[pj-news-ticker post_cat="breaking-news"]

खेतड़ी ने दिया स्वामीजी को विवेकानंद नाम, पोशाक भी खेतड़ी की ही देन


निष्पक्ष निर्भीक निरंतर
  • Download App from
  • google-playstore
  • apple-playstore
  • jm-qr-code
X
खेतड़ीझुंझुनूंटॉप न्यूज़राजस्थानराज्य

खेतड़ी ने दिया स्वामीजी को विवेकानंद नाम, पोशाक भी खेतड़ी की ही देन

खेतड़ी. स्वामी विवेकानंद एवं तत्कालीन खेतड़ी रियासत के महाराजा अजीत सिंह की प्रगाढ़ मित्रता थी। स्वामी विवेकानंद अपने जीवन काल में तीन बार खेतड़ी आए। शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में भारत का परचम फहराकर लौटने पर स्वामी विवेकानंद 12 दिसंबर 1897 को खेतड़ी पधारे, उस समय खेतड़ी सीमा पर राजा अजीत सिंह राजबग्घी में बैठकर उनकी अगवानी के लिए पहुंचे। जुलूस के रूप में उन्हें लाया गया और भोपालगढ़ एवं खेतड़ी में घरों में दीपक जलाकर रोशनी की गई।

नाम व पोशाक खेतड़ी की देन

स्वामी विवेकानंद जो पगड़ी व अंगरखा पहनते थे, वह राजा अजीतसिंह की ही देन है।स्वामीजी का विवेकानंद नाम भी राजा अजीतसिंह ने रखा था। इससे पूर्व उनका नाम विविदिषानंद था। स्वामी विवेकानंद की शिकागो धर्म सम्मेलन की सम्पूर्ण यात्रा व्यय की व्यवस्था खेतड़ी ठिकाने ने की थी। राजा अजीत सिंह स्वामी विवेकानंद की माता भुवन मोहिनी को प्रतिमाह खर्च के लिए एक सौ रुपए भी भिजवाते थे।

नृत्यांगना को कहा मां

स्वामी विवकानंद दूसरी बार खेतड़ी आए राज नृत्यांगना मैनाबाई राजा के पुत्र जन्मोत्सव पर नृत्य कर रही थी। राजा के कहने पर स्वामी विवेकानंद वहां पहुंचे भी लेकिन नृत्यांगना को नाचते देख वापस जाने लगे। इस दौरान नर्तकी मैना बाई ने ’प्रभुजी! मेरे अवगुण चित ना धरो, समदरसी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार करो…’ भजन गाया। इसे सुनकर स्वामी विवेकानंद भावुक हो गए वापस आकर मैना देवी को नमन करते हुए कहा कि माता मुझसे भुल हुई, मुझे माफ करें, मुझे तो आज ज्ञान की प्राप्ति हुई है।

व्याकरण का अध्ययन खेतड़ी में किया

स्वामीजी ने राज पंड़ित नारायणदास से व्याकरण, अष्टाध्यायी एवं महाभाष्य का अध्ययन किया। यहां रहते हुए उन्होंने खेतड़ी के राजा अजीतसिंह को विज्ञान का अध्ययन भी करवाया। स्वामीजी की सहमति से खेतड़ी में एक प्रयोगशाला भी स्थापित की गई। महल की छत पर एक टेलीस्कोप लगाया गया। इससे स्वामीजी एवं राजा तारामण्डल का अध्ययन करते थे।

Related Articles