पिछले दो आम चुनावों में आरएएस का जलवा या मोदी मैजिक ?
पिछले दो आम चुनावों में आरएएस का जलवा या मोदी मैजिक ?

राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक
झुंझुनूं : 2014 व 2019 के आम चुनावों में भाजपा की जबरजस्त जीत के पीछे भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस की चुनावी रणनीति थी न कि मोदी का जलवा था । किसी भी राजनीतिक दल की रीढ़ उसका संगठन होता है और संगठन के मामले में आरएसएस कोई सानी नहीं है । विदित हो संगठनात्मक संरचना को सुदृढ़ बनाने के लिए भाजपा का मातृ संगठन ही संगठन मंत्री देता है और उसी संगठन का कमाल है कि भाजपा को पिछले दो चुनावों में सरकार बनाने का मौका मिला।
अभी जो आमचुनाव में भाजपा की जो भद्द पिटी यह उसका अति आत्मविश्वासी होने के साथ ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का वह बयान कि अब भाजपा को आरएसएस की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सलाह को दरकिनार करना भाजपा को भारी पड़ा। राम मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में फिल्म जगत की हस्तियों व उद्योग जगत के लोगों को बुलाना व शंकराचार्यों की नाराजगी भी राष्टीय स्वयंसेवक संघ को रास नही आई। समारोह में राम मंदिर निर्माण आंदोलन से जुड़े लोगों को नहीं बुलाना व अयोध्या के समीप सरायरासी गांव के लोग जिन्होंने 500 सालों से प्रतीज्ञा कर रखी थी कि जब तक भगवान श्रीराम भव्य मंदिर में विराजमान नहीं होंगे तब तक वे पगड़ी, चमड़े के जूते व छाते का इस्तेमाल नहीं करेंगे। ठाकुर समुदाय जो खुद को सूर्यवंशी मानता है पगड़ी उनकी आन बान व शान के साथ प्रतिष्ठा का प्रश्न होती है। उस समुदाय के एक भी व्यक्ति को निमंत्रण नहीं दिया गया। अयोध्या में भूमि घोटाले के आरोपो के साथ ही जो लोग बेघर हुए थे उनको उचित मुआवजा न देने से भी मातृ संगठन नाराज़ था।
ईडी, सीबीआई व वाशिंग मशीन के प्रयोग व पार्टियों को तोड़ने को लेकर भी मातृ संगठन आरएसएस नाराज़ था। भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा सता में आई व सभी भ्रष्टाचारियों को भाजपा में शामिल कर वाशिंग मशीन से धो कर पाक साफ कर दिया। ईडी व सीबीआई की ताबड़तोड़ कार्यवाही के साथ ही राज्यों में खरीद फरोख्त की संस्कृति को लेकर भी भाजपा को चेताया गया था।
मोहन भागवत के एक ताजा बयान से भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तल्खी स्पष्ट दिखलाई देती है। भागवत ने मिजोरम को लेकर सरकार को घेरा है कि यदि चुनावी मोड से बाहर सरकार आ गई है तो मिजोरम की भी सुध ले। इसके अलावा चुनावों विपक्ष के प्रति भाषणों में दुश्मनी का भाव देखने को मिला उसका त्याग करना होगा। तकनीक की सहायता से झूठ को परोसा गया। अंहकार का त्याग कर काम करना होगा। इन आम चुनावों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दूरी बनाना ही भाजपा के सरकार बनाने लायक सांसद जीत कर नहीं आये। इसके यही मायने हैं कि पिछले दो आम चुनावों में मोदी मैजिक न होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जलवा था।