी सुमेरसिंह ने बताया- इस पक्षी के स्मारक से लोगों को गोडावण संरक्षण की सीख देने का प्रयास किया गया है। उनके अनुसार इस स्मारक के निर्माण पर करीब ढाई लाख रुपए खर्च किए गए हैं। यह सारी राशि जनसहयोग से जुटाई गई। सुमेर सिंह के अनुसार यह दुनिया में गोडावण का पहला स्मारक होगा। इसमें मादा गोडावण की चार फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई है।

साल 2020 में जिस मादा गोडावण की करंट की चपेट में आ जाने से मौत हो गई थी, वह देगराय ओरण में शायद आखिरी गोडावण पक्षी था। यह राज्य पक्षी वर्तमान में भारत के अलावा पाकिस्तान में ही पाया जाता है। हमने लोगों से सहयोग मांगा और करीब 2.5 लाख रुपए इकट्ठा किए और स्मारक का निर्माण किया। इसमें मादा गोडावण की मूर्ति को स्थापित किया ताकि लोग मूर्ति को देखकर पक्षी मौत से सबक ले सकें और इन हाइटेंशन लाइनों का विरोध कर सकें।

साल 2020 में करंट से हुई मादा गोडावण की मौत।
साल 2020 में करंट से हुई मादा गोडावण की मौत।

साल 2022 में बनाया स्मारक

गोडावण की मौत की याद में जन सहयोग के माध्यम से साल 2022 में स्मारक बना दिया गया। रासला गांव की देगराय ओरण में देगराय माता मंदिर से लगभग 100 मीटर की दूरी गोडावण का स्टैचू लगाया गया है। स्थानीय लोगों ने इस मूर्ति को अपना विरोध प्रकट करने के उद्देश्य से स्थापित किया है। पर्यावरण प्रेमी सुमेर सिंह ने बताया कि विकास के नाम पर हम न जाने कितनी अनमोल चीजें खोते जा रहे हैं।

गोडावण को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची-1 में शामिल किया गया है। ये दुर्लभ पक्षी आज पूरी दुनिया में केवल 120-150 की तादाद में जीवित हैं। आठ से 10 पक्षी कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना के परस्पर सीमावर्ती क्षेत्रों में और 4 मादाएं गुजरात में देखी गई हैं। इनकी सबसे अधिक संख्या जैसलमेर जिले में है।

लोग आते हैं देखने और आश्चर्य करते हैं

इस स्टैच्यू को देखने आई जोधपुर से निशा पालीवाल इसे दुनिया का बड़ा आश्चर्य बताती हैं। निशा ने बताया- ये पक्षी प्रेमियों द्वारा बनाया दुनिया का पहला स्मारक है। यहां चारों तरफ हाइटेंशन लाइनें हैं और इन्हीं लाइनों से टकराकर पक्षी की मौत हुई थी। बताया जा रहा है कि ये स्मारक एक तरह से प्रोटेस्ट का रूप भी है। ये एक अलग ही तरह का संदेश देता है। इससे काफी सारे लोगों को पता भी चलेगा और एक तरह का इमोशनली टच भी है।

देगराय मंदिर से 100 मीटर की दूरी पर बना है स्मारक।
देगराय मंदिर से 100 मीटर की दूरी पर बना है स्मारक।

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