पिलानी निवासी प्रसिद्ध मूर्तिकार नरेश कुमार कुमावत से शिष्टाचार भेंट एवं किया अभिनंदन
पिलानी निवासी प्रसिद्ध मूर्तिकार नरेश कुमार कुमावत से शिष्टाचार भेंट एवं किया अभिनंदन

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : चंद्रकांत बंका
झुंझुनूं : जिले के पिलानी के रहने वाले प्रसिद्ध मूर्तिकार मातुराम वर्मा के सुपुत्र नरेश कुमार कुमावत से सामाजिक कार्यकर्ता एंव श्री श्याम आशीर्वाद सेवा संस्था के ट्रस्टी डॉक्टर डीएन तुलस्यान एवं स्नेहलता तुलस्यान, चुना चौक विकास समिति के सचिव अशोक तुलस्यान एवं सन्तोष तुलस्यान का उनके गुड़गांव स्थित स्टूडियो में मिलने का सुअवसर मिला, उनसे हुई शिष्टाचार भेंट के उपरांत उनको साफा औढाकर श्री राम मंदिर का प्रतीक चिन्ह भेंट कर उनका स्वागत अभिनंदन भी किया गया।
उनके स्टूडियो का नाम है – ‘मातूराम आर्ट्स सेंटर’, जो उनके पिता के नाम पर है। ललित कला की पूर्णता नरेश को विरासत के रूप में मिली। जबकि उनके दादा पूर्ववर्ती सीकर राजवंश के शाही मूर्तिकार थे, उनके पिता मातूराम पूर्ण आकार की मूर्तिकला की एक जीवित किंवदंती हैं। हमसे बात करते हुए कुमावत कहते हैं कि उनके मन में आया कि मूर्तिकला के कार्य को और खूबसूरत बनाया जा सके, इसीलिए उन्होंने तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू किया।
मूर्तिकला और तकनीक के संगम की वकालत करने वाले नरेश इसकी बारीकियां कनाडा से सीख के आए हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने पिता के साथ मिल कर 150 से भी अधिक मूर्तियां बनाई हैं। इनमें सबसे विशेष है नाथद्वारा में भगवान शिव की सबसे ऊंची प्रतिमा, जो 370 फिट की है। वे न केवल भारत में अपितु विदेशों में भी मूर्तियां लगा कर झुंझुनूं को भी गौरवान्वित कर रहे हैं। हिंदू देवी-देवताओं को गढ़ने में अपनी शिल्प कौशल के लिए जाने जाने वाले कुमावत के पास 80 देशों में 200 से अधिक मूर्तियों का एक शानदार पोर्टफोलियो है। याद दिलाते उन्होंने बताया कि कोरोना काल में भी उन्होंने स्वास्थ्यकर्मी, सुरक्षाकर्मी और स्वच्छ्ताकर्मी की तीन मूर्तियां बना कर कोरोना वॉरियर्स को धन्यवाद दिया था।
उन्होंने हमें पूरा स्टूडियो दिखाया और बताया कि किस प्रकार से वह अपने जीवन काल में आगे बढ़े हैं यह देखकर बहुत खुशी हुई कि हमारे जिले के रहने वाले एक जमीन से जुड़े व्यक्ति ने कितनी अधिक प्रगति की है। वे गौभक्त भी है अपने यहां गाय पाल कर गौ सेवा भी कर है। उन्होंने हमें स्टुडियो का अवलोकन करवाया जहां किस तरह हजारों वर्कर मूर्तियों को बना रहे थे। वे हनुमान भक्त भी है कह रहे थे कि अपने पिताजी ने जब उन्हें 21 सुंदरकांड पाठ करने के लिए कहा तो उन्हें लगा कि पाठ करने से ही उनको सफलता मिलने लगी है तब वे इसे आज तक प्रतिदिन करते आ रहे हैं।
विदित है कि अयोध्या में श्री राम मंदिर में श्री राम लला की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है और वहां लगने वाली 829 फीट की ऊंचाई की सबसे बड़ी भगवान राम की मूर्ति भी मूर्तिकार नरेश कुमार कुमावत ही बना रहे हैं।
उन्होंने नए संसद भवन में समुद्र मंथन की कलाकृति उकेरी है। पौराणिक कथा है कि देवताओं और दानवों ने मिल कर अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया था। नरेश कुमावत मानते हैं कि नया संसद भवन उभरते हुए भारत का मजबूत प्रतीक है। सरदार वल्लभभाई पटेल और बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर की भी मूर्तियां उन्होंने बनाई है। दोनों को नए संसद भवन में साथ में लगाया गया है। उनके द्वारा बनाई गई कुछ अन्य प्रमुख प्रतिमाएं हैं – हिमाचल प्रदेश के शिमला में स्थित भगवान हनुमान की विशाल मूर्ति, धरमपुर में जैन संत श्रीमद राज चन्द्र की प्रतिमा। उन्होंने जम्मू कश्मीर के नगरोटा में बलिदान हुए मेजर अक्षय गिरीश की प्रतिमा भी बनाई थी।