हाईकोर्ट ने कहा-भ्रष्टाचार मामले में ट्रैप की कार्रवाई पर्याप्त नहीं:स्पष्ट डिमांड,बरामदगी और लंबित कार्य जरूरी, 18 साल पुराने मामले में तीन पुलिसकर्मी बरी
हाईकोर्ट ने कहा-भ्रष्टाचार मामले में ट्रैप की कार्रवाई पर्याप्त नहीं:स्पष्ट डिमांड,बरामदगी और लंबित कार्य जरूरी, 18 साल पुराने मामले में तीन पुलिसकर्मी बरी
जयपुर : राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए कहा कि भ्रष्टाचार के मामले में किसी भी आरोपी को दोषी ठहराने के लिए केवल ट्रैप की कार्रवाई पर्याप्त नहीं है। इसके लिए स्पष्ट डिमांड, बरामदगी और लंबित कार्य का होना जरूरी है। जस्टिस आनंद शर्मा की अदालत ने यह फैसला आरपीएफ (रेलवे सुरक्षा बल) इंस्पेक्टर और दो कांस्टेबलों की अपील पर सुनवाई करते हुए दिया। तीनों को एसीबी ने करीब 18 साल पहले 22 जुलाई 2007 को 5 हजार रुपए की रिश्वत लेने के मामले में गिरफ्तार किया था।
वहीं, एसीबी कोर्ट-1 जयपुर ने 29 मई 2023 को तीनों को दोषी मानते हुए एक-एक साल की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ तीनों ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। हाईकोर्ट ने एसीबी कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए तीनों को बरी कर दिया।
फर्श से रुपए बरामद होना रिश्वत नहीं
कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार से जुड़े किसी भी मामले में रिश्वत की स्पेसिफिक और क्लियर डिमांड होनी चाहिए। इस मामले में एसीबी की ऑडियो रिकॉर्डिंग में स्पष्ट डिमांड नहीं है। दूसरा, ट्रैप की कार्रवाई में एसीबी का कहना है कि आरपीएफ रींगस थानाधिकारी कैलाशचंद सैनी के इशारा करने पर परिवादी ने कॉन्स्टेबल सांवरमल मीणा को रिश्वत की राशि दी, लेकिन उसने शक होने पर यह राशि जेब से निकालकर जमीन पर फेंक दी।
एसीबी ने यह राशि फर्श से बरामद की, लेकिन कॉन्स्टेबल सांवरमल के हाथों से नोटों पर लगाया गया रंग नहीं छूटा। तीसरा, परिवादी का कहना था कि थानाधिकारी ने उसे टिकट ब्लैक करने के केस से निकालने की एवज में रिश्वत मांगी थी, जबकि फाइल में मौजूद तथ्यों के आधार पर परिवादी के केस की जांच थानाधिकारी के पास नहीं थी। उसने केवल जांच को चार्जशीट के लिए उच्चाधिकारियों को रेफर किया था, वहीं ट्रैप की कार्रवाई से पहले ही चार्जशीट तैयार हो चुकी थी। ऐसे में तीनों के पास परिवादी का कोई भी कार्य लंबित नहीं था।
एसीबी ने कोई स्वतंत्र गवाह नहीं बनाया
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एसीबी ने यह ट्रैप की कार्रवाई सीकर रेलवे कोर्ट परिसर में की। ट्रैप कार्रवाई के समय रेलवे मजिस्ट्रेट कोर्ट परिसर में मौजूद थे, लेकिन एसीबी ने न तो मजिस्ट्रेट को और न ही किसी अन्य स्वतंत्र व्यक्ति को अभियोजन पक्ष का गवाह बनाया।
सभी गवाह एसीबी के कर्मचारी थे और उन्होंने भी अभियोजन की कहानी की पुष्टि नहीं की। वहीं, तीनों आरोपियों के खिलाफ जारी अभियोजन स्वीकृति के अलग-अलग आदेशों की समान भाषा भी संदेह पैदा करती है।
यह था पूरा मामला
दरअसल, इस मामले में परिवादी चिरंजीलाल और उसके भाई को आरपीएफ रींगस ने फर्जी नामों से टिकट बुक करवाकर ब्लैक करने के मामले में पकड़ा था। उसने एसीबी में शिकायत दी थी कि आरोपी पुलिस वाले उसका नाम केस से हटाने के लिए पांच हजार रुपए की रिश्वत मांग रहे हैं।
कॉन्स्टेबल जगवीर सिंह ने उससे थानाधिकारी के नाम पर दो हजार रुपए की रिश्वत ले ली है, वहीं शेष तीन हजार रुपए देने के लिए कह रहे हैं। इस पर एसीबी ने 26 जुलाई 2007 को ट्रेप की कार्रवाई की और कॉन्स्टेबल सांवरमल से रिश्वत की राशि बरामद होना बताया।हाईकोर्ट में आरोपी पुलिसकर्मियों की ओर से वरिष्ठ वकील माधव मित्र, वकील गिर्राज प्रसाद शर्मा और वकील राजीव सोगरवाल ने पैरवी की।
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