विरासत दिवस पर विशेष : आज खेतड़ी होगी विवेकानंदमयी, मनाएंगे विवेक दिवाली
6 घोड़ो की बग्घी में बैठा कर स्वामी विवेकानंद को लाए थे राजा अजीत सिंह
खेतड़ी : स्वामी विवेकानंद का खेतड़ी से विशेष संबंध रहा, इसमें खेतड़ी नरेश अजीत सिंह से उनकी आत्मीयता सर्वविदित है। स्वामीजी यहां आए तो विविदिषानंद बनकर थे,पर यह खेतड़ी ही था जिसने उन्हें विश्वविख्यात विवेकानंद का नाम दिया। स्वामी विवेकानंद पर पीएचडी करने वाले शोधकर्ता डॉ. जुल्फिकार के अनुसार यहां से स्वामीजी अमेरिका स्थित शिकागो की विश्व धर्म संसद में जाने की अधिकांश व्यवस्था भी हुई।
यह भी राजस्थान की सभ्यता और संस्कृति का ही प्रभाव था कि विवेकानंद ने अपनी पारम्परिक बंगाली व परिव्राजक सन्यासी की वेशभूषा के स्थान पर राजस्थान साफा ( टरबन) और चोगा – कमरखी का आकर्षक वेश धारण किया, जो स्वामी विवेकानंद की स्थायी पहचान बनी। वे राजस्थानी परम्परानुसार भूमि पर बैठकर पट्टे पर ही भोजन किया करते थे । यह भी खेतड़ी का सौभाग्य रहा है कि रामकृष्ण मिशन जैसी जनकल्याणकारी संस्था की शुरुआत का प्रथम प्रयास भी यहीं से हुआ। स्वामी विवेकानंद ने स्वयं कहा था कि “भारत वर्ष की उन्नति के लिए जो कुछ मैंने थोड़ा बहुत किया है, वह में नहीं कर पाता यदि राजा अजीत सिंह मुझे नहीं मिलते” स्वामीजी अपने अल्प जीवनकाल में तीन बार राजस्थान आये तथा वे तीनों बार ही खेतड़ी रुके।
स्वामी विवेकानंद और राजा अजीत सिंह की प्रथम मुलाकात राजस्थान के माउंट आबू में हुई थी। राजा अजीत सिंह स्वामी विवेकानंद के प्रभावशील, तेजस्वी, व्यक्तित्व तथा उनकी ओजस्वी वाणी से मुग्ध होकर उनको गुरु – रूप में वरण किया और आग्रह पूर्वक आबू से अपने साथ खेतड़ी लेकर आये, खेतड़ी में उनका बड़ा स्वागत किया गया तथा उनके कहने पर ही खेतड़ी में एक प्रयोगशाला कि स्थापना की गई व महल की छत पर एक सूक्ष्मदर्शी यंत्र लगाया गया। जिसमें तारामंडल का अध्ययन राजाजी को स्वामीजी कराते थे। यहां पर ही पंडित नारायणशास्त्री से स्वामी विवेकानंद ने पाणिनिभाष्य पढा़ जिससे बह्मं की सर्वप्रभुता व सर्वव्यापी ईश्वरीय श्रद्धा का उन्हें बोध हुआ, इससे उनके ज्ञान के विकास में एक कड़ी जुड़ना कह सकते है।
(1) स्वामी विवेकानंद की खेतड़ी यात्राओं का संक्षिप्त विवरण :
- प्रथम यात्रा :- आबू से खेतड़ी, (वर्ष) 7 अगस्त से 27 अक्टूबर 1891, (82) दिन रुके।
- द्वितीय यात्रा :- मद्रास से खेतड़ी, (वर्ष) 21 अप्रैल से 10 मई 1893, (18) दिन रुके।
- तृतीय यात्रा पर :- अमेरिका से खेतड़ी, 12 दिसम्बर से 21 दिसम्बर 1897, (9) दिन रुके।
(2) बग्घी में खेतड़ी आये थे विवेकानंद :
स्वामी विवेकानंद जब 1897 में अंतिम बार 6 घोड़ो की बग्घी से खेतड़ी लोटे, तो खेतड़ी पधारने पर राजा अजीत सिंह ने अपनी ओर प्रजा की ओर से 12 दिसम्बर 1897 के दिन ‘पन्नासर तालाब’ पर प्रतिभोज देकर खेतड़ी और खेतड़ी के भोपालगढ़ किले को रोशनी से जगमगाकर उनका भव्य स्वागत किया और अपनी श्रद्धा भक्ति प्रकट की। उस समय केवल अकेले किले की रोशनी पर (14 मण) तेल खर्च किया गया था।स्वामी विवेकानंद इसी श्रद्धा भक्ति से ओत – प्रोत होकर खेतड़ी को अपना दूसरा घर कहा ।
(3) पांच हजार लोगों को दिया था भोज :
स्वामी विवेकानंद के शिकागो सम्मेलन से लौटने पर रियासत की ओर से पन्नासर तालाब पर पांच हजार लोगों को भोज दिया गया था। इसी दौरान शाही भोज में दाल,बाटी चूरमा, मालपुआ के अलावा अन्य शाही राजस्थानी व्यंजन परोसे गए।
टाॅपिक एक्सपर्ट ……
पन्नासर तालाब पर एक जलसे का आयोजन
आज से 128 साल पहले स्वामी विवेकानंद अमेरिका से खेतड़ी लोटे तब राजा अजीत सिंह अपनी 6 घोड़ो की बग्घी में स्वामीजी को लेकर खेतड़ी पहुंचे । शाम को पन्नासर तालाब पर एक जलसे का आयोजन हुआ जिसमें राजा अजीत सिंह और खेतड़ी के लोगों ने स्वामी विवेकानंद का अभिनंदन किया। – डॉ. जुल्फिकार भीमसर, विवेकानंद पर शोधकर्ता और लेखक

देश
विदेश
प्रदेश
संपादकीय
वीडियो
आर्टिकल
व्यंजन
स्वास्थ्य
बॉलीवुड
G.K
खेल
बिजनेस
गैजेट्स
पर्यटन
राजनीति
मौसम
ऑटो-वर्ल्ड
करियर/शिक्षा
लाइफस्टाइल
धर्म/ज्योतिष
सरकारी योजना
फेक न्यूज एक्सपोज़
मनोरंजन
क्राइम
चुनाव
ट्रेंडिंग
Covid-19






Total views : 1965852


