लेखक : राजेंद्र शर्मा झेरलीवाला पिलानी वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक
अनिवार्य सेवानिवृत्ति कहाँ तक सही और कहाँ तक गलत…? राजस्थान में भजनलाल सरकार नकारा, कामचोर व भ्रष्ट अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्त करने की योजना बना रही है । इसको लेकर भजनलाल की पारदर्शिता को लेकर जो संवेदनशीलता दिखाई है उसकी तारीफ की जानी चाहिए कि सरकार भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टोलरेंस की तरफ कदम बढ़ा चुकी है । लेकिन इसको लेकर सरकार जो स्क्रीनिंग कमेटी का गठन कर अधिकारियों व कर्मचारियों की फीडबैक को लेकर सरकार को सिफारिश करेगी उस पर संसय होना लाजिमी है । जो भी अधिकारी स्क्रिनिग कमेटी का गठन करेगी उस पर सरकार का दबाव होगा । इसमें राजनीतिक भेदभाव के रूप में भी जबरन सेवानिवृत्त करने के आरोप भी लग सकते है कि अमुक अधिकारी भाजपा विरोधी है तो उसके नाम की सिफारिश कमेटी कर सकती है व इसके साथ ही यह पूर्ण रूप से सरकार के नियंत्रण में रहने पर भी इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़े होने लाजिमी है । कुल मिलाकर सरकार इन अधिकारियों व कर्मचारियों को अग्निवीर की श्रेणी में लाने का काम कर रही है ।
विदित हो भ्रष्टाचार को लेकर बहुत सी जांच एजेंसी है व रोजाना अधिकारियों के ट्रेप होने के समाचार सुनने को मिलते हैं । सरकार इसको लेकर एक कानून लेकर आए कि जो अधिकारी भ्रष्टाचार में रंगे हाथों पकड़ा गया है उसे तुरंत प्रभाव से जबरन सेवानिवृत्त कर दिया जाए और इसको लेकर जो भी लाभ सेवानिवृत्त के लिए होते हैं उनसे वंचित कर दिया जाए । उस भ्रष्ट अधिकारी को किसी भी न्यायालय में अधिकार से भी वंचित रखा जाए । इसके साथ ही विभागों में हर अधिकारी या कर्मचारी की सीआर भरी जाती है उसका अवलोकन कर ही जबरन सेवानिवृत्त का फेसला लिया जाए तो ज्यादा सार्थक होगा । जिस तरह से विभागो में अधिकारियों व कर्मचारियों के स्थानांतरण को लेकर सता पक्ष के नेताओं की डिजायर की जरूरत होती है कही यह सरकार की यह पालिसी भी राजनीति की भेंट न चढ़ जाए ।