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Israel-Hamas War: इस्राइल-हमास जंग का असर तेल के दामों पर? जानें भारत में कैसे तय होती हैं पेट्रोल की कीमतें


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Israel-Hamas War: इस्राइल-हमास जंग का असर तेल के दामों पर? जानें भारत में कैसे तय होती हैं पेट्रोल की कीमतें

Israel Hamas War Effect: सात अक्तूबर को इस्राइल पर हमास ने हमला कर दिया। इसके बाद पिछले सप्ताह ब्रेंट क्रूड के दाम और बढ़ गए। यह कीमत पांच डॉलर से अधिक की बढ़ोतरी के साथ 90 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुंच गईं।

Israel-Hamas War : इस्राइल पर हमास के हमले के बाद शुरू हुई जंग अब भीषण रूप ले चुकी है। इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हमास को गाजा से नेस्तनाबूद करने की कसम खाई है। दोनों ओर से हो रहे हमलों के कारण हालात बिगड़ते जा रहे हैं। इसके साथ ही आम जरूरत के चीजों के दाम बढ़ने की आशंका तेज हो गई है जिसमें पेट्रोल भी शामिल है।

इससे पहले रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भी कच्चे तेल के दाम बढ़ने से पेट्रोल की कीमतें काफी बढ़ गई थीं। ऐसे में हमें जानना चाहिए कि इस्राइल-हमास लड़ाई के बाद तेल बाजार की स्थिति क्या है? इसका लड़ाई पर क्या असर हो रहा है? कच्चे तेल के दाम बढ़ने से भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा? कौन तय करता है कीमत?

इस्राइल-हमास लड़ाई के बाद तेल बाजार की स्थिति क्या है? 
सऊदी अरब और रूस ने पहले ही 2023 के अंत तक स्वैच्छिक आपूर्ति में कटौती की घोषणा कर दी है। इससे सितंबर के अंत में तेल की कीमतें 10 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं।

सात अक्तूबर को इस्राइल पर हमास ने हमला कर दिया। इसके बाद पिछले सप्ताह ब्रेंट क्रूड के दाम और बढ़ गए। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह कीमत पांच डॉलर से अधिक की बढ़ोतरी के साथ 90 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुंच गई।

इस बीच, अमेरिकी विदेश विभाग में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा मामलों के पूर्व विशेष दूत डेविड गोल्डविन ने आशंका जताई है कि यह लड़ाई कीमतों की बढ़ोतरी के लिए एक वजह हो सकती है।

वहीं टोर्टोइज कैपिटल के वरिष्ठ पोर्टफोलियो मैनेजर रॉब थम्मेल ने कहा कि तेल की कीमतों में तब तक भारी वृद्धि नहीं होगी जब तक कि ईरान या किसी अन्य देश के कारण होर्मुज जलमार्ग में व्यवधान न हो।

…तो कहां है होर्मुज और क्या है इसकी अहमियत?
होर्मुज जलडमरूमध्य, फारस की खाड़ी में है। यह एक अहम रास्ता है जो मध्य-पूर्व के तेल उत्पादक देशों को एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका और उससे भी आगे के बाजारों से जोड़ता है। यह ईरान और ओमान के जल क्षेत्र के दायरे में आता है। सबसे संकरे बिंदु पर होर्मुज की चौड़ाई महज 33 किलोमीटर है। दोनों दिशाओं में शिपिंग लेन सिर्फ तीन किलोमीटर चौड़ी है। यह ओमान की खाड़ी की ओर जाता है, जहां से जहाज पूरी दुनिया में जाते हैं। यह पूरी दुनिया के तेल व्यापार के लिए बड़ा ट्रांजिट प्वाइंट है। समुद्री रास्तों के जरिए होने वाली कुल आपूर्ति के पांचवां हिस्से का तेल कारोबार इस समुद्री मार्ग से होता है।

यहां की घटना का दुनिया पर असर
सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, चीन, भारत, जापान, और दक्षिण कोरिया में भी इसी मार्ग से तेल पहुंचाया जाता है। इसके साथ ही कतर से दुनियाभर में किए जाने वाला तरल प्राकृतिक गैस एक्सपोर्ट भी इसी मार्ग से होता है। होर्मुज जलडमरूमध्य के संकरे रास्ते में अगर कुछ भी घटता है तो वह दुनियाभर के ऊर्जा बाजार को प्रभावित करता है। किसी भी प्रकार का विवाद दुनियाभर की तेल कीमतों में तेजी ला सकता है। यदि खाड़ी क्षेत्रों में तनाव पैदा होता है तो कीमतों में लंबे वक्त तक बढ़ोतरी बनी रह सकती है साथ ही आपूर्ति भी प्रभावित होगी।

हमास-इस्राइल लड़ाई का ईरान के निर्यात पर क्या असर?
ईरान को हमास समर्थक माना जाता है। हालांकि, इसने इस्राइल पर हमास के हमले में किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार किया है। अमेरिकी वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने कहा कि उनके पास अभी तक इस बारे में कहने के लिए कुछ नहीं है कि अगर सबूत सामने आते हैं कि ईरान हमले में शामिल था तो अमेरिका इस पर मंथन करेगा और तय करेगा कि उस पर नए प्रतिबंध लगाए जाएं या नहीं।

वहीं दूसरी ओर ईरान के तेल मंत्री जवाद ओवजी ने कहा कि मध्य पूर्व में हाल के घटनाक्रमों पर तेल 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाएगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान पर कड़े अमेरिकी प्रतिबंधों से कच्चे तेल की आपूर्ति को खतरा होगा और वैश्विक और घरेलू स्तर पर ऊर्जा की कीमतें बढ़ेंगी। हालांकि, जो बाइडन 2024 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले ऐसा फैसला लेने से बचना चाहेंगे।

मैक्वेरी विश्वविद्यालय से जुड़े विश्लेषकों का भी मानना है कि अमेरिका आपूर्ति में व्यवधान का जोखिम नहीं उठाएगा। मैक्वेरी विश्लेषकों ने कहा, ‘रूस-यूक्रेन संघर्ष के चरम पर भी रूसी तेल आपूर्ति पर असर नहीं हुआ, हमें उम्मीद नहीं है कि ईरानी तेल निर्यात में बाधा आएगी।’

बड़े तेल निर्यातकों का क्या कहना है?
सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक है जो पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ओपेक का भी सदस्य है। हालिया घटनाक्रम के बाद सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अजीज ने कहा कि ओपेक और ओपेक+ (रूस के नेतृत्व वाले पेट्रोलियम निर्यातक देशों और सहयोगियों का संगठन) पहले भी कई चुनौतियों से गुजर चुके हैं और इसके सदस्य जुड़े हुए थे और उनके सामंजस्य को चुनौती नहीं दी जानी चाहिए।

इराक के तेल मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि ओपेक+ बाजार की चुनौतियों पर बिना सोचे-समझे प्रतिक्रिया नहीं देता है। वहीं रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि ओपेक+ का समन्वय तेल बाजार के पूर्वानुमान के लिए जारी रहेगा।

कच्चे तेल के दाम बढ़ने से भारत पर क्या असर?
आमतौर पर माना जाता है कि पेट्रोल-डीजल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत से तय होती है। तेल कंपनियां यह देखती हैं कि पिछले 15 दिनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भावों का औसत क्या है, उसी हिसाब से दाम तय किए जाते हैं। यानी जब कच्चे तेल के दाम घटते या बढ़ते हैं तो उसका असर आम उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ता है।

कई तरह के टैक्स से बढ़ जाती है कीमत
दरअसल, इन उत्पादों पर लगने वाले टैक्स घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पेट्रोल की कीमत बढ़ने का एक प्रमुख कारण स्थानीय करों की ज्यादा वसूली है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भले ही पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम हो, लेकिन उसका असर घरेलू बाजार में इसलिए नहीं होता है क्योंकि आम उपभोक्ता तक पहुंचते-पहुंचते सरकार कई तरह के टैक्स लगा देती है। पहले इस पर उत्पाद शुल्क और उपकर लगाती है, जिससे सरकार को राजस्व मिलता है।

राज्य सरकारें वसूलती हैं वैट
इसके अलावा राज्य सरकारें बिक्री कर या वैट वसूलती हैं। उसके बाद माल भाड़ा, डीलर कमीशन, वैल्यू एडेड टैक्स जुड़ जाता है। उदाहरण के लिए दिल्ली में पेट्रोल की कीमत को समझें। यहां पेट्रोल का बेस प्राइस 57.13 रुपये प्रति लीटर है। माल ढुलाई 0.20 रुपये प्रति लीटर, उत्पाद शुल्क 19.90 रुपये प्रति लीटर, डीलर कमीशन (औसत) लीटर 3.78 रुपये प्रति लीटर और वैट (डीलर कमीशन पर वैट सहित) 15.71 रुपये प्रति लीटर। इन सबको जोड़कर दिल्ली में फिलहाल पेट्रोल 96.72 रुपये प्रति लीटर मिल रहा है।

कौन तय करता है कीमत?
भारत मुख्य रूप से आयात के माध्यम से अपनी घरेलू तेल की मांग को पूरा करता है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल बाहर से मंगवाता है। कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ओपेक ही तय करता है। भारत को भी उसी कीमत पर कच्चा तेल खरीदना पड़ता है, जो ओपेक तय करता है। सरकारी तेल कंपनिया पेट्रोल-डीजल की कीमत रोज तय करती हैं। इसके साथ ही भारत रूस से भी तेल आयात करता है।

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