सोशल इंजिनियरिंग बनाम झुंझुनूं विधानसभा उपचुनाव
सोशल इंजिनियरिंग बनाम झुंझुनूं विधानसभा उपचुनाव

राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक
झुंझुनूं : लोकसभा चुनावों में विधायक विजेन्द्र ओला की जीत ने झुंझुनूं विधानसभा के लिए उप चुनाव के रास्ते खोल दिए हैं । इसके साथ ही झुंझुनूं विधानसभा सीट नाथी का बाड़ा हो गई जो दूसरी विधानसभा के नेता भी मुंह निकाल रहे हैं । यदि झुंझुनूं लोकसभा व विधानसभा को देखे तो यह ओला परिवार का गढ़ रहा है । लेकिन इस विधानसभा ने भी शीशराम ओला को 1990 में हार का स्वाद दिया था । तत्पश्चात 1996 के उपचुनाव में डाक्टर मूलसिंह शेखावत ने विजेन्द्र ओला को पटकनी दी थी । इस विधानसभा को लेकर एक मिथक बना रखा है कि यह जाट बाहुल्य क्षेत्र है और उसी का होंवा दिखाकर भाजपा इसी समुदाय को टिकट में तब्बजो देती है । यदि झुंझुनूं विधानसभा को मतदाताओं की संख्या देखे तो कुल मतदाता 268913 है जिनमें पुरुष 140142 व महिलाएं 128771 है । अब जातीय समीकरण देखें तो जाट समुदाय के 52 हजार, मुस्लिम मतदाता 49 हजार, एससी-एसटी 42 हजार, ब्राह्मण मतदाता 37 हजार, सैनी समाज के 24 हजार, राजपूत समाज के 21 हजार, महाजन समाज के 12 हजार व कुमावत समाज के 14 हजार है । बाकी अन्य में आते हैं । विदित हो यह संख्या लगभग है । अब जाट समुदाय के 52 हजार वोटों का डर दिखाकर इसी समुदाय के नेता भाजपा की टिकट पाने में सफल हो जाते हैं जिसके कारण भाजपा के परम्परागत वोट भाजपा से किनारा कर लेते हैं । यदि पिछले चार विधानसभा चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी ।
2008 के चुनावों में डाक्टर मूलसिंह शेखावत मात्र 9316 वोटो से पिछड़ गये थे । 2013 के चुनावों में भाजपा के ही राजबीर सिंह शेखावत विजेन्द्र ओला से ही 18142 वोटो से पिछड़ गये थे । 2018 के चुनावों में भाजपा के राजेन्द्र भांभू को करारी हार का सामना करना पडा था और विजेन्द्र ओला ने 40565 वोटो से भांभू को पटकनी दी थी । 2023 के चुनावों में भाजपा के बबलू चौधरी 28863 वोटो से विजेन्द्र ओला से हार गये । अब इन परिणामों को देखें तो जब भाजपा ने जाट समुदाय के नेता पर दांव लगाया तो हार का अंतर ज्यादा रहा जैसे 2018 व 2023 में देखने को मिला । इसके विपरीत जब गैर जाट समुदाय के नेता पर दांव लगाया तो हार का अंतर कम रहा जैसा कि 2008 व 2013 में देखने को मिला । इससे यह जाहिर होता है कि जाट समुदाय के नेता पर जब भाजपा दांव लगाती है तो उसका परम्परागत वोट कांग्रेस की और स्थानांनतरित हो जाता है । वैसे झुंझुनूं जिले की राजनीति आयाराम गया राम को लेकर विख्यात रही है । कांग्रेस, लोजपा व बसपा से आये नेताओ की भरमार है और टिकट में ही नहीं बल्कि उनको संगठन में भी तब्बजो दी जाती है व निष्ठावान कार्यकर्ताओं को हासिए पर धकेल दिया है ।
उपरोक्त समीकरण जो तथ्यों पर आधारित है एसी कमरो में बैठकर नहीं बनाए गये जैसा कि लोकसभा चुनावों में भाजपा के संगठन के पदाधिकारियो के कारनामे देखने को मिले । धरातल पर कोई काम न होकर केवल एसी कमरों में बैठकों के दौर चलते रहे और उनकी फोटो व अखबारों की कटिंग भेजकर अपने आकाओं को खुश करते रहे । यदि झुंझुनूं विधानसभा में कमल खिलाना है तो भाजपा प्रदेश व जिला नेतृत्व को जमीनी हकीकत को समझना होगा कि सोशल इंजीनियरिंग क्या कहती है । केवल जाट बाहुल्य की रट सुनकर यदि टिकट का वितरण हुआ तो कमल खिलना मुश्किल है ।
क्रमशः शेष अगली कड़ी में ..………