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दार्शनिक विचार : परमात्मा की योजना उत्कृष्ट है, यकीन मानें सब अपने आप ही सही हो जाएगा !


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दार्शनिक विचार : परमात्मा की योजना उत्कृष्ट है, यकीन मानें सब अपने आप ही सही हो जाएगा !

परमात्मा की योजना उत्कृष्ट है, यकीन मानें सब अपने आप ही सही हो जाएगा !

कल्पना कीजिए, किसी टाइम मशीन से आपको अतीत में ठीक दस बरस पहले जाने का मौका मिले।अब एक प्रयोग कीजिए, भविष्य से गए आप, भूत काल के स्वयं आप को ही जो ‘दस सलाह’ देना चाहें, उन्हें क्रमबद्ध तरीके से एक पेपर पर नोट कर लें।इस प्रयोग को स्वयं करने के बाद अपने नजदीकी दोस्तों से भी करने को कहें। परिणाम स्वरूप आप ये देख कर हैरान हो जाएंगे, कि प्रत्येक पेपर पर सलाह स्वरूप, ‘क्या करना चाहिए’ की बजाय ‘क्या नही करना चाहिए’ के बिंदु अधिक मिलेंगे।ऐसा केवल आपके साथ ही नही, प्रत्येक इंसान स्वयं को भूतकाल में जाकर यही सलाह देना चाहेगा कि उसे कहाँ कहाँ रुक जाना चाहिए था। हर कोई वक़्त के साथ कभी ना कभी इस बात को स्वीकार अवश्य करेगा कि उसकी प्लानिंग से बेहतर परमात्मा की प्लानिंग होती है।

करोड़ो बरसो पहले बनी पृथ्वी पर मनुष्य या किसी भी जीव का निर्माण लाखों बरसो बाद घटित हुआ, किन्तु परमात्मा ने उनकी प्यास, भूख को मद्देनजर रखते हुए, पानी, पेड़, फल आदि की व्यवस्था पृथ्वी निर्माण के समय ही कर दी थी। सन्देश साफ है, प्यास से पहले पानी बना, भूख से पहले भोजन, ठीक उसी तरह हर एक समस्या, व्यवधान अथवा कष्ट का निवारण, समाधान पहले से ही बन चुका होता है। स्रष्टि इतनी विशाल है कि सही समस्या का सही समाधान मिलने में वक़्त लग जाता है।किन्तु हम इतने हताश है कि जरा सी परेशानी हमें बेबस, लाचार बना देती है, जैसे आँख में पड़े एक बारीक से तिनके की वजह से भी कई बार सम्पूर्ण ब्रम्हांड अदृश्य हो जाता है। इसका मतलब ये कतई ही नही कि ब्रम्हांड अब नही रहा, बस देखने वाले की आँख में तिनका गिर गया है। ढूंढना चाँद, तारों, सूर्य को नही है, बस आँख को साफ करके रोशनी के आगमन हेतु उसे सही पात्र बनाने की आवश्यकता है।

परमात्मा हर जगह है, या यूं कहें वही सब कुछ है तो गलत नही होगा, सही समय पर, सही स्थान पर, बिल्कुल सही तरीके से वो सब सही कर देगा। उसे ढूंढने की, उसके पास जाने की आवश्यकता नही है, आप पात्र बन जाएं, वो मिल जाएगा। बून्द सागर में मिलने वाली बात तो आपने बहुत सुनी होगी, किन्तु सच ये है कि सही पात्र मिलते ही सागर बून्द में प्रविष्ट कर जाता है।यकीन मानिए, सब कुछ अपने आप ही सही हो जाएगा ।

स्वस्थ रहें, मस्त रहें !

लेखक – डॉ अनिल झरवाल, मलसीसर

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