राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक
अनूसूचित जाति व जनजाति को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है । यह पंजाब सरकार की एक याचिका की सुनवाई करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है । विदित हो यह कोई कानून नहीं बल्कि फैसला है कानून बनाने का काम संसद का है । क्रीमी लेयर को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पंजाब के मामले पर चल रही सुनवाई को लेकर आया है । मुख्य मामला पंजाब राज्य का था, जिसमें एससी एसटी समुदाय के लिए आरक्षित सीटों में से कुछ सीटें वाल्मीकी व मजहबी सिखों के लिए आरक्षित कर दी गई थी । पंजाब सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी । सात न्यायधीशों की पीठ के समक्ष विचार का मुख्य मुद्दा यही था कि एससी-एसटी वर्ग में उप वर्गीकरण किया जा सकता है ताकि आरक्षण का लाभ उसी वर्ग के ज्यादा जरूरत मंद लोगों तक पहुंचे ।
चीफ जस्टिस ने कहा कि ऐतिहासिक तथ्य दर्शाते हैं कि अनुसूचित जातियां सामाजिक रूप से विषम वर्ग है और राज्य अनुच्छेद 15(4) और 16(4) में मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए अनूसूचित जाति का उप वर्गीकरण कर सकता है , लेकिन यह वर्गीकरण तर्क संगत सिध्दांत पर आधारित होना चाहिए । इसको लेकर जो विरोध हो रहा है और भाजपा नेता जिस हिसाब से इस विरोध में प्रखर रूप से शामिल हैं उन नेताओं को सोचना चाहिए कि केन्द्र में सरकार भाजपा की है और सुप्रीम कोर्ट ने केवल फैसला सुनाया है न कि कानून बनाया है तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर दबाव बनाए कि कानून बना दिया जाए कि एससी-एसटी में क्रीम लेयर नही बनेगी । आखिर इसका विरोध क्यों जब यह फैसला उन भाईयों को लेकर आया है जिन्होंने आज तक आरक्षण का लाभ नहीं लिया है । यदि आजादी के बाद एससी-एसटी वर्ग की जातियों को समान रूप से आरक्षण का लाभ मिल जाता तो आज देश में इस वर्ग कि एक भी परिवार सरकारी नौकरी से वंचित नहीं रहता । इसे एससी-एसटी वर्ग मेंm सामाजिक भेदभाव ही कहा जाएगा कि कुछ ही परिवार इसका लाभ पीढ़ी दर पीढ़ी ले रहे हैं । इसमें कौन दो राय नहीं होनी चाहिए कि माननीय सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक होने के साथ ही देश में सामाजिक व्यवस्था में सुधार करने वाला है ।
अब इसका विरोध भी वही कर रहे है जो पीढ़ी दर पीढ़ी इसका लाभ लेते आ रहे हैं । उनको अपने उन भाईयों के बारे में भी सोचना चाहिए कि आखिर इस व्यवस्था के लाभ से जो वंचित है उनको भी तो उनका हक मिलना चाहिए । जिला मुख्यालय झुंझुनूं की बात करें तो भाजपा के नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने को लेकर इस वर्ग में भ्रांति फैलाने का काम कर रहे है । आखिर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर फैसला दिया है यदि इस तरह का विरोध व प्रदर्शन माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर आने लगा तो रोजाना कहीं न कहीं आंदोलन देखने को मिल सकता है । जरूरत है न्यायालय के फैसले की समीक्षा होनी चाहिए व इस पर आम बहस हो व यदि उसमें खामियां हैं तो सरकार के समक्ष उनको रखा जाए न कि आंदोलन कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकी जाए ।