[pj-news-ticker post_cat="breaking-news"]

दार्शनिक विचार : खुशियों को सफलता से कोई संबंध नहीं है !


निष्पक्ष निर्भीक निरंतर
  • Download App from
  • google-playstore
  • apple-playstore
  • jm-qr-code
X
आर्टिकलराज्य

दार्शनिक विचार : खुशियों को सफलता से कोई संबंध नहीं है !

अभी हाल ही में सुपरस्टार ऋतिक रोशन एक इंटरव्यू में कह रहे थे, ‘मुझे बचपन से ही सिखाया गया था, सक्सेसफुल हो जाओ, खुशियां खुद ब खुद तुम्हारे पास आएंगी, पर एक वक़्त के बाद जब मैं अपनी और दुनियां की नज़र में सक्सेसफुल था, तो मैने अपने इर्द गिर्द खूब ढूंढा पर खुशियां कहीं नही थी। और तब मैं ये समझा, खुशियों का सफलता से कोई कनेक्शन नही है…..’!भले कोई सेलेब्रिटी हो या आम इंसान ये बात सब पर लागू होती है, आधुनिक काल का मनुष्य खुशी की खोज में केवल चीजें इकठ्ठी करता जाता है, और सब पा लेने के बाद उसे एहसास होता है, जिसकी उसे असल मे तलाश थी, बस वही चीज़ नही है।

खुश होना और खुश रहना वास्तव में दो अलग स्थितियां हैं, क्षणिक रूप से खुश ‘हुआ’ जा सकता है, जो किसी परिस्थिति, जगह, साथी, मूड, सफलता, नयापन, धन आदि बहुत सी चीज़ों पर निर्भर हो सकता है, किंतु खुश ‘रहना” एक मानसिकता है, जो व्यक्ति विशेष के स्वनिर्णय पर निर्भर होता है।कोई भी जीवन तीन तलों पर काम करता है। दैहिक, मानसिक और आत्मिक। दैहिक शरीर जो बिल्कुल स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, हमेशा बाहरी रिफ्लेक्स पर काम करता है। आत्मिक शरीर जिसे हम आत्मा, अवचेतन मन, परमात्मा कोई भी नाम दे सकते हैं, जो केवल सदैव स्थिर, आनन्दित रहना ही जानता है। आत्मिक और दैहिक शरीर के बीच का सेतु है ‘मन’!मन का मूल स्वभाव ‘विरोध’ करना है, मन हमेशा विरोध की स्थिति में रहता है, मन वहाँ नही रहना चाहता जहाँ आप हैं।

इसे ऐसे समझे, जब आप काम कर रहे होते हैं तो मन आपको घूमने जाने के सुझाव देता रहता है, जब घूम रहे होते हैं तो आपको काम की याद दिलाता रहता है, जब आप नींद लेना चाहते हैं, तो आपको सुबह जल्दी उठने के विचार देता है, और सुबह अलार्म की आवाज़ के साथ सोए रहने के सुझाव। गरीब को अमीर होने का सुझाव, अमीर को सुकून के विचार, मंदिर में दुकान का विचार और दुकान में बैठे को भक्ति के लिए प्रेरणा….!उदाहरणों का अंत नही है, कुल जमा बात इतनी सी है कि ‘मन’ वहाँ नही रहना चाहता जहाँ आप अभी हैं’!
और बस इसी एक सूत्र में सम्पूर्ण मानवता के दुख का मूल है। लाओत्से ने कहा है, ‘जिसका मन उसके वश में है, उसके आगे सारा संसार झुकता है”!

बुद्ध, कृष्ण, क्राइस्ट, कबीर या रैदास या कोई भी जिसने इस ‘सत्य’ को जाना है, वही परम् आनन्द, शांति को प्राप्त हुआ है।

आधुनिक काल के प्रसिद्ध दार्शनिक आचार्य रजनीश ‘ओशो’ ने तो इस बात पर पूरा जोर दिया है कि ‘मन’ शब्द ही ‘मना’ से बना है, ये कहीं भी पहुंच कर, कुछ भी हासिल करके ‘मना’ कर देता है।जीवन भीतर से बाहर की ओर जीना शुरू करें, बाहर से भीतर की ओर जीने की राह में मनुष्यता सदैव कष्ट में ही रहेगी।अपने भीतर की यात्रा पर निकल जाएं, आप पाएंगे, वास्तविक ‘आनन्द’ आपके भीतर हमेशा से छुपा हुआ है, बाहर कुछ भी तलाशने की आवश्यकता है ही नही…..!
स्वस्थ रहें, मस्त रहें।

युवा लेखक -डॉ अनिल झरवाल, मलसीसर

Related Articles