राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला पिलानी, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक
वसुंधरा राजे राजनीतिक अज्ञातवास में होने के बावजूद राजस्थान की सियासत के ठहरे हुए पानी में कंकड़ फेंककर हलचल पैदा कर देती है । वाक्या था ओम माथुर के सिक्किम के राज्यपाल के मनोनयन पर उनके अभिनंदन समारोह का जिसमें उन्होंने अपने एक बयान से मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा व आलाकमान को आईना दिखाने का काम किया है । उनके बयान से उनका मुख्यमंत्री ने बनना उसकी कसक का अहसास हो रहा था । विदित हो वसुंधरा राजे राजस्थान भाजपा मे बड़ा चेहरा होने के बावजूद मुख्यमंत्री नहीं बनाई गई । वसुंधरा राजे ने किसी का नाम लिए बिना कहा कि लोगों को पीतल की लौंग मिल जाती है तो वह खुद को सराफा समझ बेठते है । राजे ने कहा कि चाहत हमेशा आसमां छूने की रखो, लेकिन पांव हमेशा जमीन पर रखो । कहीं पे निगाहें कहीं पर निशाना वाली बात को चरितार्थ करते हुए उन नेताओं की तरफ इशारा किया जो पराये पंखों के सहारे आसमान में उड़ रहे हैं । ओम माथुर का भी राजस्थान की राजनीति में एक बड़ा कद रहा है । उनको भी राजस्थान की राजनीति में कोई मुख्य पद नहीं दिया गया। संगठनात्मक राजनीति के धुरंधर खिलाड़ियों में ओम माथुर एक बड़ा नाम है । राजे ने इशारों में कहा कि ओम माथुर चाहे कितनी भी बुलंदियों पर पहुंचे लेकिन उन्होंने जमीन को नहीं छोड़ा , पैर हमेशा जमीन पर ही रखे । यही कारण है कि आज भी उनके असंख्य प्रशंसक हैं और उनमें कोई कमी नहीं आई है । ओम माथुर अपने प्रशंसकों में ओम भाईसाहब के नाम से विख्यात है । एक समय था जब पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ राजे के बहुत करीबी हुआ करते थे । इस पर भी राजे ने चुटकी ली कि जब साथ देते हैं तो साथ छोड़ते नहीं न ?
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि राजे को मुख्यमंत्री पद न देना भाजपा आलाकमान ने अपने वर्चस्व का सवाल समझ लिया था । वैसे देखा जाए तो किसी राजनीतिक दल में संगठन उसकी रीढ होती है और संगठन के बलबूते पर ही सता की चौखट तक पहुंचा जा सकता है । जब पार्टी में संगठन से बड़ा व्यक्ति हो जाता है तो समय उसको सबक भी सिखा देता है जैसा वसुंधरा राजे के साथ भी हुआ । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लोकसभा में एक बयान कि एक अकेला सब पर भारी राजनीति में व्यक्तिवाद की पराकाष्ठा थी । उसी का परिणाम की आज मोदी बैसाखियों के सहारे सरकार चला रहे हैं । राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई का ही नतीजा था कि भाजपा लोकसभा चुनावों में करिश्माई प्रदर्शन नहीं कर पाई । राजे के ताजा बयानो का इस तरफ भी इशारा हो सकता है कि भले ही भाजपा आलाकमान ने उनको दरकिनार कर दिया हो लेकिन राजस्थान की जनता का प्यार, आशीर्वाद व स्नेह आज भी उनके साथ है ।
वैसे राजनीति में कोई स्थाई दुश्मन या मित्र नहीं होता राजस्थान संभावनाओं का खेल है जब उल्टी गिनती शुरू होती है तो स्थाई दुश्मनी दोस्ती में बदल जाती है जैसा कि नितिश कुमार व नायडू को लेकर हुआ है । वसुंधरा राजे वेट एंड वाच वाली राजनीति की धुरंधर खिलाड़ी हैं उनको पता है कि लोहा जब गर्म होता है तभी चोट करनी चाहिए ।