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अस्पष्ट शब्दों में लिखा गांव का नाम, चार दिन तक इंटरनेट पर सर्च कर पता लगाया, परिजनों को सुपुर्द


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अस्पष्ट शब्दों में लिखा गांव का नाम, चार दिन तक इंटरनेट पर सर्च कर पता लगाया, परिजनों को सुपुर्द

अस्पष्ट शब्दों में लिखा गांव का नाम, चार दिन तक इंटरनेट पर सर्च कर पता लगाया, परिजनों को सुपुर्द

जयपुर : स्व. पदमा देवी के बेटे शैलेश वासु की रिपोर्ट (बाड़मेर) लंबे समय से परिजनों से दूर रही यह बच्ची कुछ दिन डरी रहने के कारण किसी से बात भी नहीं करती। मासूम बच्ची को यहां के लोग काजल नाम से बुलाने लगे, लेकिन वह किसी से भी बात करने से हिचकती थी। डरी सहमी बच्ची ने किसी से बात नहीं की। कुछ भी नहीं बता पा रही थी। मानसिक रोग विशेषज्ञ से सुबह-शाम काउंसलिंग करवाई। कई दिनों तक लगा कि बोल भी नहीं सकती। इस दौरान बच्ची के साथ तीन महिलाओं को साथ में रखा। इन महिलाओं से घुलमिल गई और कुछ बोली। तब एक आस जगी कि हो सकता है कुछ लिखकर ही बता दें।

कमरे में इसके पास कॉपी-पेन रखे गए। कई दिन तक बच्ची की प्रतिक्रिया नहीं दिखी। एक दिन आखिरकार बच्ची ने कागज पर कुछ लिखना शुरू किया। लगातार देखरेख व निगरानी के बाद अस्पष्ट शब्दों में कुछ लिखना जारी रखा। बच्ची के लिखे शब्दोंे को जोड़कर 2 मई से इंटरनेट पर सर्च किया गया तो गांव का आइडिया लगा। भाषा अलग रही, लेकिन हमने रात-दिन एक कर इंटरनेट पर सर्च करना जारी रखा। गुजरात, झारखंड, बिहार के 50 से अधिक थानों में फोन कर पूछताछ की गई।

गुजरात व झारखंड दोनों में गांव के नाम एक जैसे मिले। इसके बाद थानों में फोटो भेजने के साथ गुमशुदगी पूछने पर पुलिस ने बताया कि सारईकेला थाना क्षेत्र के भुरकुली निवासी अजयसिंह सरदार व नर्सी की बेटी दुर्गावती लापता है। सही एड्रेस मिल गया। कांस्टेबल को घर भेजकर परिजनों के फोन नंबर मांगे गए और वीडियो कॉल से बच्ची को माता पिता से बात करवाई गई। एक साल पहले गेहूं रोड स्थित मानसिक विमंदित पुनर्वास गृह सोमाणियों की ढाणी में पहुंची दुर्गावती (काजल) अपनी मां नर्सी व परिवार से आज मदर्स डे से 1 दिन पहले मिली। झारखंड के सारईकेला थाना क्षेत्र के भुरकुली गांव की 15 साल की दुर्गावती पिछले एक साल से घर से दूर रही। शादी समारोह में परिवार से बिछड़ी मासूम अनिल शर्मा के प्रयासों से परिजनों को मिली। परिजनों की ओर से सारईकेला थाने में गुमशुदगी भी दर्ज करवाई गई, लेकिन बच्ची नहीं मिली। यह बच्ची समदड़ी स्टेशन पर एक साल पहले डरी-सहमी अवस्था में पुलिस को मिली थी। बच्ची कुछ बोल और बता नहीं पा रही थी। बच्ची को इसके बाद पुनर्वास गृह पहुंचाया गया

तीन महीने पास रही बेटी मां से मिलाने से बड़ी खुशी
जिस दिन बच्ची यहां पहुंची, उसी दिन से ही कोशिश जारी रखी गई ताकि जल्द से जल्द परिवार तक पहुंच सके। बच्ची को घर भेजने की ठान ली थी। डरी सहमी होने से मानसिक स्थिति कमजोर थी। सुबह शाम बच्ची की काउंसलिंग जारी रखी गई। कई दिन बीतने के बाद आखिरकार 2 मई को कॉपी पर टूटे फूटे शब्दों में गांव का नाम लिखा। एक सुराग मिला और इसी के जरिए घर का पता लगाया गया। मदर्स डे से एक दिन पहले बच्ची अपने घर पहुच गई है। -अनिल शर्मा, पुनर्वास गृह प्रबंधक।

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