अंतरराष्ट्रीय विज्ञान संगोष्ठी का आयोजन:वीएलएसआई डिजाइन और माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में भविष्य की संभावनाओं पर हुई चर्चा
अंतरराष्ट्रीय विज्ञान संगोष्ठी का आयोजन:वीएलएसआई डिजाइन और माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में भविष्य की संभावनाओं पर हुई चर्चा

पिलानी : वीएलएसआई डिजाइन एंड टेस्ट (वी-डैट) विषय पर बिट्स-पिलानी और सीएसआईआर-केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (सीरी) की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित 27वीं अंतरराष्ट्रीय विज्ञान संगोष्ठी का समापन संस्थान में आयोजित पैनल परिचर्चा के साथ हुआ।
30 सितंबर को शुरू हुई अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के तकनीकी सत्र बिट्स पिलानी में आयोजित किए गए, जबकि समापन और परिचर्चा सत्र सीरी संस्थान में आयोजित किया गया।
पैनल परिचर्चा में सीरी निदेशक डॉ. पीसी पंचारिया, बिट्स-पिलानी के कुलपति प्रो. वी रामगोपाल राव, सीरी के पूर्व निदेशक एवं बिट्स-पिलानी के सीनियर एमेरिटस प्रो. डॉ चंद्रशेखर, डॉ. देवेश द्विवेदी, प्रो. दिनेश शर्मा, प्रो. जीएस विश्वेश्वरन, प्रो. एम बालकृष्णन, प्रो. अल्पना अग्रवाल, प्रो. वीरेंद्र सिंह और डॉ. सुचंदन पाल शामिल हुए।
संस्थान के वैज्ञानिकों एवं संगोष्ठी के प्रतिभागियों सहित समापन एवं परिचर्चा सत्र में लगभग 300 व्यक्तियों ने हिस्सा लिया। परिचर्चा में अपने विचार व्यक्त करते हुए विशेषज्ञों ने वीएलएसआई क्षेत्र की व्यापक संभावनाओं पर चर्चा की।
बिट्स कुलपति प्रो. वी. रामगोपाल राव ने पैनल परिचर्चा का संचालन करते हुए सत्र की दिशा तय की। उन्होंने आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए देश में सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया।
डॉ. चंद्रशेखर ने कहा कि प्रकृति द्वारा प्रदत्त प्रत्येक वस्तु या व्यक्ति उपयोगी होता है, आवश्यकता उसे पहचानने और उपयोग की है। प्रो. बालकृष्णन ने कहा कि हमारे देश के आईआईएम जैसे प्रबंध संस्थान आईआईटी के इंजीनियर्स से भरे हुए हैं लेकिन जैसे ही हमारे इंजीनियर वहां अपना कार्य शुरू करते हैं, वे अपनी इंजीनियरिंग शिक्षा को भूल केवल एमबीए की शिक्षा का उपयोग करते हैं, जबकि उनके द्वारा प्राप्त की गई इंजीनियरिंग की शिक्षा देश में सेमीकंडक्टर क्षेत्र के लिए नई टेक्नोलॉजी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।

दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में उद्योग जगत, शैक्षणिक संस्थाओं और शोध संगठनों के 350 प्रतिभागी सम्मिलित हुए तथा कुल 57 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।