भाग्यम शर्मा की दो पुस्तकों का विमोचन एक साथ:लेखिका ने कहा तमिल कृति का हिन्दी में अनुवाद करने के लिए वहां की संस्कृति व समाज का ज्ञान होना जरुरी है
भाग्यम शर्मा की दो पुस्तकों का विमोचन एक साथ:लेखिका ने कहा तमिल कृति का हिन्दी में अनुवाद करने के लिए वहां की संस्कृति व समाज का ज्ञान होना जरुरी है

जयपुर : राही सहयोग संस्था द्वारा आज राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति के सभागार में लेखिका एस भाग्यम शर्मा की तमिल से हिन्दी में अनूदित दो पुस्तकों ‘मल्लिका का घर व ‘जननम’ का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर आयोजित चर्चा में शहर के अनेक प्रसिद्ध लेखक, साहित्यकारों ने भाग लिया। हिन्दी व तमिल की जानकार लेखिका एस भाग्यम शर्मा ने कहा कि लगभग ढाई हजार साल पुरानी तमिल भाषा का साहित्य बेहद समृद्ध है। उन्होंने बताया कि तमिल में एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। तमिल के मुहावरे वहां के परिवेश के अनुसार होते हैं। इस भाषा में अधिकांशतः बड़े -बड़े वाक्य होते हैं क्योंकि इसमें संयुक्त वाक्यों का चलन नहीं होता। कई वाक्य तो एक पृष्ठ जितने विशाल हो जाते हैं। इस भाषा में हिन्दी के कई व्यंजन भी नहीं होते। ऐसे में किसी तमिल कृति का हिन्दी में अनुवाद करते समय वहां की संस्कृति व समाज का ज्ञान होना बेहद जरूरी है

चर्चा में भाग लेते हुए लेखक साकार श्रीवास्तव ने कहा कि आज बाल साहित्य बहुत कम लिखा जा रहा है। ऐसे में एस भाग्यम शर्मा द्वारा तमिल बाल कथा संग्रह का हिन्दी में अनुवाद प्रशंसनीय है। “मल्लिका का घर” की सभी कहानियां सरल व सहज भाषा में लिखी गई भावप्रवण कथाएं हैं जिनमें दादी -नानी की कहानियों का स्वाद है। पाठक इन्हें पढ़ते हुए खो जाते हैं और यहाँ महसूस ही नहीं होता कि ये अनूदित कहानियां हैं। शिक्षाविद् डॉ अल्का अग्रवाल ने कहा कि इस संग्रह की प्रत्येक कहानी में संदेश हैं। यहां जबरन ठूँसे गये उपदेश नहीं है बल्कि बच्चों के लिए परोपकार, सेवा भावना, स्वच्छता प्रेम, प्रकृति प्रेम, श्रम का महत्व व दूसरों की भलाई आदि मूल्यों की सीख है ।

वरिष्ठ आलोचक डॉ दुर्गा प्रसाद अग्रवाल ने कहा कि द्रविड़ भाषाओं के साहित्य का आज भी हिंदी लेखन से उतना गहरा परिचय नहीं है जितना होना चाहिए। किसी भी भारतीय भाषा के साहित्य का हिंदी में अनुवाद करने के लिए उस भाषा के परिवेश को जानना बेहद जरूरी है। उस भाषा व प्रदेश की संस्कृति , परंपरा, रीति-रिवाज़ व लहज़े से परिचय हो तो ही श्रेष्ठ अनुवाद संभव है। अनुवाद में प्रवाह होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि एस भाग्यम दोनों संस्कृतियों की गहरी जानकार है । इसीलिए इनका अनुवाद अच्छा है। अनुवाद कार्य मूल लेखन से भी अधिक श्रमसाध्य है।उन्होंने कहा कि हिन्दी में अनुवादकों को बहुत कम पैसा मिलता है और पहचान भी उतनी नहीं मिलती। लेखक राजेंद्र मोहन शर्मा का कहना था कि पाठक सहज व प्रवाहमय अनुवाद से ही जुड़ता है।

पाठक के मन को छूने वाला अनुवाद ही सफल होता है। उन्होंने कहा कि भारत में अनुवाद की परंपरा दो -ढाई हज़ार साल पुरानी है। अनुवाद का कार्य राष्ट्रीय भावना का कार्य है क्योंकि अनुवाद के ज़रिए ही हम वसुधैव कुटुंबकम्” की धारणा को पूर्ण कर सकते हैं। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार नंद भारद्वाज ने तमिल साहित्य की प्राचीनता व समृद्धता का परिचय देते हुए कहा कि भारतीय भाषाओं से अनुवाद में हिन्दी एक लिंक भाषा का काम करती है। भाषा के सांस्कृतिक बोध से ही कोई अनुवाद समृद्ध होता है।

समारोह की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हेतु भारद्वाज ने कहा कि अनुवादक जब तक दोनों भाषाओं की प्रकृति को नहीं समझेंगे , अच्छा अनुवाद हो ही नहीं सकता। अनुवाद कठिन कार्य है। उन्होंने हिन्दी लेखकों की स्थिति के लिए लेखकों को ही जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि पहले प्रकाशक लेखक को बनाता था लेकिन आज लेखक प्रकाशक को स्थापित करता है इसके बावजूद प्रकाशक लेखक को पैसा नहीं देता। इस अवसर पर रंगकर्मी कविता माथुर ने “मालूम करें” कहानी का पाठ किया। कविता मुखर ने पुस्तक के संपादन की प्रक्रिया और चुनौतियां पर अपने अनुभव रख। कार्यक्रम का संचालन डॉ संगीता सक्सेना ने किया।