हाथरस कांड से चर्चा में राजस्थान में हुआ हादसा:पूर्व जस्टिस बोले- 216 मौतों के जिम्मेदारों की रिपोर्ट 16 साल से छिपी, सरकारों को सूट नहीं हुई
हाथरस कांड से चर्चा में राजस्थान में हुआ हादसा:पूर्व जस्टिस बोले- 216 मौतों के जिम्मेदारों की रिपोर्ट 16 साल से छिपी, सरकारों को सूट नहीं हुई

जयपुर : हाथरस (उत्तर प्रदेश) में 121 जिंदगियां खत्म कर देने वाले हादसे ने 2008 में 30 सितंबर को हुई मेहरानगढ़ दुखांतिका के जख्मों को एक बार फिर से जिंदा कर दिया है। जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग में चामुंडा माता दर्शन के दौरान भगदड़ में 216 लोगों की मौत हुई थी। सरकार ने ‘तत्काल गंभीरता दिखाते हुए’ 2 अक्टूबर को जांच आयोग का गठन कर दिया।
27 अक्टूबर को जस्टिस जसराज चोपड़ा को जांच आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया। ढाई साल तक चले इन्वेस्टिगेशन के बाद जस्टिस जसराज चोपड़ा ने मई 2011 में रिपोर्ट तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सौंपी थी। यह रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं हो पाई। जांच आयोग पर सरकार ने करीब 6 करोड़ रुपए खर्च किए।
इंटरव्यू – जस्टिस जसराज चोपड़ा से पहली बार दबी रिपोर्ट पर खुली बात
संदर्भ- हाथरस जैसा दर्द झेल चुका है राजस्थान- 16 साल पहले हुई मेहरानगढ़ दुखांतिका के बाद जांच कमेटी बना, लंबी-अथक जांच हुई, रिपोर्ट सरकार को दी गई, सरकार बदलने के बाद भी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई। कोई भी दोषी नहीं मिला। अब सवाल उठता है- मेहरानगढ़ प्रकरण में जांच का जो अंजाम हुआ, क्या हाथरस दुखांतिका की जांच उसी तरफ जाएगी?
Q. हाथरस हादसे के बाद सीएम योगी ने एसओपी तैयार करने की बात कही है, प्रदेश में कैसी प्लानिंग की जरूरत? ऐसे हादसों से कैसे बचा जाए?
जस्टिस चोपड़ा- हर बड़े धार्मिक कार्यक्रम, मेलों, सभाओं, सत्संग से पहले पूरा रोडमैप और विजन पुलिस-प्रशासन को क्लियर होना चाहिए। कहां, कितनों को अनुमति देनी है इसकी पालना भी सख्ती से होनी चाहिए। ऐसे मामलों में किसी दबाव में काम नहीं होना चाहिए। जिम्मेदारों को सजा मिलनी ही चाहिए। हमारे यहां अंध भीड़तंत्र है। जनता नादान, नासमझ है आस्था के स्वरूप को लेकर। दर्शनार्थियों को कंट्रोल करने के लिए पुलिस को सख्त ट्रेनिंग की जरूरत है। जगह की कैपिसिटी को ध्यान में रखते हुए ही लोगों को प्रवेश मिलना चाहिए।

Q. मेहरानगढ़ हादसे की रिपोर्ट आज तक क्यों सार्वजनिक नहीं हो पाई?
– जब हादसा हुआ तब राज्य की मुख्यमंत्री भाजपा की वसुंधरा राजे थीं। जब रिपोर्ट सौंपी तब कमान कांग्रेस सीएम अशोक गहलोत के हाथों में थी। ढाई साल जांच की थी। 16-16 घंटे काम किया। सरकारें बदलती रहीं। मुझे लगता है रिपोर्ट सरकारों को सूट नहीं हुई।
Q. कौन जिम्मेदार था उस हादसे के लिए? क्या रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में नहीं आने का आपको अफसोस है?
– पुलिस-प्रशासन की विफलता रही। संकरे रास्ते से बेतहाशा भीड़ को एंट्री दे दी गई। इंतजाम नाकाफी थे। जिन एडीएम, एएसपी की ड्यूटी थी वे समय पर नहीं पहुंचे। रिपोर्ट में ढाई साल लगे। हर फैक्ट रिपोर्ट में है। कहां, किस स्तर पर, किस हालात में है वो रिपोर्ट मुझे नहीं पता।
Q. दुर्ग में हादसा हुआ, क्या प्रभावशाली लोगों को बचाने में लगी हैं सरकारें?
– मेरा काम हर एंगल पर इन्वेस्टिगेशन कर रिपोर्ट तैयार करने का था। राजपरिवार भी अपना पक्ष रखने कमिशन के सामने हाजिर हुआ। पहली बार राजपरिवार के गजसिंह दो घंटे किसी जांच में कमेटी के सामने खड़े रहे। एसपी, कलेक्टर से भी लंबी चर्चा हुई। भगदड़ के बाद लोगों को समय पर हॉस्पिटल पहुंचाने में भी देरी हुई।
Q. उस दर्दनाक हादसे की यादें आज भी आपके जेहन में हैं?
– हां, दर्द 16 साल बाद आज भी है। भयावहता का अंदाजा लगाइए कि भीड़ ने एक-दूसरे को इस कदर कुचल दिया कि कई ने लैट्रीन-पेशाब करते हुए दम तोड़ा। भगदड़ और दम घुटने से निर्दोष मारे गए। रिपोर्ट सौंपने के बाद मैं आज तक उस जगह नहीं गया।