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सवाल-आप वकीलों को एंट्री नहीं देतीं, मुकदमे खारिज करती थीं?:पूर्व महिला जज बोलीं- ओपन कोर्ट में एंट्री कैसे बैन होगी, मुकदमे खारिज से मुझे क्या फायदा?


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सवाल-आप वकीलों को एंट्री नहीं देतीं, मुकदमे खारिज करती थीं?:पूर्व महिला जज बोलीं- ओपन कोर्ट में एंट्री कैसे बैन होगी, मुकदमे खारिज से मुझे क्या फायदा?

सवाल-आप वकीलों को एंट्री नहीं देतीं, मुकदमे खारिज करती थीं?:पूर्व महिला जज बोलीं- ओपन कोर्ट में एंट्री कैसे बैन होगी, मुकदमे खारिज से मुझे क्या फायदा?

जयपुर : राजस्थान के नागौर जिले में तैनात रही महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट एलिजा गुप्ता को राज्य सरकार ने राजस्थान हाई कोर्ट की अनुशंसा पर दो महीने पहले न्यायिक सेवा से मुक्त कर दिया था।

इस मामले में हाल ही में महिला जज गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई। लेटर में उन्होंने अपने खिलाफ हुई कार्रवाई को द्वेषपूर्ण बताते हुए एडवोकेट्स और पुलिस के साथ ही पूरे ज्यूडिशियल सिस्टम पर सवाल उठाए हैं।

इधर, पूर्व महिला जज का लेटर सामने आने के बाद नागौर के कई एडवोकेट्स ने भी उन पर कई आरोप लगाए हैं। हमारी मीडिया टीम ने मामले में पूर्व महिला जज एलिजा गुप्ता से बात की।

पढ़िए पूरा इंटरव्यू

मीडिया : नागौर में विवाद की शुरुआत कैसे हुई ?

गुप्ता : 16 सितंबर 2023 को मैं ACJIM-प्रथम के रूप में नागौर में तैनात थी। तभी वहां एडवोकेट पीर मोहम्मद और अर्जुन राम काला आए और मुझे धमकी दी।

मेरे ऊपर अभद्र भाषा का प्रयोग किया। ऐसे में मुझे पुलिस बुलानी पड़ी। वहां आए नागौर कोतवाली एसएचओ को मैंने मौखिक शिकायत दी और उन दोनों पर एक्शन लेने के लिए कहा।

तत्कालीन एसएचओ ने कोई कार्रवाई नहीं की तो मैंने लिखित में शिकायत दी, लेकिन फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। मैंने जिला जज को भी पूरी बात बताई, लेकिन उन्होंने भी मेरा साथ नहीं दिया।

इसके बाद मैंने कोर्ट में डिस्टर्बेंस को लेकर उनके खिलाफ कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट की प्रोसिडिंग कर दी। इसके अगले दिन ही उन्होंने मेरा रातों रात ही ट्रांसफर करवा दिया।

इसके बाद मुझे एपीओ कर जोधपुर भेज दिया और थोड़े दिन बाद ही मुझे डिस्चार्ज फ्रॉम सर्विस कर दिया।

मीडिया : वकीलों का आरोप है कि आप में एटीट्यूट प्रॉब्लम थी। सुनवाई खारिज कर देती थी और कोर्ट रूम में एंट्री तक नहीं देती थी?

गुप्ता : अगर कोर्ट में वकील आएंगे तो सुनवाई तो होगी। हमारा तो ओपन कोर्ट होता है। प्राइवेट कमरे में तो चलता नहीं है कि किसी की एंट्री बैन हो जाए।

पब्लिक भी आती जाती रहती है। मैं तो किसी को रोक ही नहीं सकती हूं। अगर कोई बदतमीजी करेगा या गाली गलौज करेगा तो उसे तो बाहर किया जा सकता है।

मैं जब कोर्ट में सीट पर बैठी हूं तो मैं क्यों किसी को अंदर आने से मना करूंगी? वकील वहां नहीं होते और उनकी फाइल लिस्टेड होती तो मैं उन्हें नाम से आवाजें लगवाती थीं कि कोर्ट में आ जाओ और अपने मुकदमे की पैरवी करो।

मुकदमों को खारिज करने में मेरा तो कोई पर्सनल इंट्रेस्ट नहीं है। अगर मैं मुकदमे खारिज करती तो मुझे उसका कोई फायदा भी नहीं मिलने वाला था।

ऐसे में ज्यूडिशियली को भी जिस काम में फायदा न हो और मेरा भी नुकसान हो, वो काम क्यों करूंगी? मेरी तो इंटेंशन होती थी कि फुल ट्रायल केस हो ताकि उसका मुझे और ज्यूडिशियरी दोनों को फायदा हो।

अब वकील तो अपने बचाव में कुछ भी कह सकते हैं। अगर ये प्रॉब्लम भी थी तो वो प्रॉपर प्रोसीजर से रिस्टोरेशन की अपील लगाते।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में पूर्व महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट एलिजा गुप्ता ने वकीलों और पुलिस के साथ ही पूरे ज्यूडिशियल सिस्टम पर सवाल उठाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में पूर्व महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट एलिजा गुप्ता ने वकीलों और पुलिस के साथ ही पूरे ज्यूडिशियल सिस्टम पर सवाल उठाए हैं।

मीडिया : जब बार एसोसिएशन के पदाधिकारी आपसे बात करने गए तो आपने राजद्रोह का मुकदमा कर दिया ?

गुप्ता : जी हां, मैंने एडवोकेट पीर मोहम्मद के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया था। उन्होंने मुझे गाली देते वक्त मेरी अपॉइंटमेंट ऑथोरिटी गवर्नर ऑफ राजस्थान को गाली दी थी और उन्हें पागल कहा था।

इस मामले में राजद्रोह बनता था। गवर्नर को गाली देने पर ही मुझे राजद्रोह केस का प्रसंज्ञान लेना पड़ा।

मीडिया : वकीलों का कहना है कि जिस राजद्रोह के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंधित कर रखा है, आपने उनके खिलाफ उसी को लेकर प्रसंज्ञान लेकर कार्रवाई कर दी?

गुप्ता : अगर ऐसा कहीं है तो आप मुझे सुप्रीम कोर्ट का ऐसा जजमेंट दिखा दीजिए। उन्हें प्रॉपर जानकारी नहीं है। जब आप भारत सरकार, राष्ट्रपति और राज्यपाल को गाली देंगे और उनके प्रति अभद्रता करेंगे तो राजद्रोह का मुकदमा बनता ही है।

मीडिया : आपने हाई कोर्ट के जज पर भी बड़ा आरोप लगाया है कि उन्होंने ही आपको वकीलों पर कार्रवाई करने से रोका और आपको मिसलीड भी किया। ये क्या मामला था ?

गुप्ता : जब 16 सितंबर को ये मामला हुआ था तो उनके मेरे पास वॉट्सऐप पर कई वॉइस कॉल्स और मैसेज आए। वो मुझसे बात करना चाह रहे थे। मेरी पास वो सभी कॉल्स डिटेल्स भी मौजूद है।

उन्होंने मुझसे बात करते हुए कहा कि बेटा! मैं भी वकील कोटे से हूं। इनके खिलाफ कुछ मत करो। मैं इन बदमाशों को अच्छे से जानता हूं। अब मैं वहां आ रहा हूं, आप मेरा इंतजार करो।

इस पर मैंने उनका इंतजार किया। शाम को 7 बजे के आस-पास में वो जोधपुर से नागौर आए। उन्होंने सभी से अलग-अलग बात की।

इसके बाद मुझे अकेले में आकर बोले कि यहां का वकीलों का माहौल आपके लिए ठीक नहीं है। आप थोड़े दिन छुट्टी पर चले जाओ। वहीं मैं तुम्हारी किसी मेट्रोपोलिटिन सिटी में पोस्टिंग करवा देता हूं। आप दिल्ली की हो तो आपके लिए यहीं ठीक रहेगा।

मैंने भी सीनियर्स की बात मानते हुए उन्हें कहा कि जैसा आपको ठीक लगे सर, वो कर दीजिए। आप मेरे इंस्पेक्टिंग जज है, जैसा आप आदेश करेंगे वो ही मैं कर लूंगी।

मैंने उन्हें ये भी बताया कि आप जहां भी पोस्टिंग देंगे मैं वहीं चली जाऊंगी। इसके बाद 18 तारीख को मैंने छुट्टी अप्लाई की। इसी दिन रात में 12 बजे मुझे एपीओ का ऑर्डर मिल गया।

इसी दौरान छुट्टी पर होने के बावजूद ADJ CJM ने मुझे वापस नागौर बुलाया। इसी दौरान आधी रात में उन्होंने मेरे से सारा चार्ज टेक ओवर किया।

इसके बाद मुझे जोधपुर जॉइन करने के लिए कहा गया। अगले दिन मैं जोधपुर चली गई। इसी दिन ADJ प्रथम ने मेरे द्वारा वकीलों पर की गई कार्रवाई को स्टे कर दिया।

इतना ही नहीं, उन्होंने मुझे इस मामले में पार्टी भी बना दिया, जबकि नियमानुसार जजेस प्रोटेक्शन एक्ट में जज को पार्टी नहीं बनाया जा सकता था। ये गलत था। इसके कुछ दिन बाद ही मुझे डिस्चार्ज फ्रॉम सर्विस कर दिया गया।

मीडिया : वकीलों ने आपके 4 ट्रांसफर को लेकर भी आपके एटीट्यूड को ही वजह बताया है। ऐसे में इस मामले को लेकर आपका क्या कहना है ?

गुप्ता : जयपुर के पास बस्सी में मेरी पहली पोस्टिंग थी। वहां की जज मेरी सीनियर थीं। मुझे तब वहां नया-नया ज्यूडिशियल क्वार्टर मिला था।

वहीं एक गैराज भी था, जहां गाड़ियां पार्क की जाती थीं। वहां गाड़ी पार्क करने को लेकर हुए एक विवाद के बाद मैम के पति ओमप्रकाश ने गैराज में मेरी गाड़ी को लॉक कर दिया।

शाम में जब मुझे जाना था और गाड़ी लॉक थी तो मैंने इस मामले को लेकर ऊपर शिकायत कर दी। इस मामले को लेकर उन्होंने मेरे से ईगो बना लिया।

वहीं ये भी सीनियर्स को पता चल गया था कि एडवोकेट ओमप्रकाश अपनी पत्नी के ही कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं। ये गलत था।

इसके बाद उन्होंने वहां की बार एसोसिएशन से मिलकर मेरा विरोध स्टार्ट करवा दिया। मेरे क्वार्टर पर पत्थर भी फेंके।

इसे लेकर मैंने पुलिस प्रोटेक्शन की एप्लिकेशन भी दी और उनकी शिकायत भी की। मुझे न तो पुलिस प्रोटेक्शन मिला और न ही उनके खिलाफ कोई कार्रवाई हुई। इसके बाद मेरा नागौर ट्रांसफर हो गया।

जब मैं नागौर पहुंची तो उन्होंने यहां तक मेरा पीछा किया। वहां के दो वकील एक दिन मेरे पास आए और मुझे धमकी तक दी। इसको लेकर भी मैंने शिकायत की थी।

इसके बाद जनवरी महीने में नागौर में कोर्ट के बाहर एक फायरिंग की घटना हुई थी। तब वहां एडवोकेट महावीर विश्नोई मेरे पास आए और उन्होंने अपनी एप्लिकेशन मेरे सामने डायस पर फेंकते हुए कहा कि सबसे पहले तो इस केस का डिसाइड होगा। उन्होंने मेरे साथ मिसबिहेव भी किया।

इस पर मैंने ये सारा वाक्या ऑर्डरशीट पर लेते हुए हाई कोर्ट और डिस्ट्रिक्ट जज को फाइल भेज दी। पूरे मामले को लेकर उनका डायरेक्शन भी मांग लिया। इस पर मुझे वहां से कोई भी रिस्पॉन्स नहीं मिला। इस दौरान उन्होंने अपने बचाव के लिए एक काउंटर शिकायत मेरे खिलाफ दे दी।

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