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स्वतंत्रता संग्राम की गुमनाम नायिका क्रांतिकारी कल्याणी दास – धर्मपाल गाँधी


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स्वतंत्रता संग्राम की गुमनाम नायिका क्रांतिकारी कल्याणी दास – धर्मपाल गाँधी

स्वतंत्रता संग्राम की गुमनाम नायिका क्रांतिकारी कल्याणी दास - धर्मपाल गाँधी

लेखक : धर्मपाल गाँधी अध्यक्ष आदर्श समाज समिति इंडिया

स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध अदम्य साहस और वीरता का परिचय देने वाली महान क्रांतिकारी कल्याणी दास बंगाल के प्रसिद्ध शिक्षक बेनी माधव दास और सामाजिक कार्यकर्ता सरला देवी की बेटी थी। वह बंगाल वॉलिंटियर्स कौर की सदस्य व ऑल बंगाल स्टूडेंट्स एसोसिएशन की उपाध्यक्ष और महिलाओं के क्रांतिकारी संगठन ‘छत्री संघ’ की सचिव थीं। वह स्वतंत्रता सेनानी बीना दास की बड़ी बहन थीं। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान कल्याणी दास क्रांतिकारी संगठन युगांतर और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से भी जुड़ी हुई थीं। कल्याणी दास के पिता शिक्षक बेनी माधव दास नेताजी सुभाष चंद्र बोस के गुरु थे। कल्याणी दास की माता सरला देवी भी सार्वजनिक कार्यों में बहुत रुचि लेती थीं। वे निराश्रित महिलाओं के लिए ‘पुण्याश्रम’ नामक संस्था चलाती थीं। आश्रम में ज्यादातर क्रांतिकारी महिलाएं निवास करती थीं। ऐसे वातावरण में साफ जाहिर है, कल्याणी दास के स्वभाव में क्रांतिकारी चेतना और मानवीय मूल्य एक साथ पोषित हो रहे थे। बंगाल के प्रसिद्ध शिक्षक बेनी माधव दास और सामाजिक कार्यकर्ता सरला देवी की दो बेटियों कल्याणी दास और बीना दास को ‘अग्निकन्या’ के नाम से जाना जाता था। दोनों ने ही अल्पायु में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और देश की आजादी के लिए अपना वर्तमान और भविष्य दांव पर लगाते हुए कई सालों तक जेलों में कठोर यातनाएं भोगी। सरला देवी ने न सिर्फ अपनी कोख से अग्निकन्याएं पैदा की, बल्कि अपनी संस्था ‘सरला पुण्याश्रम’ से देश के लिए कई वीरांगनाएं तैयार की, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर भाग लिया।

क्रांतिकारी कल्याणी दास का जन्म 28 मई 1907 को कृष्णनगर, बंगाल, ब्रिटिश भारत में हुआ था। उन्होंने कटक के रेवेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में पढ़ाई की। 1928 में कल्याणी दास ने कला स्नातक की डिग्री हासिल की और एम.ए. की पढ़ाई के लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। कल्याणी दास और बीना दास दोनों बहनें कॉलेज के दिनों से ही क्रांतिकारी संगठनों से जुड़ गई और अंग्रेजों के विरुद्ध होने वाली हड़ताल और जुलूसों में भाग लेने लगी। 1928 में सुभाष चंद्र बोस की अध्यक्षता में ऑल बंगाल स्टूडेंट्स एसोसिएशन की एक बैठक में, एबीएसए की छात्राओं ने छात्र आंदोलन में पुरुषों के समान हिस्सा लेने का संकल्प लिया। उसके बाद कल्याणी दास ने अपने सहपाठियों और दोस्तों सुरमा मित्रा, कमला दासगुप्ता और अन्य की मदद से डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नेतृत्व में सितंबर 1928 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में कलकत्ता की पहली महिला छात्र संघ (छत्री संघ) की स्थापना की। छत्री संघ (गर्ल्स स्टूडेंट्स एसोसिएशन) एक भारतीय महिला छात्र संगठन था। इसमें महिला क्रांतिकारियों की भर्ती की जाती थीं और उन्हें प्रशिक्षित किया जाता था। सुरमा मित्रा को ‘छत्री संघ’ का अध्यक्ष बनाया गया और कल्याणी दास सचिव बनीं। उनका लीला रॉय के नेतृत्व में ढाका स्थित महिला क्रांतिकारी संगठन ‘दीपाली संघ’ से सीधा संपर्क था।

छत्री संघ ने 1930 के दशक की शुरुआत में कलकत्ता में क्रांतिकारी गतिविधियों के आयोजक दिनेश मजूमदार के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित किये। क्रांतिकारी दिनेश मजूमदार युवा लड़कियों को शारीरिक व्यायाम और लाठी चलाने का प्रशिक्षण देते थे। साइकिल चलाने, ड्राइविंग और सशस्त्र संघर्ष में पाठ्यक्रम देने के अलावा उन्होंने कल्याणी दास के नेतृत्व में महिला क्रांतिकारियों की भर्ती करने और उन्हें प्रशिक्षण देने का कार्य सुचारू रूप से किया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ‘छत्री संघ’ के सदस्यों के लिए प्रेरणास्रोत थे। इस समूह के सदस्यों में क्रांतिकारी कल्पना दत्त शामिल थीं, जिन्हें चटगाँव शस्त्रागार छापे में उनकी भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया था और आजीवन निर्वासित किया गया था। क्रांतिकारी प्रीतिलता वाद्देदार और बीना दास भी ‘छत्री संघ’ की सदस्य थीं। समूह में क्रांतिकारी शांति घोष और सुनीति चौधरी भी शामिल थीं, जिन्होंने कोमिला के जिला मजिस्ट्रेट को गोली मार दी थी और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। क्रांतिकारी बीना दास ने 1932 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के वार्षिक दीक्षांत समारोह में बंगाल के ब्रिटिश गवर्नर को गोली मार दी, जिसके कारण उन्हें जेल में डाल दिया गया। क्रांतिकारी कमला दासगुप्ता ने एक कूरियर के रूप में काम किया, क्रांतिकारियों के पास बम और हथियार पहुंचाने में उनकी मुख्य भूमिका रही। 1930 के दशक में, देश भर में क्रांतिकारी समूह उभरे, खास तौर पर अविभाजित बंगाल में, जिनमें महिलाओं के नेतृत्व वाले समूह भी शामिल थे।

ढाका (अब बांग्लादेश) कोमिला, चटगाँव और कलकत्ता इन महिला-नेतृत्व वाले समूहों की गतिविधियों के केंद्र थे और वे विशेष रूप से कॉलेजों से जुड़े थे। युवा छात्रों को सहपाठियों और पूर्व छात्रों द्वारा भर्ती किया गया था, जो ब्रिटिश शासन से राष्ट्र की स्वतंत्रता के उद्देश्य से आकर्षित थे। शैक्षणिक संस्थानों में छात्र संघों ने अर्ध-क्रांतिकारी समूहों के रूप में काम किया और सामूहिक रूप से महिलाओं को हथियारों, युद्ध और संबंधित गतिविधियों में प्रशिक्षित किया। उन्होंने सुरक्षित स्थानों के रूप में भी काम किया जहाँ महिलाएँ स्वतंत्र रूप से महिलाओं के अधिकारों, मुक्ति और ब्रिटिश शासन से मुक्ति से संबंधित मुद्दों पर खुलकर चर्चा करने के लिए इकट्ठा हो सकती थीं। भारत में महिला आंदोलनों का इतिहास, खास तौर पर स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, कई मायनों में अनूठा है। क्योंकि इसमें महिलाओं ने दो उद्देश्य पूरे किये। पहला उद्देश्य ब्रिटिश शासन से आजादी के लिए योगदान देना था, जबकि दूसरा उद्देश्य अपने देशवासियों और विदेशी सरकार पर यह प्रभाव डालना था कि उपमहाद्वीप में महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने के लिए सामाजिक, आर्थिक, कानूनी और राजनीतिक सुधार की तत्काल आवश्यकता है। कल्याणी दास ने 1930 में बंगाल के गवर्नर के खिलाफ प्रदर्शन का नेतृत्व किया। 1932 में उन्हें सरकार विरोधी गतिविधियों के लिए हिरासत में लिया गया। उनकी सहपाठी कमला दासगुप्ता को भी उसी समय हिरासत में ले लिया गया था। कल्याणी दास ने देश की आजादी के लिए पांच साल से ज्यादा वक्त जेलों में बिताया। देश की आजादी के लिए उन्होंने सब सुख-सुविधाओं को त्याग दिया। उनके क्रांतिकारी संगठन ‘छत्री संघ’ में लगभग 100 क्रांतिकारी छात्राएं शामिल थीं। ‘छत्री संघ’ में ब्राह्म गर्ल्स स्कूल, विक्टोरिया स्कूल, बेथ्यून कॉलेज, डायोकेसन कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं का समूह शामिल था। बंगाल में संचालित इस समूह में सभी छात्राओं को लाठी, तलवार चलाने के साथ-साथ साइकिल और गाड़ी चलाना भी सिखाया जाता था। इस संघ में शामिल कई छात्राओं ने अपना घर भी छोड़ दिया था और सरला देवी की संस्था ‘पुण्याश्रम’ में रहने लगीं। सरला देवी द्वारा संचालित यह छात्रावास बहुत सी क्रांतिकारी गतिविधियों का गढ़ था।

यहां के भंडार घर में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए हथियार, बम आदि छिपाये जाते थे। कल्याणी दास जीवन भर ‘सरला पुण्याश्रम’ से जुड़ी रहीं। कल्याणी दास स्वाधीनता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारी दिनेश मजूमदार और नेताजी सुभाष चंद्र बोस से अच्छी तरह जुड़ी हुई थीं। 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। 1932 में हाजरा पार्क में एक अवैध बैठक आयोजित करने के लिए उन्हें आठ महीने तक हिरासत में रखा गया था। क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण उन्हें 1933 से 5 साल तक जेल में रखा गया था। 1933 में उन्हें हिजली और मिदनापुर जेल में हिरासत में रखा गया था और 1938 में रिहा किया गया। रिहा होने के बाद उनका विवाह निर्मलेंदु भट्टाचार्य से हुआ। उन्होंने एक राजनीतिक मासिक पत्र “मंदिरा” प्रकाशित किया। 1940 में, वह अपने पति के साथ बॉम्बे में नागरिक स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुईं और तीन महीने तक जेल में रहीं। अकाल के दौरान उन्होंने “बंगाल रिलीफ कमेटी” के माध्यम से कई राहत कार्य किये थे। क्रांतिकारी कल्याणी दास और बीना दास दोनों बहनों के बीच में अद्भुत प्रेम था। कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में बीना दास ने जब 1932 में बंगाल के गवर्नर स्टेनली जैक्सन पर गोली चलाई तो कल्याणी दास जेल में थी। उनके पिता और भाई जब जेल में बंद कल्याणी दास से मिलकर आते तो उनसे दीदी पर हो रहे अंग्रेजों के अत्याचार के बारे में जानकर बीना दास काफी व्यथित होती थीं।

गवर्नर पर गोली चलाने के पीछे यह आक्रोश भी था। कल्याणी दास जब जेल से बाहर निकलीं तो गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के पास गयीं और निवेदन किया कि वो बीना दास के लिए कुछ करें, ताकि उनकी छोटी बहन को अंडमान (काला पानी सजा) न भेजा जाये। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने तत्काल लंदन में टेलीग्राम भेजा। इसकी खबर भी अमेरिका, फ्रांस सहित अंतर्राष्ट्रीय अखबारों में छपी। फ्रांसीसी फिलोसफर रोमेन-रोलैंड और महात्मा गाँधी के साथी सी.एफ. एंड्रयूज ने भी ब्रिटिश सरकार से बीना दास को कालापानी न भेजने का निवेदन किया। ब्रिटिश सरकार पर दबाव बना और बीना दास को अंडमान नहीं भेजा गया‌। कल्याणी दास ने 1944 में बंगाल स्पीक्स नामक एक पुस्तक का संपादन किया और इसे अपनी बहन बीना दास को समर्पित किया। आजादी के बाद क्रांतिकारी कल्याणी दास खराब स्वास्थ्य की वजह से राजनीति से दूर रही और कुछ समय सामाजिक कार्यों से जुड़ी रहीं। कुल मिलाकर आजादी के बाद उनका जीवन गुमनामी के अंधेरों में गुजरा। 16 फरवरी 1983 को क्रांतिकारी कल्याणी दास ने दुनिया को अलविदा कहा। बंगाल कई महिला स्वतंत्रता सेनानियों का घर रहा है, जिन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत की आज़ादी के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने सामाजिक मानदंडों को चुनौती दी और भारत की आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए इतिहास में अमिट छाप छोड़ी। उनकी विरासत सदियों तक आने वाली भारतीय पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी और राष्ट्र के लिए उनके योगदान को सदैव याद रखा जायेगा।

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