राजस्थान में स्थापित नेताओ का राजनीतिक बनवास
राजस्थान में स्थापित नेताओ का राजनीतिक बनवास

राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक
राजस्थान में बहुत से स्थापित नेता हैं जो भाजपा में हुए राजनीतिक बदलाव से संतुष्ट नहीं हैं । वह बदलाव चाहे भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री पद सौंपना या ओबीसी नेता मदन राठौड़ को राजस्थान में भाजपा का अध्यक्ष पद से नवाजा जाना । प्रदेश के स्थापित नेताओ को राष्ट्रीय नेतृत्व के यह फैसले गले नहीं उतर रहे । ऐसे नेता जो केन्द्रीय नेतृत्व के फैसले से असंतुष्ट है उनको सबक लेना चाहिए कि जिनका मुख्यमंत्री पद के लिए मिडिया ट्रायल हो रहा था उनको राज्यपाल बनकार उनके राजनीतिक सूर्य को अस्त कर दिया । पहले कद्दावर नेता गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यपाल बनाया और अब संगठन के मामले में राजस्थान के चाणक्य कहे जाने वाले ओम माथुर को राज्यपाल बनाकर राजनीतिक बनवास में भेज दिया । ओम माथुर जो ओम भाईसाहब के नाम से विख्यात थे उनका राजस्थान के प्रभावशाली नेताओं में शुमार रहा है । संघ पृष्ठभूमि से आने वाले ओम माथुर ने गुजरात राज्य के प्रभारी पद का भी बसूखी से निर्वहन किया व संगठन को मजबूती प्रदान करने में प्रमुख भूमिका अदा की थी । इसमें संदेह नहीं कि ओम माथुर ने कभी भी शीर्ष नेतृत्व के आदेशों की अवहेलना नहीं की उसी का परिणाम है कि उन्हें राज्यपाल का पद पुरूस्कार के रूप में मिला ।
इसी तरह गुलाबचंद कटारिया को जब असम का राज्यपाल नियुक्त किया गया उस समय कटारिया राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष थे व मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे । अब कटारिया को पंजाब का राज्यपाल बनाने के साथ ही केन्द्र शासित चंडीगढ़ का प्रशासक का महत्वपूर्ण पद भी दिया है ।
लोकसभा चुनावों में करारी हार बावजूद भाजपा शीर्ष नेतृत्व राजस्थान में स्थापित नेताओ को आईना दिखाया है । इससे असंतुष्ट नेताओं को सबक लेना होगा कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व दबाव की राजनीति के आगे घुटने नहीं टेकेगा । उसी की परिणति है कि मदन राठौड़ को राजस्थान संगठन का मुखिया बना दिया गया । स्थापित नेताओं के सामने यह फैसले नजीर है कि मुख्यमंत्री पद का सपना देखना बंद कर दें और शीर्ष नेतृत्व के फैसलों का अंधभक्त होकर स्वीकार करेंगे तो राज्यपाल जैसा पद मिल सकता है ।
राजस्थान की राजनीति में ओम माथुर का राजनीतिक बनवास व मदन राठौड़ को भाजपा अध्यक्ष बनाना जैसे फैसले उस समय देखने को मिले हैं जब राजस्थान में उपचुनाव होने वाले हैं । वैसे ही केन्द्रीय नेतृत्व राजस्थान भाजपा में मची गुटबाजी से चिंतित जरूर है लेकिन ऐसे अप्रत्याशित फैसले ले कर इस बात के संकेत भी दे रहा है कि गुटबाजी जैसी बातों का उस पर कोई असर नहीं होने वाला है । राजस्थान के स्थापित नेताओ को इन फैसलों से सबक लेना चाहिए या फिर उपचुनाव में नतीजों का इंतजार करना होगा । यदि आशानुरूप परिणाम नहीं आये तो स्थापित नेताओ के दिन फिरने वाले हैं ।
राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक